कोवैक्सीन पर सियासत करने से आखिर क्या होगा हासिल?
कोरोना वायरस से निपटने में इस्तेमाल हो रही कोवैक्सीन को लेकर एकाएक सियासत गरमा उठी है.दावा किया गया है कि इसमें गाय के नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया गया है,लिहाज़ा ये लोगों की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ है.ऐसे वक्त में जब राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं का ये फ़र्ज़ होना चाहिए कि वे देश के गांवों में बसी बड़ी आबादी को टीका लगवाने के लिये जागरुक करें, तब इस तरह की बातें फैलाकर उनके अंधविश्वास को और अधिक मजबूत करना, किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता.
मूल मकसद तो ये है कि कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी से बचाव किस तरह से हो और इसका एकमात्र उपाय वैक्सीन लगवाना ही है जो पूरी दुनिया में लोगों ने लगवाई है.अब उस वैक्सीन को तैयार करने में वैज्ञानिकों ने किस तकनीक का इस्तेमाल किया और उसमें कौन-कौन से रसायन मिलाये गये, ये राजनीतिक दलों के लिये न तो कोई मुद्दा होना चाहिये और न ही इस पर व्यर्थ की बहसबाजी की जरुरत पड़नी चाहिये. दुनिया में जब भी कोई नई वैक्सीन बनती है,तो पहले वह कई तरह के वैज्ञानिक ट्रायल से गुजरती है,उसके बाद ही उसे इंसान के शरीर में प्रवेश की मंजूरी दी जाती है.
कांग्रेस के दो नेताओं द्वारा इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उछालने के बाद भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय व वैक्सीन निर्माता कंपनी भारत बायोटेक ने अपनी सफाई दे दी है लेकिन अहम बात ये है कि जो करोड़ो लोग यह वैक्सीन लगवा चुके हैं,उनके मन में तो अब बेवजह की शंका पैदा कर दी गई जिसके लिये ये नेता तो अपनी जिम्मेदारी लेंगे नहीं.
सोचने वाली बात ये भी है कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में आज भी कई गांव-कस्बे ऐसे हैं जहां लोगों ने अंधविश्वास, अफवाहों और डर के चलते अब तक कोई भी वैक्सीन नहीं लगवाई है.ऐसे माहौल में वैक्सीन पर सियासत करके भ्रम फैलाने से विपक्षी पार्टी को आखिर क्या हासिल होगा, यह समझ से परे है.बेशक विपक्षी दलों का काम सरकार की खामियों को जनता के सामने लाना और उसे जवाबदेह बनाना ही होता है लेकिन देश जब किसी महामारी के संकट का सामना कर रहा हो, तब उसी विपक्ष का ये भी सामाजिक दायित्व बनता है कि वो सरकार को रचनात्मक सहयोग करते हुए उसके जागरुकता अभियान में अपनी भूमिका अदा करे.
हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि वैक्सीन के बारे में सोशल मीडिया पर जो पोस्ट की गईं हैं, उनमें तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. मंत्रालय के मुताबिक वायरस कल्चर करने की एक खास तकनीक जिसे पोलियो, रेबीज और इन्फ्लुएंजा के टीकों में दशकों से इस्तेमाल किया जा रहा है. फाइनली रूप से बन कर तैयार होने वाली कोवैक्सीन में नवजात बछड़े का सीरम बिल्कुल नहीं होता है और ना ही ये सीरम वैक्सीन उत्पाद का इंग्रेडिएंट है.
यह सही है कि नवजात बछड़े के सीरम का उपयोग केवल वेरो कोशिकाओं / सेल्स की तैयारी या वृद्धि के लिए किया जाता है. विभिन्न प्रकार के पशु का सीरम वेरो सेल ग्रोथ के लिए विश्व स्तर पर उपयोग किए जाने वाले स्टैंडर्ड एनरिचमेंट इंग्रेडिएंट्स हैं. वेरो सेल्स का उपयोग कोशिका जीवन को स्थापित करने के लिए किया जाता है जो टीकों के उत्पादन में मदद करते हैं.
इन वेरो कोशिकाओं को वृद्धि के बाद, पानी व अन्य तरह के रसायनों से धोया जाता है जिसे तकनीकी रूप से बफर के रूप में भी जाना जाता है. इसके बाद ये वेरो सेल्स वायरल ग्रोथ के लिए कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाते हैं. लिहाज़ा, वक़्त का तकाज़ा है कि लोग इधर-उधर की बातों पर यकीन किये बगैर वैक्सीन लगवाएं और अपने शरीर को इस वायरस से लड़ने के लिए मजबूत करें.