बंगाल से जिस तरह के वीडियो और तस्वीरें आ रही हैं, वो बड़ी डरावनी हैं. ममता बनर्जी के 'मां, माटी और मानुष' वाले कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए है. खेला होबे के नारों के संग तांडव मचा रहे हैं. कहीं लूटपाट तो कहीं आगजनी तो कहीं मारपीट. हिंसक भीड़ को देश ऐसा लगा रहा है चुनाव में जीत का मतलब है मनमानी का अधिकार, गुंडई का सर्टिफिकेट. बंगाल में घरों में घुसकर और सड़कों पर आती जाती महिलाओं के साथ छेड़खानी हो रही है, मारपीट हो रही है. चुनाव में टीएमसी की जीत के बाद से ही बंगाल जल रहा है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रही तस्वीरें इंसानियत को लहू लुहान करने वाली है.
मुझे याद है जब मैं इलेक्शन कवरेज के लिए बंगाल गया था. तभी वहं के कई अफसरों ने आज के बारे में भविष्यवाणी कर दी थी. एक सीनियर आईपीएस अधिकारी की बातें दिमाग पर हथौड़े की तरह बार-बार चोट कर रही है. उन्होंने कहा था ममता बनर्जी के चुनाव जीतते ही बीजेपी के लोग कीड़े मकोड़े की तरह मारे जाएंगे. ये बात उन्होंने नंदीग्राम में कही थी. जहॉं से ममता बनर्जी चुनाव हार चुकी हैं. नंदीग्राम इतना घूमा कि वहां के गांव गलियां अपनी लगने लगी हैं. वहं से लगातार फोन आ रहे हैं. उस गांव में मार पीट हुई. उसका घर तोड़ दिया. उसकी गाड़ी में आग लगा दी. नंदीग्राम ही नहीं बंगाल के कई इलाकों में टीएमसी के समर्थक सबक सिखाने निकल पड़े हैं. हाल के कई सालों में बदले की ये राजनीति न तो किसी ने देखी, न सुनी होगी.
बंगाल का चुनावी हिंसा वाला इतिहास
बंगाल का इतिहास चुनावी हिंसा का रहा है. प्रचार से लेकर मतदान और फिर नतीजों के बाद बड़े पैमाने पर हिंसा होती रही है. पहले कांग्रेस, फिर लेफ्ट और अब टीएमसी. लेकिन उस दौर में लोगों तक हिंसा की खबर तक नहीं पहुंच पाती थीं. लेकिन आज बंगाल की सड़कों पर जो खून खराबा हो रहा है. उसकी एक-एक तस्वीर देश के सामने है. सब कुछ सरकारी मशीनरी के समर्थन से हो रहा है. टीएमसी के एक बड़े नेता कहते हैं कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने दीदी को बरमुडा पहनने को कहा था. इससे बंगाल की जनता नाराज है. जो लोग पीटे जा रहे हैं वो भी बंगाल की जनता है. उनकी सुरक्षित जिम्मेदारी भी ममता बनर्जी की है. बाहरी-बाहरी के नारे के साथ चुनाव जीतने वाली दीदी इस बार हिंसा के लिए बाहरी का बहाना नहीं बना सकती.
टीएमसी के झंडे लगाकर दुकानें और घर लूटे जा रहे हैं. ममता ये बात याद कर लें आज जो उनके अपने बनकर ये हिंसा कर रहे हैं वे कल किसी और के होगें.. उस दिन उनके निशाने पर आपके लोग भी हो सकते हैं.
प्रशांत किशोर आपके गांधी ऐसे हैं क्या
कहते हैं कि अनुभव से लोग सीखते हैं. खुद कई बार हिंसा की शिकार हो चुकी ममता बंगाल में जारी तांडव पर मौन हैं. उनकी इमेज को बेदाग बनाने का ठेका लेने वाले प्रशांत किशोर भी ममता की तरह मौन हैं. अपने को महात्मा गांधी की विचारधारा की विरासत वाला बताते हैं. लेकिन बंगाल की हिंसा पर उनकी अंतरात्मा उन्हें कचोटती नहीं हैं. उन्हें गांधी के साध्य और साधन की शुचिता वाला मंत्र अब याद नहीं रहा.
कोरोना से लेकर बिहार पर वे ट्वीट कर सकते हैं. सरकारों को कठघरे में खड़ा कर सकते हैं. कभी पीएम मोदी तो कभी सीएम नीतीश कुमार. लेकिन अपनी सुविधा के हिसाब से प्रशांत किशोर मुंह पर ताला लगा लेते हैं. मैंने व्यक्तिगत तौर पर उनसे ये उम्मीद नहीं की थी. वे जहां भी रहते हैं गांधी की तस्वीर जरूर होती है. मानो वे बापू की बातों को ही ओढ़ते और बिछाते हैं. बंगाल में हो रहे उत्पात को लोग नोआखाली की घटना से जोड़कर देख रहे हैं. देश के बंटवारे के समय बंगाल में हिंसा के खिलाफ महात्मा गांधी धरने पर बैठ गए थे.
नंदीग्राम से चुनाव लड़ना और प्रशांत किशोर को साथ लेना, ये दोनों फैसला ममता बनर्जी का था. ममता खुद चुनाव तो हार गईं लेकिन उनकी पार्टी 200 के पार हो गई. ममता के लिए बीजेपी के बनाए चक्रव्यूह को प्रशांत ने धराशायी कर दिया. दूसरों को चुनाव जिताने वाले प्रशांत अब खुद कुछ और करना चाहते हैं. हो सकता है वे खुद पॉलिटिक्स में आ जाए. उनकी ये पुरानी चाहत रही है. आज उनका कामयाबी का डंका देशभर में बज रहा है लेकिन उनकी खामोशी इस पर भारी पड़ती नजर आ रही है.
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