(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
चुनावों से पहले आखिर कौन बना रहा है राजनीति की धार्मिक प्रयोगशाला?
गुजरात में विधानसभा चुनावों की तारीख़ का ऐलान अभी नहीं हुआ है लेकिन वहां साम्प्रदायिक हिंसा ने अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया है.दिवाली की रात राज्य के बड़े शहर वडोदरा में दो समुदायों के बीच जो हिंसक झड़प हुई है,वह चिंताजनक इसलिये है कि चुनाव से ऐन पहले आखिर वे कौन-सी ताकतें हैं,जो दो समुदायों के बीच नफ़रत का जहर घोलने में जुट चुकी हैं? ये ऐसा सवाल है जिसका तथ्यात्मक जवाब सिर्फ कानून-व्यवस्था संभालने वाली पुलिस ही दे सकती है.लेकिन बड़ा सवाल ये है कि किसी भी राज्य में चुनाव होने से पहले हमारी एजेंसियां आज तक ऐसा मैकेनिज़्म आखिर क्यों नहीं बना पाई हैं कि ऐसी वारदात करने की कोई हिम्मत ही न जुटा पाये?
ऐसी साम्प्रदायिक हिंसा को भड़काने का फायदा किस राजनीतिक दल को मिलेगा,ये तो हम भी नहीं जानते.लेकिन कड़वा सच ये है कि ऐसी किसी भी घटना से दोनों ही समुदायों के उन बेगुनाह लोगों का खून बहता है,जिनके लहू को अलग करके हम बता नहीं सकते कि इसमें किसी हिंदू का खून कौन-सा है और मुसलमान का कैसा? इसलिये कि दोनों के खून का रंग एक ही है-वह न तो केसरिया हो सकता है और न ही हरा! फिर भी किसी त्योहार पर अगर हैवानियत का ऐसा खेल होता है,तो ये मानकर चलना ही होगा कि उसके पीछे सियासी फायदा उठाने का कोई तो मकसद है.इस मकसद में कामयाब चाहे जो भी हो,लेकिन उसके हाथ बेगुनाहों के खून से तो रंगे ही रहेंगे. कहते हैं कि दुनिया की कोई भी सियासत कभी कुदरत के नियमों की परवाह नहीं करती और सत्ता की ताकत उसे अपने हिसाब से काम करने की बेलगाम ताकत भी दे देती है.
हालांकि अतीत की घटनाएं बताती हैं कि गुजरात के कुछ शहर बेहद संवेदनशील हैं,जो इस तरह की हिंसा को चिंगारी देते आये हैं.लेकिन वडोदरा में दिवाली की रात माहौल अचानक बिगडने की वजह किसी को समझ नहीं आ रही है. आतिशबाजी को लेकर दो समुदाय के लोग आमने-सामने आ गए और जहां पटाखे और फुलझड़ियां चल रही थीं वहां पेट्रोल बम बरसने लगे.दोनों तरफ से पथराव होने और आगजनी से इलाके में ऐसी सनसनी फैल गई कि देर रात सांप्रदायिक झड़प को काबू करने पहुंची पुलिस को भी निशाना बनाया गया और उन पर पेट्रोल बम फेकें गए.
जिन लोगों को हिरासत में लिया गया है, उनमें एक ऐसा शख्स भी शामिल है जिसने पुलिसकर्मियों पर पेट्रोल बम से हमला किया.बताया गया है आरोपी ने घर की तीसरी मंजिल से पुलिसकर्मियों को निशाना बनाकर पेट्रोल बम फंका.हालांकि पुलिस ने दोनों पक्षों से कुल 19 लोगों को हिरासत में लिया है.लेकिन मुस्लिम पक्ष का आरोप है कि पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए निर्दोष लोगों को भी जबरन गिरफ्त में लिया है.
दरअसल,ये घटना वडोदरा के उस पानीगेट थानाक्षेत्र में हुई थी,जिसे पहले से ही बेहद संवेदनशील माना जाता है.हालांकि वडोदरा के पुलिस कमिश्नर शमशेर सिंह ने हालात की नाजुकता को संभालते हुए यही कहा है कि दो समुदायों के बीच गलतफहमी की वजह से ये झड़प हुई,लेकिन पानीगेट थाने के इंस्पेक्टर केके कमवाना के मुताबिक ”एक रॉकेट बाइक पर जा गिरा, जिससे उसमें आग लग गई.इसके बाद दोनों गुटों में पत्थरबाजी हुई.बताया जा रहा है कि हिंसा से पहले उपद्रवियों ने इलाके की स्ट्रीट लाइट्स को बंद कर दिया था, ताकि अंधेरे में उनकी पहचान ना हो सके. बता दें कि इससे पहले 3 अक्टूबर को पुलिस ने वडोदरा में तिरंगा फहराने को लेकर हुई हिंसक झड़प के बाद 40 लोगों को गिरफ्तार किया था.
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि पिछले एक साल से गुजरात में ही सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं सामने क्यों आ रही हैं और वो भी किसी त्योहार पर ये ही हिंसक घटनाएं क्यों होती हैं? इससे पहले दशहरा, रामनवमी, नवरात्रि के मौके पर भी कई सांप्रदायिक हिंसा हुई थी.नवरात्रि के मौके पर भी गुजरात के दो शहरों में सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया था.तब खेड़ा में नवरात्रि आयोजन पर पथराव किया गया, जिसमें आधा दर्जन लोग जख्मी हो गए थे ,तो वहीं वडोदरा के सावली कस्बे में भी दो पक्ष आपस में ऐसे भिड़ गए थे,जहां जमकर पथराव हुआ और कई गाड़ियों को तोड़ दिया गया था.इस दौरान पुलिस ने दोनों पक्षों से 40 लोगों को गिरफ्तार किया था.
उससे पहले हिम्मतनगर और खंभात शहर में रामनवमी के जुलूस के दौरान दो समुदायों के बीच भड़की सांप्रदायिक झड़प के दौरान लोगों ने एक-दूसरे पर पथराव किया था, जिसमें कई दुकानें और वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया था. खंभात में हुई सांप्रदायिक झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कुछ जख्मी हुए थे. सवाल ये नहीं है कि इस मज़हबी हिंसा की चिंगारी को हवा कौन दे रहा है.बड़ा सवाल ये है कि गुजरात से पहले हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन वहां से तो साम्प्रदायिक भाईचारा बिगाड़ने की ऐसी कोई खबर आज तक नहीं आई. तो फ़िर एक ख़ास राज्य को ही आखिर कौन बना रहा है,राजनीति की धार्मिक प्रयोगशाला?
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