BJP National Executive meeting: पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले रविवार को हुई बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक अहम तो थी ही लेकिन कुछ अलग भी थी. वह इसलिए कि ऐसी बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने के लिए पार्टी अपने किसी मुख्यमंत्री को अमूमन आगे नहीं करती है और अक्सर कोई सीनियर नेता ही इसे प्रस्तुत करता रहा है. लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ये प्रस्ताव पेश करवाकर बीजेपी ने एक तो ये साफ कर दिया कि अगली बार भी मुख्यमंत्री का चेहरा वही होंगे और दूसरा यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद का मुद्दा उठाकर कांग्रेस व समाजवादी पार्टी को निशाने पर लेते हुए एक तरह से पार्टी के चुनाव-अभियान का एजेंडा भी सेट कर दिया है. दरअसल, देश की राजनीति की दिशा व दशा तय करने वाले उत्तर प्रदेश को लेकर बीजेपी अपनी तरफ से जरा-सी भी कोई ऐसी गलती नहीं करना चाहती, जिसका फायदा उसके विरोधी किसी भी तरह से उठा सकें.


वैसे तो पिछले दो दशक में हुई ऐसी तमाम बैठकों में दिए गए भाषणों का सरताज मोदी को ही माना जाता है जबकि उस दौरान वे देश के प्रधानमंत्री नहीं, सिर्फ गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे लेकिन तब भी पार्टी की समूची कार्यकारिणी उनका भाषण सुनने के लिए लालायित रहा करती थी. इसलिए कि वे कुछ ऐसा अजूबा मंत्र देंगे जो छत्तीसगढ़ से लेकर गोवा तक पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने के काम आएगा. कल हुई बैठक में भी उन्होंने पार्टी नेताओं को एक बड़ा संदेश दिया है लेकिन किसी आंदोलन का जिक्र किए बगैर उन्होंने इशारों में ये भी समझा दिया कि यूपी के चुनावों में अपनी तरफ से किसान आंदोलन को किसी भी तरह का तूल देने से बचा जाए. यानी, अपने प्रचार में उसे एक तरह से हाशिये पर ही रखा जाए क्योंकि पार्टी का कोई भी नेता उसे जायज़ तो ठहरा नहीं सकता, लिहाजा चुनावी मंच से उसका विरोध करके बेवजह की तवज्जों देना आग में घी डालने जैसा ही होगा. पीएम मोदी समेत पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस सच्चाई को जानता है कि किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उतर प्रदेश में उसकी जमीन कमजोर हुई है और आगामी चुनावों में पार्टी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है.शायद यही वजह थी कि मोदी ने अपने भाषण में इस ज्वलंत मुद्दे को छुए बगैर पार्टी नेताओं को ये समझाने की कोशिश करी कि अपने चुनाव-अभियान में इसकी उपेक्षा करके ही दोबारा कामयाबी की मंजिल तक पहुंच सकते हैं.


हालांकि पिछले महीने संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने पश्चिमी उत्तरप्रदेश के सभी बीजेपी सांसदों व विधायकों के साथ एक बैठक की थी जिसमें उन्हें यही हिदायत दी गई थी कि पूरे सहना-प्रचार के दौरान वे अपने भाषणों में न तो किसानों के प्रति किसी अपशब्द का इस्तेमाल करें और न ही उनके खिलाफ अपने गुस्से की कोई नुमाइश करें. वैसे भी मोदी की राजनीतिक कार्यशैली को नजदीक से समझने वाले लोग ये जानते हैं कि नब्बे के दशक में आरएसएस ने जब उन्हें संगठन के महामंत्री के नाते बीजेपी में भेजा था,तभी से बहुत-सी बातें विस्तार से बताने की उनकी आदत नहीं है बल्कि वे सांकेतिक भाषा के जरिये अपना संदेश दे देते थे और किसी राज्य के या देश में होने वाले चुनाव में वही पार्टी का मुख्य एजेंडा बन जाता था.


कल हुई बैठक में जहां उन्होंने परिवारवाद का जिक्र करते हुए अपने दो प्रमुख विरोधियों को निशाने पर लिया, तो वहीं पार्टी के मुख्यमंत्रियों समेत तमाम नेताओं को ये आगाह भी कर दिया कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने का कितना बड़ा ख़ामियाजा भुगतना पड़ता है.हाल ही में विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा के उप चुनावों में कई स्थानों पर बीजेपी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है और उसमें सबसे प्रमुख है हिमाचल प्रदेश,जहां बीजेपी की ही सरकार है.हो सकता है कि हिमाचल के मुख्यमंत्री की इस बात में काफी हद तक दम भी हो कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ती हुई कीमतों के कारण ही पार्टी का ये हश्र हुआ.ये भी संभव है कि इस मुद्दे पर कार्यकारिणी की बैठक में गहराई से मंथन भी हुआ हो और आगे के लिए रणनीति भी बनाई गई हो कि इन पांच राज्यों के चुनाव में महंगाई कहीं बीजेपी के लिए डायन न बन जाये.क्योंकि विरोधियों के अलावा अब पार्टी के भीतर से ही ये आवाजें उठने लगी हैं कि तेल के बाद रसोई गैस की कीमतों में भी सरकार को कमी करनी चाहिए.यूपी के सुल्तानपुर से बीजेपी की सांसद मेनका गांधी ने शनिवार को ही अपने संसदीय क्षेत्र में हुई एक सभा में इस मुद्दे को मुखरता से उठाया था.पिछले महीने ही उन्हें पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्यता से हटा दिया था,लिहाज़ा हो सकता है कि उनके इस बयान का मकसद ये भी हो कि रविवार को होने वाली बैठक में पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर भी मंथन हो.


जाहिर है कि इस बैठक में मोदी ने कोरोना माहामारी से निपटने और उसके बाद टीकाकरण को लेकर हासिल उपलब्धियां तो गिनाईं हैं लेकिन ये संभव ही नहीं हो सकता कि उन्होंने भाजपाशासित राज्यो के मुख्यमंत्रियों व मंत्रियों के बढ़ते हुए अहंकार और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को लेकर उन्हें कोई फटकार न लगाई हो.वह इसलिये कि मोदी नेता बाद में बने हैं,मूल रुप से वे आज भी एक स्वयंसेवक ही हैं,जो इस सच को जानते हैं कि न मालूम कितने अनाम स्वयंसेवको व कार्यकर्ताओं की मेहनत और समर्पण के बल पर ही सत्ता हासिल होती है.इसीलिये उन्होंने इस बैठक के समापन भाषण में बीजेपी के इतिहास की याद दिलाते हुए इस पर जोर दिया कि "अगर भाजपा ने आज केंद्र में ये स्थान पाया है, तो उसका बहुत बड़ा कारण ये है कि पार्टी सामान्य व्यक्ति से हमेशा जुड़ी रहती है. पार्टी का आधार सेवा, संकल्प और समर्पण पर टिका है,जो हमें दूसरी पार्टियों से अलग बनाता है."


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