बिहार में 'पेपर लीक माफिया' कैसे बन गए इतना ताकतवर?

एक जमाना वो भी था जब बिहार में खुलेआम नकल के जरिये परीक्षा पास करवाने वाले माफिया की तूती बोला करती थी. लेकिन 'सुशासन बाबू' कहलाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राज में पेपर लीक करने वाले माफिया ने जिस तेजी से अपने पैर पसारे हैं, उसने पूरे सिस्टम के खोखला होने की पोल खोलकर रख दी है. रविवार को बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा के पेपर लीक मामले से ये तो उजागर हो ही गया कि इस माफिया ने सरकार में अपनी जड़ें कितनी गहरी जमा ली हैं.
अफसरों की मिलीभगत के बगैर कैसे लीक हुआ पेपर
हालांकि इस मामले में अब तक चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें आरा कॉलेज के प्रिंसिपल भी शामिल हैं. ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा कि पेपर लीक करने के बदले में एक-एक परीक्षार्थी से कितना मोटा पैसा वसूला गया था, लेकिन इससे साबित होता है कि परीक्षा आयोजित करने वाले बीपीएससी के आला अफसरों की मिलीभगत के ऐसा हो पाना संभव ही नहीं था. नीतीश सरकार को तो इस परीक्षा में शामिल होने वाले युवाओं की तारीफ करनी चाहिए ,जिनकी जागरूकता के चलते और हंगामा करने के बाद पूरे मामले का खुलासा हुआ.
अगर हंगामा न हुआ होता, तो इस पेपर लीक के जरिये परीक्षा पास करने वाले न जाने कितने नौसिखिये अगले एक-दो साल में बिहार सरकार के अफसर बने होते और प्रतिभाशाली युवा तब भी सड़कों की खाक ही छान रहे होते. दरअसल, पिछले कुछ दशक के इतिहास पर गौर करें, तो बिहार में विश्विद्यालय से लेकर सरकारी सेवाओं के लिए होने वाली परीक्षाओं में प्रतिभाशाली व योग्य छात्रों को हाशिये पर धकेल कर ऐसे नकलबाज छात्र ही अव्वल रहे हैं.
क्यों बिहार को तवज्जो नहीं देते प्रतिभागी छात्र
बिहार से ताल्लुक रखने वाले अनेकों प्रतिभाशाली छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए कभी अपने राज्य को प्राथमिकता इसलिए नहीं दी, क्योंकि अव्वल तो वहां शिक्षा का स्तर ही इतना घटिया था और दूसरा, वह नकल करने-कराने के लिए सबसे बदनाम प्रदेश था. पिछले करीब चार दशक में दिल्ली में ऐसे दर्जनों आईएएस और आईपीएस अफसर बने हैं जिनका संबंध बिहार से है, लेकिन उन्होंने उच्च शिक्षा लेने और यूपीएससी की सिविल सर्विसेज परीक्षा पास करने के लिए बिहार को नहीं बल्कि दिल्ली को ही अपना केंद्र चुना. उनमें से आज भी कई अफसर दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में उच्च पदों पर आसीन हैं.
लेकिन रविवार को जो कुछ हुआ, वह बिहार की समूची परीक्षा-व्यवस्था के मुंह पर एक तमाचा है. हालांकि बिहार सरकार की आर्थिक औक साइबर अपराध शाखा ने इस मामले में जांच करते हुए आरा ज़िले के कुंवर सिंह महाविद्यालय से जुड़े चार अधिकारियों को गिरफ़्तार किया है, लेकिन असली मास्टरमाइंड की तलाश अब भी जारी है. आर्थिक औक साइबर अपराध शाखा के एडीजी नैयर हसनैन खान के मुताबिक चारों लोग आरा के कुंवर सिंह कॉलेज परीक्षा केंद्र से जुड़े हुए हैं. इनमें बरहरा के बीडीओ जयवर्धन गुप्ता जो कि डेप्यूटेड मजिस्ट्रेट थे, कॉलेज के प्रिंसिपल योगेंद्र प्रसाद सिंह (परीक्षा केंद्र के सेंटर सुपरिटेंडेंट), सुशील कुमार सिंह (लेक्चरर एवं सह-कंट्रोलर) और अगम कुमार सहाय (परीक्षा केंद्र के असिस्टेंट सेंटर-सुपरिटेंडेंट) शामिल हैं." ज़ाहिर है कि इन लोगों ने पेपर लीक करने के बदले में हर परीक्षार्थी से लाखों रुपये वसूले होंगे.
विपक्ष ने कसा नीतीश सरकार पर तंज
इसीलिए बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस मामले को लेकर नीतीश सरकार पर बिल्कुल सही तंज ही कसा है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा था कि "बिहार के करोड़ों युवाओं और अभ्यर्थियों का जीवन बर्बाद करने वाले बिहार लोक सेवा आयोग का नाम बदलकर अब "बिहार लोक पेपर लीक आयोग" कर देना चाहिए." लेकिन बड़ा सवाल ये उठता है कि अपनी ईमानदार और सुशासन वाली इमेज के दम पर चार बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके नीतीश कुमार ने इतने सालों में शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने की तरफ कोई ध्यान क्यों नहीं दिया? आख़िर ये कैसे हो सकता है कि नकल या पेपर लीक करने वाल माफिया दिनों दिन ताकतवर होता जाये और मुख्यमंत्री को इसकी भनक भी न लगे?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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