Bihar Politics: 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार की सरकार के मंत्रिमंडल का आज विस्तार होना है. कुल 31 नए मंत्री बनने वाले हैं जिसमें डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की आरजेडी ने 15 पद लेकर बाजी मार ली है. लेकिन नीतीश और तेजस्वी यादव के लिए अपनी सरकार का ये गठन चुनौतियों के कांटों भरे ताज से कुछ कम नहीं कहा जा सकता. हालांकि दोनों की जोड़ी ने अपने इस विस्तार में हर तरह का समीकरण साधने की कोशिश की है लेकिन राजनीति में सबको खुश रख पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है.


इसलिए कि मंत्रिमंडल के विस्तार में बिहार के पूर्वी हिस्से को पूरी तरह से नजरअंदाज करने की खबर है, लिहाजा दोनों ही पार्टियों के कई विधायक नाराज़ हो उठे हैं. लेकिन सवाल ये है कि उनकी नाराजगी दूर करने के लिए नीतीश-तेजस्वी की जोड़ी आखिर कितने विधायकों को निगमों/प्राधिकरणों का अध्यक्ष बनाकर उन्हें मंत्रीपद का दर्जा देने की रेवड़ियां बांटेगी? उधर, कांग्रेस में भी मंत्री बनने वालों के नाम सामने आते ही विधायकों का ऐसा जबरदस्त गुस्सा फूटा कि सोमवार की शाम पटना स्थित पार्टी कार्यालय में जमकर हंगामा भी हुआ. कांग्रेस को जदयू के कोटे से महज 2 मंत्रीपद ही मिले हैं, इसलिये उसकी हालत भी आरजेडी व जेडीयू की तरह ही है और उसके लिए भी अपने विधायकों की नाराजगी दूर करना किसी चुनौती से कम साबित नहीं होने वाला है.


नाराजगी का जो उफान जेडीयू में आया है, वह थोड़ा ज्यादा चौंकाने वाला है. ऐसी खबरें हैं कि मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने से जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी नाराज हो गए हैं. उनकी नाराजगी का आलम भी ऐसा कि वो बिहार से ही बाहर निकल गए हैं. जेडीयू सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक वो मंत्रियों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के बाद 19 अगस्त को पटना वापस लौटेंगे. हालांकि पार्टी के कुछ सूत्रों का दावा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनसे फ़ोन पर चर्चा करके उन्हें मनाने की कोशिश की है लेकिन सवाल यही है कि क्या वे इतनी आसानी से मान जायेंगे?


दरअसल, सोमवार की शाम सीएम नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेता व बिहार के प्रभारी भक्त चरण दास के बीच हुई बैठक में मंत्रिमंडल विस्तार का जो फॉर्मूला तय हुआ है, उसके मुताबिक आरजेडी के 15, जेडीयू के 12, कांग्रेस के दो, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा यानी हम से एक और एक निर्दलीय विधायक मंत्री पद की शपथ लेंगे. जबकि विधानसभा अध्‍यक्ष का पद आरजेडी के खाते में जा सकता है. आरजेडी के नेता अवध बिहारी चौधरी के बिहार विधानसभा के नए स्‍पीकर बनने की संभावना है.


सात पार्टियों के महागठबंधन वाली सरकार में फिलहाल वाम दलों से किसी को भी मंत्री नहीं बनाया जा रहा है लेकिन जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्‍तानी अवाम मोर्चा को जरुर एक मंत्रीपद मिल गया है. मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन को मंत्री बनाया जाएगा. हालांकि वह पिछली सरकार में भी मंत्री थे लेकिन ये परिवारवाद को ही बढ़ावा देने की मिसाल है.आम जनता को नसीहत देने वाले केंद्र से लेकर राज्यों के अधिकांश नेता इसमें समान रुप से भागीदार हैं लेकिन राजनीति में वे अपना पुत्र या पुत्री मोह त्यागने को जरा भी तैयार नहीं हैं.


वैसे मंत्रीपद की शपथ लेने वालों के नाम की लिस्ट फाइनल होने के बाद आरजेडी और जेडीयू के विधायकों व नेताओं की नाराजगी जिस तरह से खुलकर सामने आई है, उसकी कल्पना न तो नीतीश को थी और न ही तेजस्वी को. लेकिन ये बिहार की राजनीति की वह तस्वीर पेश करती है, जहां क्षेत्रीय दलों में न तो अनुशासन है और न ही उनके नेताओं में अपनी पार्टी के प्रति समर्पण व निष्ठा की ही कोई भावना है.


विधायक निर्वाचित होने वाला हर नेता मंत्री बनने के लिये लालायित रहता है और पद न मिलने पर वो पार्टी के ख़िलाफ़ बग़ावत करने पर उतर आता है. दरअसल,बिहार के पूर्वी हिस्से से एक भी विधायक को मंत्री नहीं बनाने की खबर से आरजेडी में भी खासी नाराजगी सामने आई है. इसके अलावा, बांका, भागलपुर, मुंगेर, शेखपुरा, नवादा और नालंदा जिला से भी किसी विधायक को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने पर भी उनके समर्थक नाराज बताए जा रहे हैं. इसलिये बड़ा सवाल ये है कि गैरों के साथ ही अपनों के बिछाये इन कांटों को नीतीश-तेजस्वी की जोड़ी क्या इतनी आसानी से दूर कर पायेगी?


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