अपनी जिम्मेदारी से आखिर क्यों भाग रहे हैं नीतीश कुमार?
शराबबंदी वाले बिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों ने प्रदेश की राजनीति में हाहाकार मचा दिया है, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गैर जिम्मेदाराना बयानों ने आग में घी डालने का काम कर दिया है. उन्होंने गुरुवार को विधानसभा में अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए कहा, "जो नकली शराब पिएगा वह तो मरेगा ही."
जिस सूबे में शराबबंदी का क़ानून लागू हो, उसके बावजूद वहां नकली शराब बनने और बिकने का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा हो और वहां का मुख्यमंत्री पीने वालों को ही कसूरवार ठहरा रहा हो, तो समझा जा सकता है कि राज्य के मुखिया की मृतकों के प्रति क्या और कितनी संवेदना है.
नीतीश कुमार का ये बयान अपनी जिम्मेदारी से भागने वाला है. होना तो ये चाहिए था कि वे इन 43 मौतों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए या तो अपने इस्तीफे की पेशकश करते या फिर शराबबंदी कानून को वापस लेने का ऐलान करते. सब जानते हैं कि शराब पीना एक सामाजिक बुराई है लेकिन उसके बावजूद ये बुराई बड़े पैमाने पर समाज का हिस्सा बन चुकी है. इस बुराई को खत्म करने के लिए नीतीश सरकार ने गुजरात की नकल करते हुए उससे भी ज्यादा सख्त कानून तो बना दिया, लेकिन उसके बुरे नतीजों के बारे में कभी नहीं सोचा.
बाहरी राज्यों से गुजरात जाने वाले लोगों को आवश्यक दस्तावेज दिखाने पर शराब खरीदने-पीने की छूट है. लिहाजा, वहां के शौकीनों के लिए शराब का वैसा अकाल नहीं है, जो हाल बिहार में है. कुछ महंगी कीमत पर ही सही लेकिन गुजरात के लोगों को ब्रांडेड शराब मिल ही जाती है.
चूंकि बिहार के कानून में बाहरी राज्यों के लोगों को भी ऐसी कोई छूट नहीं दी गई है इसलिए वहां महंगी कीमत पर सही शराब भी उतनी आसानी से नहीं मिलती. यह ही वजह है कि वहां नकली शराब बनाने वाला माफिया इतनी तेजी से फलफूल चुका है कि सरकार ने भी अभी तक उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं दिखाई है.
बिहार में शराबबंदी को सफल बताते हुए इस पर उठाए ज़ा रहे सवालों को लेकर नीतीश कुमार ने दलील दी है, "सारे दल के लोगों ने मिलकर ये फैसला किया था. एक-एक लोगों ने शपथ ली थी. समाज में आप कितना भी अच्छा काम कर लें लेकिन कोई न कोई तो गड़बड़ करेगा ही. क्राइम को रोकने के लिए कानून बना है लेकिन तो भी हत्या होती है."
नीतीश की इस दलील को ही अगर हम मान लें तो फिर सवाल उठता है कि समाज में लोगों को सही दवा-दारू उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी अगर सरकार की नहीं तो और किसकी है? जिस तरह नकली दवाओं के सेवन से यदि लोग मरते हैं, तो उसके लिए सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. ठीक वैसे ही कानून होने के बावजूद नकली शराब पीने से लोगों की मौत होती है, तो उसके लिए भी सरकार उतनी ही जिम्मेदारहै. सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है.
वैसे भी बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से नकली शराब का कारोबार जिस तेजी से बढ़ा है, उससे साबित होता है कि नीतीश सरकार का ये कानून बेअसर हो चुका है. पिछले छह साल में जहरीली शराब पीने से दो सौ से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और ये सिलसिला लगातार जारी है.
अवैध शराब माफिया पर नकेल कसने को लेकर पूछे गए सवाल पर हालांकि नीतीश कुमार ने यही कहा, "हमने कहा कि जो यह असली काम कर रहा है उसको पकड़ो. जो गरीब है और ऐसे ही कर दिया है, तो उसको समझाना है." लेकिन ये टरकाने वाला जवाब है और इससे लगता है कि सरकार ऐसी मौतों को रोकने के लिए कोई ज्यादा गंभीर नहीं है.
यह ही वजह है कि नीतीश के पुराने सहयोगी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने शराबबंदी योजना को विफल करार देते हुए इसे 48 घंटे के अंदर रद्द करने की मांग की है. साथ ही उन्होंने इसके लिए बीजेपी, नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव पर निशाना साधा और सबको शराबबंदी की विफलता के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
प्रशांत किशोर के मुताबिक नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग खुद शराब पीते हैं. फिर नीतीश कुमार के सामने लंबी-लंबी बातें करते हैं. जो भी नीतीश कुमार को जानते हैं वे सब इस बात से परिचित हैं कि उनके इर्द-गिर्द जो अफसर रहते हैं वे शराब पीते हैं. प्रशांत किशोर ने शायद ठीक ही कहा है कि ये बड़ी हास्यास्पद बात है किसी राज्य का मुख्यमंत्री किसी जिले के डीएम, एसपी को बुलाकर कहते हैं कि आप कसम खाएं कि आप शराब का कारोबार करने वाले लोगों को पकड़ कर कार्रवाई करेंगे.
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