बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कल्याणा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है. उनका ये कदम ऐसे वक्त पर उठाया गया जब पटना में 23 जून को विपक्षी एकता के नाम पर बड़ी बैठक होने जा रही है. ऐसे में ये सवाल उठना है कि बिहार की पॉलिटिक्स में संतोष मांझी के इस्तीफे का क्या कुछ असर होगा? दरअसल, अगले साल लोकसभा का चुनाव है, ऐसे में स्वभाविक रुप से महागठबंधन में जो भी दल है, वो अपनी सीट बारगेन करने की कोशिश करेगा. 


हाल के महीनों में जीतन राम मांझी महागठबंधन में साथ रहते हुए असहज महसूस कर रहे थे. कई ऐसे अवसर आए जहां पर उन्होंने खुले तौर पर ऐसे बयान दिए, जिससे मुख्यमंत्री तक को परेशानी हुई थी. इसका सबसे बड़ा उदाहरण आपको बताएं- बिहार में शराबबंदी कानून लागू है. लेकिन शराबबंदी का जो कुछ हश्र आज बिहार के अंदर है, उसके खिलाफ सबसे ज्यादा अगर कोई मुखर सरकार में रहते हुए रहे तो वो थे जीतन राम मांझी.


सरकार में रहकर मुखर जीतन राम मांझी


उनका कहना था कि जो ये शराबबंदी है, इससे गरीब-गुरबा लोग अधिक प्रताड़ित हो रहे हैं. जो बड़े लोग पीने वाले हैं वो तो पकड़े नहीं जाते हैं, और गरीब लोग इसमें पकड़े जाते हैं. शराबबंदी फेल हो गई है. कानून में इसे खुले तौर पर बिहार में बेचने की इजाजत नहीं है, लेकिन शराब जहां पर चाहिए वहां पर मिल रही है. इसमें चार लाख से अधिक लोग मुकदमे में फंसे हुए हैं या जेल में हैं, जो केस वापस लेने की बात कर रहे हैं. नीतीश कुमार इससे बहुत असहज महसूस करते थे.



इधर, कई ऐसे बयान जीतन राम मांझी के आए, जिसमें वे कहते थे कि हम जेडीयू के साथ रहेंगे. वे नीतीश कुमार के नेतृत्व के कौशल की सराहना भी करते थे. उन्होंने कसम भी खाने की बात की थी लेकिन दूसरी तरफ वे ये भी कह रहे थे राजनीति में कसम का कोई महत्व नहीं होता है. जब हमारी पार्टी की उपेक्षा होगी तो कार्यकर्ता यदि चाहेंगे तो हम और दूसरा राह भी अपना सकते हैं. हाल के दिनों में उन्होंने मुख्यमंत्री से तीन-चार विधायकों के साथ भेंट भी की थी.


उसी में ये बात सामने आयी कि मुख्यमंत्री ने साफतौर पर कहा कि आप अपनी पार्टी हम (HAM) का जेडीयू का विलय कराइये. लोकसभा का चुनाव आपको याद होगा जब नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यंमत्री बनाया था, उसके पहले लोकसभा का चुनाव हुआ था. उस चुनाव में जीतन राम मांझी भी कैंडिडेट थे और उनकी जमानत तक नहीं बच पाई थी.


नीतीश ने रखी शर्त


नीतीश कुमार ने ये शर्त रखी कि अगर लोकसभा का चुनाव लड़ना है तो पहले पार्टी का विलय कराइये. उसके बाद हम विचार करेंगे. उनको कोई आश्वसन या भरोसा नहीं था. दूसरी बात ये है कि जब महागठबंधन की सरकार बनी उस समय जीतन राम मांझी दो पद चाहते थे. हालांकि, विधायक उनके चार हैं, और मंत्री सिर्फ उनका एक बेटा ही है, उनकी पार्टी की तरफ से. उनके बेटे के पास अनुसूचित जाति/जनजाति के अलावा जल संसाधन विभाग था, जिसे ले लिया गया था. इसको लेकर भी वे नाराज थे. 


कुल मिलाकर जीतन राम मांझी पहले से नाराज थे और उनके इस तरह के बयान से सरकार आहत हो रही  थी. 23 तारीख की बैठक से पहले हम भी एक पार्टी है, लेकिन नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को आमंत्रण नहीं दिया था. संतोष सुमन भले ही नीतीश कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन महागठबंध से अलग होने की उन्होंने बात नहीं की है.


बिहार में राजनीति की दो ही धारा है, एक तरफ नीतीश और दूसरी तरफ राजद है. ऐसे में उनकी राह या तो राजद या एनडीए की ओर होगी. लेकिन 6 मई 2024 तक संतोष कुमार की विधान परिषद में सदस्यता बची हुई है.




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