भगत सिंह कोश्यारी का पॉलिटिकल करियर लगभग खत्म! उत्तराखंड से लेकर महाराष्ट्र तक ऐसा रहा सफर
Bhagat Singh Koshyari: महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस बात का एलान कर दिया है कि वो अब राजनीतिक तौर पर एक्टिव नहीं रहेंगे, यानी इसे कोश्यारी का राजनीति से संन्यास भी मान सकते हैं. महाराष्ट्र राजभवन की तरफ से इसे लेकर बकायदा बयान भी जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि कोश्यारी ने पीएम मोदी से सभी राजनीतिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने की इच्छा जताई है. इसे कोश्यारी के राजनीतिक संन्यास का एलान माना जा रहा है. इस ब्लॉग में कोश्यारी के पूरे राजनीतिक करियर के बारे में बात करेंगे और राज्यपाल के तौर पर उनसे जुड़े विवादों का भी जिक्र होगा.
महाराष्ट्र में विवादों से रहा नाता
सितंबर 2019 में बीजेपी और आरएसएस से जुड़े भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी गई. राज्यपाल का पद संभालने के कुछ ही हफ्ते बाद कोश्यारी के नाम बड़ा विवाद जुड़ गया. महाराष्ट्र में चुनाव होने के बाद जब किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई. बातचीत शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच हो रही थी और माना जा रहा था कि यही गठबंधन सरकार बनाने जा रहा है, तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे देश को चौंकाकर रख दिया.
राजभवन में 'शपथ कांड'
23 नवंबर 2019 की सुबह अचानक महाराष्ट्र राजभवन से तस्वीरें सामने आईं, जिनमें देखा गया कि देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार शपथ ले रहे हैं. फडणवीस ने बतौर मुख्यमंत्री और पवार ने उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की मौजूदगी में ही ये सब हुआ. हालांकि इसके बाद शरद पवार ने पूरा मामला संभाला और अजित पवार ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया. बाद में एमवीए गठबंधन ने ही राज्य में सरकार बनाई. इस पूरे ऑपरेशन को लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की खूब आलोचना हुई.
इसके बाद एमवीए सरकार और कोश्यारी के बीच का मनमुटाव तब सामने आया था, जब आरोप लगाया गया कि राज्य सरकार ने राज्यपाल को मुंबई से उत्तराखंड जाने के लिए सरकारी विमान देने से इनकार कर दिया. सीएम ऑफिस की तरफ से कहा गया कि इसके लिए इजाजत लेनी चाहिए थी. इस पर बीजेपी और एमवीए सरकार के बीच जमकर हंगामा हुआ था.
सुर्खियों में रही बयानबाजी
राज्यपाल के तौर पर भगत सिंह कोश्यारी के बयान भी खूब चर्चा में रहे और उन्हें लेकर विवाद भी हुआ. जुलाई 2022 में एक कार्यक्रम के दौरान भगत सिंह कोश्यारी ने कुछ ऐसा कह दिया, जिससे मराठी लोगों की भावनाएं आहत हो गईं और विपक्ष ने उन्हें जमकर घेरा. कोश्यारी ने कहा था कि अगर राजस्थानी और गुजराती समुदाय के लोगों को मुंबई से निकाल दिया जाए तो ये देश की आर्थिक राजधानी नहीं रहेगी. इस बयान से खुद बीजेपी ने भी किनारा कर लिया था.
इसके बाद उनका छत्रपति शिवाजी को लेकर दिया गया बयान भी खूब चर्चा में रहा. जिसमें कोश्यारी ने छत्रपति शिवाजी को एक गुजरे जमाने का आदर्श बता दिया था. इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने कोश्यारी का इस्तीफा मांगा था. इस बयान को लेकर जारी विवाद के बीच ही कोश्यारी ने राजनीति संन्यास लेने की इच्छा जताई है.
कोश्यारी का राजनीतिक सफर
जिस तरह भगत सिंह कोश्यारी का कद था, उस तरह उन्हें बड़े बद नहीं मिल पाए. या यूं कहें कि बड़े पदों पर वो ज्यादा वक्त तक नहीं टिके. उत्तराखंड के बागेश्वर से आने वाले भगत सिंह कोश्यारी ने अल्मोड़ा यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की. कोश्यारी छात्र राजनीति में काफी सक्रिय थे, जिसके बाद वो आरएसएस से भी जुड़ गए. बतौर आरएसएस नेता उन्होंने इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलनों में हिस्सा लिया और जेल भी गए.
भगत सिंह कोश्यारी का राजनीतिक सफर 1997 में शुरू हुआ, जब वो विधायक चुने गए. तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था. साल 2000 में उत्तराखंड बनने के बाद वो ऊर्जा मंत्री रहे. इसके बाद भगत सिंह कोश्यारी को उनकी मेहनत का इनाम मिला और 2001 में उन्हें उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया गया. हालांकि एक साल बाद चुनाव हुए और बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई. यानी करीब एक साल तक कोश्यारी सीएम पद पर रहे.
साल 2007 में फिर विधानसभा चुनाव हुए और उत्तराखंड में बीजेपी ने एक बार फिर सरकार बनाई. इस बार कोश्यारी फिर से सीएम पद पर बैठने का इंतजार कर रहे थे, लेकिन बीजेपी ने उनकी जगह भुवन चंद खंडूरी को सीएम बना दिया गया. इसके बाद 2008 में कोश्यारी को उत्तराखंड से राज्यसभा भेज दिया गया. इसके अलावा कोश्यारी उत्तराखंड बीजेपी के भी अध्यक्ष रहे.
उत्तराखंड की राजनीति में भगत सिंह कोश्यारी लगातार हाशिए पर आते रहे, क्योंकि वो आरएसएस के पुराने नेता रहे इसीलिए बीजेपी ने 2019 में उन्हें राज्यपाल का पद सौंप दिया. जिसके बाद इस पद पर रहते हुए वो काफी विवादों में रहे और ताजा शिवाजी महाराज विवाद के बीच उन्होंने पद छोड़ने की इच्छा जताई है.