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...और फिर सड़कों पर डंडे खाती कांग्रेस

मौका था केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस का राजभवन घेराव, जिसकी तैयारी लंबे समय से कांग्रेस कर रही थी. पहले जिलों में कांग्रेस नेता ट्रैक्टर रैलियां निकाल रहे थे तो अब बारी थी भोपाल में आकर राजभवन का घेराव और राज्यपाल को ज्ञापन देने की.

भोपाल के जवाहर चौक पर कांग्रेस का छोटा सा मंच था और इस छोटे से मंच पर प्रदेश कांग्रेस के सभी बड़े नेता मौजूद थे. मौका था केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस का राजभवन घेराव, जिसकी तैयारी लंबे समय से कांग्रेस कर रही थी. पहले जिलों में कांग्रेस नेता ट्रैक्टर रैलियां निकाल रहे थे तो अब बारी थी भोपाल में आकर राजभवन का घेराव और राज्यपाल को ज्ञापन देने की. सुबह साढे ग्यारह का वक्त दिया गया था घेराव का और हमारे पहुंचते एक बजने को थे मगर भीड़ भाड़ के नाम पर झंडे बैनर और गाडियां ज्यादा दिख रहीं थी कांग्रेस नेताओं की. इस कमजोर भीड़ पर अफसोस जताते हुये हमारे एक साथी ने कह ही दिया कि यार ये देख कर बडा दुख होता है कि इन कांग्रेसियों की कुंडली में इतना लंबा संघर्ष क्यों लिखा है? पंद्रह साल के संघर्ष के बाद सत्ता में आये और पंद्रह महीनों में ही बाहर होकर फिर सड़कों पर आ गये, डंडे खाने. ये बात सुनकर हमारे दूसरे साथी बोले तो क्या आज डंडे खायेंगे कांग्रेसी, नहीं यार पहले ही सेंटिंग हो गयी है. चूंकि इस कांग्रेस में उम्रदराज नेताओं की भीड़ ज्यादा है तो डंडे चमकाने की गुंजाइश नहीं है और बीजेपी की सरकार ने पुलिस से इतना तो कह ही रखा होगा कि भाई इन कमजोर कांग्रेसियों को डंडे मारकर ज्यादा कवरेज नहीं देना. वरना ये तो आये ही हैं डंडे खाने और अखबारों की खबरों में जगह पाने के लिये. और फिर डंडा खाओ सरकार में वापस आओ का नारा देने वाले 'दिग्गी राजा' तो मौके पर हैं ही.

और थोड़ी देर बाद ही कमलनाथ का काफिला मंच से भाषणों की औपचारिकताओं के बाद राजभवन की ओर चल पड़ा. कमलनाथ एक खुले छोटे से ट्रक पर थे, उनके साथ सुरेश पचौरी, अरूण यादव, जीतू पटवारी, रामनिवास रावत, सज्जन वर्मा और जयवर्धन सिंह साथ थे. मगर ऐसे मौकों पर कैमरों से दूर रहने वाले दिग्विजय सिहं पीछे की ओर हमेशा की तरह कैमरों की आंख से छिपे थे. कांग्रेस के इस प्रदर्शन के लिये जवाहर चौक से रंगमहल टाकीज के चौराहे होते हुये रोशनपुरा चौराहे तक एक डेढ किलोमीटर का रास्ता पूरी तरह खाली करवा लिया गया था.

