सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के उस क्यूरेटिव पेटिशन को खारिज कर दिया, जिसमें भोपाल गैस पीड़ितों के लिए अतिरिक्त 7400 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की गई थी. ये पीड़ितों के लिए तो झटका है, लेकिन कोर्ट ने सरकार से कहा है कि जिस वक्त मुआवजा मांगा गया था उस समय ये एक फिक्स्ड राशि थी. उस समय सरकार ने ये नहीं कहा था कि फिक्स्ड अमाउंट सही है.
दूसरी बात ये कि सरकार को बोला गया था कि जो मुआवजा है, इसको इंश्योरेंस में डाल दें ताकि, ये भविष्य में भी काम आ सके. लेकिन, सरकार ने ऐसा नहीं किया. इसलिए कोर्ट ने सरकार से कहा है कि ये उसकी लापरवाही रही है और सरकार को इस स्थिति में हेल्प करनी चाहिए. इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि जब इस मामले का फैसला हुआ तो ये कहा गया कि कुछ फ्रॉड नहीं था. इसलिए कोई भी सेटेलमेंट उसको फ्रॉड के ग्राउंड पर इनिशिएट या बंद किया जा सकता है. बिना फ्रॉड के उसको इनिशिएट नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट से झटका
इसमें सबसे खास बात ये है कि सरकार ने किसी तरह के फ्रॉड की बात नहीं कही थी. एक बार ये मामला उठा था कि क्या क्रिमिनल लाइबलिटी सेटेलमेंट में बंद की जा सकती है. ये जो निर्णय था और जो चैलेंज किया गया था, क्यूरेटिव पेटिशन के जरिए, ये इस बात पर नहीं था.
इसके अलावा, ये बात भी है कि जब आपने रिव्यू डाल दी और वो डिसमिस हो गई तो क्यूरेटिव पेटिशन का चांस, इतने सालों के बाद वो भी बिना फ्रॉड के ग्राउंड के, बहुत ही मुश्किल होता है. इसलिए सिर्फ एक बात जो सरकार ने कही थी, जो गवर्नमेंट यूनियन का स्टैंड था वो ये कि पहले जो नंबर ऑफ विक्टिम सोचे गए थे और जिनकी इंज्यूरी हुई थी, उससे काफी ज्यादा लोगों की इससे मौत हो गई थी. करीब दो गुनी ज्यादा मौत है और इंज्यूरी विक्टिम तो बहुत गुना ज्यादा है. लेकिन जब तक फ्रॉड की बात नहीं कही जाए, इसको सेट-ए-साइड करना मुश्किल था. इसलिए ये क्यूरेटिव पेटिशन खारिज हुई है.
मुख्यतौर पर इस मामले में यूनियन ने फ्रॉड का ग्राउंड नहीं लिया था कि उनके साथ कोई फ्रॉड हुआ या धोखा हुआ, जब उन्होंने सेटेलमेंट की. उन्होंने ये नहीं कहा था कि मुआवजा कम है. सरकार ने इसे ठीक तरह से इन्वेस्ट नहीं किया. इंश्योरेंस पॉलिसी नहीं निकाली.
एंडरसन क्यों ने चढ़ा हत्थे?
भोपाल गैस घटना के आरोपी एंडरसन की गिरफ्तारी के लिए पहले अमेरिका में केस डाला गया. अमेरिका ने कहा कि मैंटेनिबिलिटी इंडिया में है. इंडिया में मामला बड़ा था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने सीधे इस केस को ले लिया. एमाउंट सैलेटमेंट की ऑफर हुई और वो एक्सेप्ट हुई. उसकी एक्सेप्टेंस से ऑर्डर हो गया. लेकिन अब ये ग्राउंड के मृतक और इससे प्रभावित लोगों की संख्या काफी ज्यादा है, ये बात कोर्ट ने मानते हुए कि ये सच है, कोर्ट ने कहा कि ये ग्राउंड रिव्यू का नहीं है. इसलिए सरकार को मुआवजा देने के लिए अपने कोष से देना होगा.
मुझे लगता है कि मुआवजा जो उस वक्त दिया गया वो ठीक होगा. सिर्फ एक इश्यू आया था कि क्रिमिनल लाइबिलिटी थी या नहीं थी. अब देखिए, इतने साल बाद इस इश्यू को नहीं उठा सकते हैं. कोई न कोई जब लिटिगेशन होती है और उसका सेटेलमेंट होता है तो उसका एक एंड होना होता है.
अब मेरे ख्याल ये यूनियन कार्बाइड के हैंड कितनी बार बदल गए हैं और डाउ में चले गए हैं. उन्होंने इस सेटेलमेंट को देखकर आगे जो भी कदम बढ़ाया. अब इसके मालिक डाउ है. इसलिए कानून की नजर में एक स्टैच्यू ऑफ लिमिटेशन होता है. उसकी कानून की नजर में कुछ अहमियत है.
आप इतने साल बाद क्यूरेटिव पेटिशन डाले, उस बात को जो क्लोज हो चुकी है, जिसका सेटेलमेंट हो चुका है. कंपनी का मालिकाना हक बदल चुका है. ऐसे में अगर क्यूरेटिव पेटिशन खोली जाए तो इसके परिणाम बहुत ज्यादा होंगे.
वास्तव में कोर्ट के इस फैसले से भोपाल गैस पीड़ितों को झटका लगा है. हर केस का एक एंड होता है. कोर्ट ने ये नहीं कहा कि मुआवजा मत दीजिए. कोर्ट ने सरकार को झाड़ लगाते हुए कहा है कि सरकार ने ठीक से इन्वेस्ट नहीं किया है. इसलिए आरबीआई के पास 50 करोड़ रुपये पड़े हैं, उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.ये आर्टिकल सुप्रीम कोर्ट की सीनियर एडवोकेट गीता लूथरा से बातचीत पर आधारित है.]