बिहार की राजनीति में बाहुबलियों की धमक, हो गयी हो जैसे 1990 के दौर की वापसी
देश में लोकसभा चुनाव दूसरे चरण से तीसरे चरण की ओर प्रस्थान कर रहे हैं. वहीं बिहार की राजनीति में 90 के दशक की वापसी की बातें हो रही हैं. 90 के दशक में माफिया, हिस्ट्रीशीटर बिहार की राजनीति में बहुत सक्रिय थे. उस वक्त हाईकोर्ट ने बिहार की स्थिति के बारे में बहुत सख्त टिप्पणी की थी, जो बाद में बिहार की पहचान के साथ चिपक ही गया. उसी दौर में राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण का चरम था और बिहार की राजनीति और बाहुबल को पर्याय माना जाने लगा.
बाहुबलियों का दौर लौटा
बिहार को बाहुबल से जोड़ने वालों ने पिछले दौर में पिछले दौर में शहाबुद्दीन के दौर से तुलना की है. शहाबुद्दीन के दौर की व्याख्या करें तो उस समय शहाबुद्दीन जब जेल में होते तो जेल अधीक्षक की कुर्सी पर बैठते और अधीक्षक जमीन पर शहाबुद्दीन के साथियों के साथ, ये सब मन्वंत चौधरी और एन आर मोहंती के सामने घटित हुआ था. कुछ ऐसा ही अनंत सिंह क मामले में था. लोकसभा चुनावों के बीच अनंत सिंह हाल ही जेल से 15 दिन की पेरोल पर छूटे हैं. वह बाढ़ जाएंगे, साथ ही मुंगेर में उनके प्रभाव के बारे में सब जानते हैं, इस सब से मतदान पर क्या फर्क पड़ेगा, उसका अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे ही शहाबुद्दीन का क्षेत्र सिवान को माना जाता था, वहां से उनकी पत्नी हिना शहाब चुनावी मैदान में हैं.
हाल ही में तस्वीर आईं जिसमे दर्जनों लोग भगवा गमछा पहने दिख रहे हैं, साथ ही हिना सहाब भी बुर्के के साथ भगवा गमछा पहने नजर आईं इसका मतलब सिवान में धर्म आधारित राजनीति को किनारे कर एक बाहुबली की पत्नी को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है और राजनीतिक चालें चलीं जा रहीं हैं . ऐसे ही मुंगेर से महतो की पत्नी चुनाव लड़ रहीं हैं. पिछले साल कानूनों को किनारे कर जेल से बाहर आए आनंद मोहन की पत्नी भी शिवहर से चुनाव लड़ रहीं हैं. उस दौर में आनंद मोहन के प्रतिद्वंदी पप्पू यादव हुआ करते थे, पप्पू यादव पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव लड रहे हैं पूर्णिया में राजद ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया है अब मुकाबला एनडीए और पप्पू यादव के बीच है.
सरकार का अपराध-नियंत्रण
जब हम प्रत्याशियों की बात करते हैं, तो दलीय मतभेद नहीं दिखते. हरेक दल के अपने-अपने बाहुबली हैं. आरजेडी के दरभंगा से प्रत्याशी ललित यादव के खिलाफ हाल ही में आरोप लगा कि उन्होंने अपने ड्राइवर और अन्य के साथ मारपीट की और नाखून भी निकाल लिए साथ ही एक स्वर्ण व्यवसायी के कत्ल में भी उन पर आरोप लगे हैं. यह सब हिंसक अपराध की श्रेणी में आते हैं, पर जंगल राज घोटालों के लिए भी जाना जाता था. 1990 से 2005 के बीच अगर केंद्र से 85 पैसा आता और गरीब तक केवल 15 पैसा पहुँचता था तो इसका कारण घोटाले थे. ऐसे व्यक्ति जिन पर घोटाले, वित्तीय अनियमिताओं के आरोप थे वे भी इन चुनावों में परोक्ष रूप से शामिल हैं. प्रशासन की ओर से जब कमजोर को न्याय मिलना बंद होता है, ऐसे में आप न्याय की तलाश करेंगे ही ऐसे वक्त में गरीब बाहुबलियों के पास पहुँचता है. इन बाहुबलियों में कुछ ऐसे हैं, जिनके हिंसक अपराधों से समाज को कोई व्यापक नुकसान नहीं होता पर ऐसे में इन बाहुबलियों के चेले चपाटे भी भूमिका में आते हैं. जैसे शिल्पी गौतम कांड, इसका अच्छा उदाहरण है.
इस कांड में सबसे ज्यादा नाम साधू यादव का उछला था. साधू यादव एक मुख्यमंत्री के साले थे और एक मुख्यमंत्री के भाई. जब महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार होता है तो ऐसे में मुख्य अपराधियों के साथ अन्य अपराधी कौन हैं और वे कौन से अन्य अपराध कर रहे हैं, इसका हिसाब नहीं रखा जा सकता. सारी निगाहें उसी पात्र पर होती हैं. अपराधियों के पनपने और अपराधों के होने का मुख्य कारण सरकार की न्याय दिलाने में विफलता के साथ गरीब को उचित और मूल व्यवस्था दिलाने में सरकार की विफलता है. जब अपराधी गरीब को लुटे हुए खज़ाने में से 1 हज़ार देता है तो ऐसे में वही व्यक्ति आगे चलके उसकी पुलिस से सुरक्षा करता है. जब ऐसी साइकिल समाज, राज्य , शहर में शुरू होती है, ऐसे में इसे तोड़ पाना मुश्किल होता है. नीतीश कुमार ने इसे एक बार तोडा था, लेकिन अब वे इसे प्रश्रय दे रहे हैं.
जंगलराज को समझिए .
जंगलराज को समझने से पहले पुलिस की परिभाषाओं पर ध्यान देना होगा जिनमें एक होती है हिंसक अपराध और अहिंसक अपराध की परिभाषा. अहिंसक अपराध जैसे चोरी जिसमे किसी दूसरे व्यक्ति को क्षति न पहुंचाई गयी हो, ऐसे ही घोटाला- ये अपराध तो हैं लेकिन इसको अंजाम देने के लिए कोई हिंसा नहीं की गयी होती. ऐसे ही जब हम जंगलराज की बात करते हैं तो केवल हिंसक अपराध इसमें शामिल नहीं है बल्कि जंगलराज के समय अहिंसक अपराधों की संख्या भी बढ़ी थी जिससे समाज का हर तबका प्रभावित होता था. अगर 500 बच्चों के स्कूल में 1 बचे को अगवा किया जाता था तो इसका प्रभाव एक बच्चे के परिवार तक सीमित नहीं हैं ,बल्कि पूरे 500 परिवारों पर हैं.
ये उसी प्रकार है जब हम पहले से तैयार जमीन पर बीज बोने के बाद सिंचाई कर दें , ये फसल बहुत तेजी से लहलहाएगी. अगर बिहार में अपराध की फसल ऐसे ही उगती रही तो अगले चुनाव तक आप बिहार में एक बार फिर जंगल राज के समय(1990-2005) जितनी अपराधों की फसल देखेंगे. अब आप इसे जंगलराज 2 या जंगलराज 3 या कोई और नाम दे सकते हैं .
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]