महाभारत के युद्ध का गवाह बनी कुरुक्षेत्र की धरती पर पहुंचते ही राहुल गांधी को भी कौरवों और पांडवों की याद आ गई है. अपनी भारत जोड़ो यात्रा में अब वे आरएसएस और बीजेपी के खिलाफ ज्यादा तीखे हमले कर रहे हैं. उन्होंने आरएसएस को 21वीं सदी के कौरवों की सेना बताते हुए खुद की तुलना पांडवों से की है. हालांकि इसका फैसला तो चुनाव के वक्त जनता ही करेगी लेकिन राहुल के इन तीखे तेवरों ने एक बड़ा सवाल ये खड़ा कर दिया है कि कांग्रेस में राहुल गांधी ही क्या इकलौते ऐसे नेता हैं, जो आरएसएस से हेडऑन करने की ताकत रखते हैं?
दरअसल, राहुल जिस अंदाज में संघ को निशाने पर ले रहे हैं, उससे साफ है कि उन्हें ये अहसास हो चुका है कि बुनियाद पर चोट किए बगैर बीजेपी को कमजोर नहीं किया जा सकता और संघ ही उसकी बुनियाद है. इसलिये वे यह नैरेटिव बनाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं कि संघ के इशारे पर ही बीजेपी ने पिछले आठ-नौ साल में देश को नफ़रत के बाजार में तब्दील करके रख दिया है. विभिन्न प्रदेशों से गुजर चुकी अब तक की यात्रा में जुटी भीड़ को देखकर ये दावा करने में किसी को हर्ज़ नहीं है कि राहुल को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है, लेकिन सवाल ये है कि वे इस धारणा को लोगों के जेहन में बैठाने और 2024 तक उसे जिंदा रख पाने में कामयाब होंगे और दूसरा यह भी कि इसकी क्या गारंटी है कि वे इसे कांग्रेस के वोटों में तब्दील कराने वाले पांडव ही साबित होंगे.
ये सच है कि संघ ही बीजेपी का भाग्यविधाता है और संघ के करोड़ों स्वयंसेवकों के निस्वार्थ परिश्रम के बगैर बीजेपी की अपनी ताकत न के बराबर ही है. इसलिये सियासी लिहाज़ से तो राहुल गांधी का ये बेख़ौफ़ अंदाज और बेबाकी वाले लफ़्ज़ तारीफ़े काबिल ही समझे जाएंगे लेकिन इसने संघ को पहले से अधिक सचेत, सतर्क करते हुए वक़्त से पहले ही जमीनी काम पर लगा दिया है. 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी सवा साल का वक़्त बाकी है लेकिन संघ के स्वयंसेवक अभी से जिस मुस्तैदी के साथ चुनाव तैयारी में जुट गए हैं, उससे लगता है कि भारत जोड़ो यात्रा को संघ ने हल्के में नहीं लिया है, बल्कि इसे अपने लिये एक चुनौती मानते हुए पूरा तानाबाना बुन लिया है कि कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष को जमीनी स्तर पर क्या और कैसे जवाब देना है.
इससे भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि संघ देश का इकलौता ऐसा संगठन है, जो इतना व्यवस्थित होने के साथ ही ग्रास रुट लेवल पर भी पूरी तरह से संगठित है. कहने को वह सांस्कृतिक ,सामाजिक व राष्ट्रवाद का अलख जगाने वाला संगठन है, लेकिन हर तरह के चुनाव के वक़्त वो बीजेपी के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम साबित नहीं होता है. इसलिये आरएसएस पर राहुल गांधी का तीखा हमला, मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर मारने जैसा है. फर्क सिर्फ इतना है कि छत्ता टूटने पर मधुमक्खियां बिखर जाती हैं और फिर लोगों को अपने डंक का स्वाद चखाती हैं, लेकिन संघ का इतिहास बताता है कि वो ऐसे हमलों से पहले से कहीं और ज्यादा मजबूत व एकजुट हो जाता है.
गौरतलब है कि सोमवार को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में राहुल गांधी ने आरएसएस के लोगों को 21वीं सदी का कौरव बताते हुए कहा था कि "21वीं सदी के कौरव खाकी हाफ-पैंट पहनते हैं और शाखाएं लगाते हैं. उनके पीछे देश के 2-3 अरबपति लोग खड़े हैं." मौजूदा माहौल की तुलना महाभारत युद्ध से करते हुए राहुल ने ये भी कहा, "महाभारत में जब उस समय की जो लड़ाई थी, वही आज भी है. पांडव कौन थे? अर्जुन, भीम ये लोग कौन थे? ये लोग तपस्या करते थे. आप लोगों ने महाभारत पढ़ी है. क्या पांडवों ने कभी गलत किया? कभी नोटबंदी की? गलत GST लागू की क्या? क्योंकि वो जानते थे, ये सब चोरी करने का गलत तरीका है."
कांग्रेस और खुद की तुलना पांडवों से करते हुए राहुल ने कहा, "एक तरफ 5 तपस्वी थे. पांडवों के साथ हर धर्म के लोग थे. ये यात्रा मोहब्बत की दुकान है. पांडवों ने भी अन्याय के खिलाफ काम किया था. पांडवों ने भी नफरत के बाजार में प्यार की दुकान खोली थी. पांडवों ने डर और नफरत को मिटाने का काम किया था. और ये मेरा नारा नहीं उनका नारा है भगवान राम का नारा है. ये देश तपस्वियों का देश है."
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