ट्रैफिक रोका हुआ था और दुकानें भी बंद करवाई गयी थीं. सड़क पर बीच बीच में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के जत्थे कमलनाथ की रैली से जुड़ते जा रहे थे. मगर अनुभवी कार्यकर्ता समझ रहा था कि रास्ता चलने से नहीं बैरिकेड के पास झूमा झटकी करने से अखबारों में फोटो बनते हैं जो बाद मे सोशल मीडिया पर छाते हैं. इसलिये कमलनाथ के पहुंचने के पहले ही अच्छी खासी भीड़ जीटीबी कॉमप्लेक्स के सामने लगे कई परतों वाले बैरिकेड के पास पहुंच गयी थी. लोहे के बैरिकेड के इस पार यदि ढेर सारे जवान हैलमेट पहनकर हाथों में डंडे और शील्ड लेकर खड़े थे तो उस पार भी पूरी तैयारी थी. वाटर कैनन के दो ट्रक खड़े थे जिनके ऊपर खड़े सिपाही पूरे वक्त उनके नोजल का डायरेक्शन ठीक करने और पानी चलाकर टेस्टिंग करने में लगे थे. बैरिकेड के पास थोड़ी-थोड़ी देर में एनएसयूआई के कार्यकर्ता आकर पुलिस से उलझ रहे थे. पुलिस उनको बच्चा समझकर सिर्फ धक्का देकर दूर भगा रही थी. थोड़ा बहुत हल्का फुल्का लाठीचार्ज एक दो बार हो भी चुका था. मगर कमलनाथ के काफिले के आने का इंतजार हो रहा था.

कमलनाथ के ट्रक के बैरिकेड के पास आते ही धक्का मुक्की ओर नारेबाजी तेज हो गयी. भोपाल के लंबे छरहरे एसएसपी माइक लेकर बैरिकेड के उस तरफ से कांग्रेस नेताओं के नाम ले लेकर उपर नहीं चढ़ने का आग्रह कर रहे थे. इस बीच में एसडीएम ने कांग्रेस के बड़े नेताओं से ज्ञापन लिया और सारे बड़े नेता काफिले वाले ट्रक से उतर कर वापस जाने लगे. हम सबको भी लगा कि प्रदर्शन ठंडा ठंडा हो गया. मगर हमारी पीठ करते ही वाटर कैनन चल पड़ी बैरिकेड पर चढ़ने वाले कांग्रेसियों के ऊपर. पानी से भींग कर कांग्रेसी फोटो खिंचवा रहे थे मगर ये तो ट्रेलर था. पिक्चर अभी बाकी है कि तर्ज पर थोड़ी देर बाद ही फटाक फटाक आंसूगैस के गोले छूटने लगे. अब भागने की बारी कार्यकर्ताओं और हम मीडिया वालों की थी क्योंकि गोलों के साथ कांग्रेसियों को खदेड़ने के लिए पुलिस वालों के हाथ से डंडे भी छूटने लगे थे.

कांग्रेसियों को भागते देख पुलिस और हमलावर हो गयी. बस फिर क्या था आगे-आगे कांग्रेसी ओर पीछे डंडे फटकारती पुलिस. अब तक हम सबकी आंखों में गैस का असर होने लगा था, समझ नहीं आ रहा था इस बार आंखों के साथ चेहरे पर भी जलन क्यों हो रही थी. जीटीबी कॉमप्लेक्स के पीछे की गलियों में चाय की दुकानों से पानी लेकर लोग रूमाल भिगो कर आंखों में लगा ही रहे थे कि यहां भी पुलिस आ गयी और लगी खदेड़ने. अब तक प्रदर्शन का मजा देख रहे दुकानदार दुकानों के शटर बंद कर छिप से गये थे. कांग्रेसी देर तक दूर दूर तक खदेड़े जाते रहे. हांलाकि नेताओं के जाने के बाद ये लाठीचार्ज समझ से परे था.

हमने आंख धोते एक परिचित से पूछा नेताजी कैसा रहा प्रदर्शन तो उनका जबाव था बढिया रहा भाईसाहब, अब फोटो भी छप जायेगी और अच्छा कवरेज भी मिल जायेगा. प्रदर्शन से लौट रहे अधिकतर कांग्रेसियों के चेहरे पर ऐसा ही संतोष का भाव था. मगर मेरे मन में तो वही सवाल गूंज रहा था जो हमारे साथी ने शुरूआत में किया था. यार इन कांग्रेसियों की कुंडली में इतना संघर्ष और बार बार डंडे खाना ही क्यों लिखा है भाई?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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