नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत कर के क्या हासिल करना चाहते हैं कुशवाहा?
बिहार की सत्ता पर काबिज़ जेडीयू में जो घमासान छिड़ा हुआ है उसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ खुली बगावत का ऐलान माना जा रहा है. एक वक्त नीतीश के सबसे खास माने जाने वाले पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने उनके खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने 19-20 फरवरी को जेडीयू के तमाम प्रमुख लोगों की एक बैठक बुलाई है जिसमें पार्टी के सभी नेताओं की आमंत्रित किया गया है. सवाल उठता है कि नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलकर उपेन्द्र कुशवाहा आखिर हासिल क्या करना चाहते हैं?
वे पार्टी के भीतर अपना वजूद सीएम से भी ज्यादा बड़ा बनाना चाहते हैं या फिर वे इस बगावत के बहाने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने का बहाना तलाश रहे हैं? वजह चाहे जो भी हो लेकिन कुशवाहा की इस मुहिम ने जेडीयू को कमजोर करने की जो कील ठोंक दी है वह 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए खतरे की बड़ी घंटी है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के वक़्त जेडीयू, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए की सहयोगी थी और तब वह 16 सीटें जीतकर लोकसभा की सातवीं सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.
हालांकि उसके बाद साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में वह अपने गढ़ में ही इतनी कमजोर हो गई कि उसे कुल 243 सीटों में से महज 45 सीटों पर ही जीत मिली. जबकि बीजेपी 77 सीटों पर जीत हासिल करके बड़ी ताकत बनकर उभरी. कम सीटें मिलने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए नीतीश कुमार को ही सीएम बनाने का फैसला लिया और जिससे बीजेपी के नेता नाराज भी रहे लेकिन अनुशासन के चलते खुलकर विरोध नहीं कर पाये.
राजनीति के घाट-घाट का पानी पी चुके नीतीश ने पिछले साल अपना रंग दिखा दिया और बीजेपी से नाता तोड़कर तेजस्वी यादव की आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना ली. यही फैसला अब उनके गले की फांस बन गया है और इस मुद्दे को उछालने वाले उपेन्द्र कुशवाहा अब नीतीश से जवाब मांग रहे हैं कि वे बताते क्यों नहीं कि सरकार बनाने के लिए आरजेडी से क्या डील यानी सौदेबाजी हुई थी. बता दें कि हाल ही में उपेन्द्र कुशवाहा ने आरोप लगाया था कि पार्टी ने संसदीय बोर्ड का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना कर उन्हें झुनझुना थमा दिया है और पार्टी के किसी भी फैसले में उनकी राय नहीं ली जा रही है. उनकी ये भी मांग है कि राजद और जदयू ने पिछले साल गठबंधन करने का जो फैसला किया था उसे लेकर हुई कथित ‘‘डील’’ की अफवाहों के पीछे की सच्चाई क्या है इसे नीतीश सामने क्यों नहीं लाते.
हालांकि बीजेपी ज्वाइन करने की अफवाहों पर उपेन्द्र कुशवाहा कहते हैं कि जो मेरे बीजेपी में शामिल होने की अफवाह फैला रहे हैं उनके पास मेरे सवालों के जवाब नहीं हैं. मैं बीजेपी में क्यों शामिल होना चाहूंगा? मैं जद (यू) की रक्षा करने की कोशिश कर रहा हूं मैं इतने लंबे समय से जद (यू) की रक्षा के लिए काम कर रहा हूं लेकिन सीएम नीतीश कुमार इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं और इसलिए मैंने पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई है ताकि हम इस पार्टी को बचाने का हल निकाल सकें.
सवाल उठता है कि नीतीश कुमार को बड़ा भाई कहने वाले उपेन्द्र कुशवाहा आखिर उन पर इतना गुस्सा क्यों हैं? इसलिए कि दो बार जेडीयू छोड़ने वाले कुशवाहा की वापसी नीतीश ने ही कराई थी. हालांकि कुशवाहा के इस गुस्से की मोटे तौर पर तीन वजह ही अब तक सामने आ रही है. सियासी जानकार मानते हैं कि कुशवाहा खुद को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी मानते रहे हैं लेकिन तेजस्वी यादव के साथ आने से उनके अरमानों पर पानी फिर चुका है. जेडीयू में शामिल होने के बाद माना जा रहा था कि नीतीश, कुशवाहा को शिक्षा मंत्री बनाएंगे लेकिन डेढ़ साल बाद भी उन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है. तीसरी बड़ी वजह ये है कि कुशवाहा काराकाट सीट से अगले लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं लेकिन नीतीश कुमार ने अभी तक इसकी हरी झंडी नहीं दी है. इससे कुशवाहा के समर्थक भी मायूस हो रहे हैं.
हालांकि कुशवाहा के बागी रुख को देखते हुए नीतीश कुमार ने उनके आगे झुकने या उन्हें कोई तवज्जो देने की बजाय सीधे तौर पर उनसे पल्ला झाड़ लिया है. नीतीश ने साफ शब्दों में कह दिया कि उन्हें जहां जाने का मन है वे जा सकते हैं. नीतीश के इस बयान का सीधा मतलब है कि कुशवाहा उनके मिशन में फिट नहीं है. नीतीश लोकसभा चुनाव की लड़ाई के लिए मिशन 2024 में जुटे हैं और उसी के मद्देनजर वे प्रदेश में 'समाधान यात्रा' निकाल रहे हैं. जाति आधारित जनगणना के नतीजों के आधार पर वे नये सिरे से जातीय समीकरण बनाते हुए संगठन को मजबूत करने की तैयारी में भी हैं. ऐसे में कुशवाहा की बगावत ने उनकी टेंशन बढ़ा दी है इसलिये नीतीश भी अब इस मूड में आ गये हैं कि जितनी जल्द ही हो सके कुशवाहा खुद ही पार्टी को अलविदा कह दें.
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