कांग्रेस की भारत छोड़ो यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर गयी है. यह पहला कांग्रेस शासित राज्य हैं जहां यात्रा आई है. राहुल बीच में एक तरफ गहलोत और दूसरी तरफ सचिन पायलट. अच्छा लगा देखकर. लेकिन राहुल गांधी ने भाषण दिया तो उसमें दो बार गहलोत का नाम लिया. सचिन का नाम भूल गये या जानबूझकर नहीं लिया पता नहीं लेकिन सचिन समर्थकों ने हल्की सी हूटिंग कर दी. साफ है कि दोनों के बीच सब कुछ सामान्य नहीं हुआ है.


इससे पहले झालावाड़ में सचिन के पोस्टर लगे थे जिस पर दूसरे पक्ष ने एतराज किया था तो प्रशासन ने दोनों पक्षों के पोस्टर हटवा दिये. साफ है कि गहलोत और सचिन के बीच फैसला करने का मौका आ गया है. मध्यप्रदेश में राहुल गांधी ने दोनों को एसेट बताया था. लेकिन लगता है कि दोनों एसेट का इस्तेमाल राहुल गांधी को सूझबूझ से करना होगा. दोनों राज्य में ही रहना चाहते हैं लेकिन दोनों साथ में नहीं रह सकते.


दिलचस्प बात है कि आठ दिसंबर को यात्रा जब राजस्थान में ही होगी तब गुजरात और हिमाचल के चुनावी नतीजे आ रहे होंगे. मान लीजिये अगर दोनों जगह कांग्रेस हार गयी तो राहुल क्या करेंगे. क्या गहलोत को जिम्मेदार ठहरा कर हटा देंगे और सचिन को मुख्यमंत्रा बना देंगे. लेकिन यहां पेंच है. हिमाचल में भूपेश बघेल प्रभारी थे तो क्या गहलोत वाली सजा भूपेश को भी मिलेगी. सचिन हिमाचल के सह प्रभारी थे तो क्या ऐसे में सचिन को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है? 


अब अगर गुजरात में कांग्रेस सम्मानजनक हार हारी और हिमाचल में जीत गयी तो राहुल गांधी क्या करेंगे? क्या गहलोत सीएम बने रहेंगे और सचिन को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी जाएगी. सवाल बहुत से हैं. जवाब यही है कि फैसला करने का समय बीत रहा है और राजस्थान में रहते हुए ही राहुल को चाहिए कि दोनों नेताओं को अपने साथ बिठाकर सुलह करवाएं या फिर कड़ा फैसला लें. क्या ऐसा हो पाएगा?


कुछ लोगों का कहना है कि राहुल गांधी की असली चिंता अपनी यात्रा को बचाने की है. उसे राजस्थान में सफल बनाने की है. वैसे भी राहुल साफ कर चुके हैं कि उनका चुनावों की हार जीत से कोई लेना देना नहीं है. वह तो नैतिकता वाली राजनीति कर रहे हैं. सवाल उठता है कि क्या भारत जोड़ो यात्रा का मकसद कांग्रेस को जोड़ना नहीं होना चाहिए. अगर यात्रा का मकसद राहुल की छवि को चमकाना है, पप्पू की छवि को धूमिल करना है और राहुल गांधी को 2024 के चुनाव में मोदी जी के बराबर खड़ा करना है तो यह काम कांग्रेस संगठन को मजबूत करके ही किया जा सकता है. 


संगठन मजबूत नहीं हो सकता है अगर किसी राज्य के दो बड़े नेता आपस में लड़ते रहें, आपस में बहस बाजी करते रहें. कुछ ऐसी ही बात अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कही है. उनका कहना है कि अगर पदधारक नेता अपनी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं है या सक्षम नहीं हैं तो उनको युवा नेताओं के लिए जगह खाली कर देनी चाहिए. खड़गे कहते हैं कि संगठन मजबूत करना है, आम जनता के मुद्दों को उठाना है, जवाबदेही तय करनी है तभी जनता वोट देगी.


कांग्रेस में नेताओं को जिम्मेदारी तो दी जाती है लेकिन जवाबदेही नहीं तय की जाती है. जवाबदेही तय होगी तो नेता भी जिम्मेदारी से काम करेंगे. खड़गे महासचिवों से हिसाब मांग रहे हैं कि उन्होंने जनता से जुड़े कितने मामले उठाए, अपने अपने राज्य के कितने दौरे किये और राज्य के पदाधिकारियों से कितनी बार मिले. साथ ही आगे के 90 दिनों के बारे में भी वह पूछ रहे हैं कि सड़क पर कितने आंदोलन करेंगे. 


राज्य में एक महीने में कम से कम दस दिन बिताने को भी कहा जा रहा है. जाहिर है कि खड़गे ने यह सब अपनी तरफ से नहीं कहा होगा. राहुल गांधी की इसमें जरूर मंशा रही होगी. अगर ऐसा है तो राहुल गांधी को भी सख्त रुख अपनाना ही होगा. अब देखते हैं कि राजस्थान में रहते हुए गहलोत सचिन का झगड़ा क्या सुलझा पाएंगे?


नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.