नई दिल्ली: नीतीश कुमार एक कुशल प्रशासक और गंभीर किस्म के राजनीतिज्ञ हैं इसमें कोई शक नहीं है. सड़क, बिजली और कानून व्यवस्था के मामले में नीतीश का कामकाज बेहद शानदार रहा पर दुर्भाग्य से नीतीश इससे आगे सोच नहीं पाये. तीन-चार ऐसे क्षेत्र हैं जिसकी बदौलत नीतीश बिहार की तस्वीर बदल सकते थे.


पहला, नीतीश उद्योग धंधों का विकास नहीं कर सके. निवेशकों को बिहार तक लाने में वो नाकाम रहे. दूसरा, जब देश के बाकी राज्य आईटी के क्षेत्र में शहर दर शहर विकसित कर रहे थे तब बिहार में एक भी आईटी सेंटर नीतीश नहीं बना तैयार कर सके. तीसरा, नीतीश करीब 12 साल से बिहार के मुख्यमंत्री हैं लेकिन टाउन प्लान को लेकर उन्होंने कभी कुछ नहीं किया. उन्हें पता था आर्थिक स्थिति बेहतर होगी तो सड़कों पर समृद्धि रफ्तार पकड़ेगी पर पटना के आसपास एक नया कस्बा तक नहीं बना सके. चौथा, नीतीश बाकी चीजें नहीं भी कर पाये कम से कम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा काम कर सकते थे.


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बिहार के युवा छात्र आज भी लाखों की संख्या में देश के दूसरे राज्यों में उच्च शिक्षा के लिए पलायन कर रहे हैं. नीतीश ने अगर कुछ उच्च दर्जे के विश्वविद्यालय, कॉलेज, तकनीकी संस्थायें शुरू की होती तो नि:संदेह नीतीश लाखों बिहारी युवाओं के भाग्य विधाता कहलाते. बिहार के स्कूली शिक्षा का क्या हाल है वो तो आज के बिहार बोर्ड के रिजल्ट से साफ हो ही गया है. 12वीं के करीब 62 फीसदी छात्र परीक्षा पास नहीं कर सके.


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बिहार में सरकारी क्षेत्र के कॉलेजों की कुल संख्या 278 है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2000 के बाद महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों में हर साल 350 कॉलेज खुले, यानी एक दिन में एक कॉलेज लेकिन, बिहार में संबद्ध कॉलेजों की संख्या में सिर्फ 38 का इजाफा हुआ. वर्ष 2013 में ऐसे कॉलेजों की संख्या 378 थी, जो 2014 में बढ़कर 414 हुई. बिहार में प्रति एक लाख युवा आबादी (18 से 23 आयु वर्ग) के लिए सात कॉलेज हैं, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 27 कॉलेजों का है. दूसरी ओर पुड्डुचेरी में यह अनुपात 58 कॉलेजों का है. इसी तरह छात्र-प्राध्यापक अनुपात के मामले में बिहार सबसे पीछे है. यहां एक प्राध्यापक 47 छात्रों को पढ़ाते हैं, जबकि इसका राष्ट्रीय अनुपात 24 छात्रों का है. राज्य के कॉलेजों में वर्ष 2003 के बाद से प्राध्यापकों की नियुक्ति नहीं हुई है. राज्य के कॉलेजों में शिक्षकों के करीब सात हजार से ज्यादा पद खाली हैं.


नीतीश कुमार महत्वाकांक्षी नेता हैं. उनके पास वर्तमान कार्यकाल का करीब तीन साल का हिस्सा बचा हुआ है. नीतीश अगर अपने बचे हुए समय में शराब की तरह शिक्षा को अभियान बनाकर काम करें तो सीएम की कुर्सी छोड़ते समय वो बिहार को एक बड़ी विरासत देकर जाएंगे.