प्रशांत किशोर कोई राजनेता या पदाधिकारी नहीं हैं. वे एक कॉर्पोरेट कंपनी के मैनेजर/ निदेशक हैं. वे पैसा लेकर राजनीतिक दलों के लिए मार्केटिंग का काम करते हैं. वे बगैर पैसा का कोई भी काम नहीं करते हैं. उन्होंने भाजपा, कांग्रेस, जदयू, राजद, सहित कई दलों से पैसा लेकर कॉर्पोरेट स्तर पर अपना आईडिया बेचते हैं और ऑनलाइन मार्केटिंग का काम करते हैं.
नीतीश कुमार ने उन्हें नेता बनाने का प्रयास किया और जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया. कुछ विवाद के कारण उन्होंने नीतीश से नाता तोड़ लिया. प्रशांत किशोर आज नीतीश कुमार और आरजेडी की सरकार को जंगल राज कह रहे हैं, लेकिन 2015 में तो उन्होंने पैसा लेकर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के लिए काम किया था. उस समय तो उन्होंने नीतीश कुमार की शिक्षा व्यवस्था को बहुत बेहतर बताया था और तेजस्वी यादव का गुणगान करते रहते थे.
आज वे बोल रहे हैं कि नीतीश कुमार जैसे पढ़े-लिखे व्यक्ति के रहते बिहार की शिक्षा व्यवस्था का ध्वस्त हो जाना काला अध्याय है. उनकी इस बात में काफी हद तक सच्चाई है. प्रशांत किशोर की बातों में सच्चाई है, लेकिन मुझे लगता है कि आज भी वे एक कॉर्पोरेट मैनेजर के रूप में किसी न किसी दल या व्यक्ति से पैसा लेकर उसके लिए काम कर रहे हैं. वे किसी पार्टी के एजेंट के रूप में बिहार भ्रमण कर रहे हैं और बिहार की जनता की नब्ज टटोल रहे हैं और जमीनी रिपोर्ट उस दल को दे रहे हैं.
आप देख रहे होंगे उनकी इस बार की यात्रा में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव टारगेट हैं. नीतीश कुमार जब भाजपा के साथ थे तो भी वे भाजपा के खिलाफ कुछ नहीं बोलते थे, केवल नीतीश कुमार के खिलाफ बोलते थे. अब जब नीतीश और तेजस्वी एक हो गये हैं, तो प्रशांत किशोर को जंगल राज और शिक्षा व्यवस्था में खामियां नजर आ रही है. वे निश्चित तौर पर किसी न किसी दल से पैसा लेकर कॉर्पोरेट मैनेजर से कॉर्पोरेट नेता का लबादा ओढ़कर उस दल के लिए काम कर रहे हैं.
बिहार की शिक्षा व्यवस्था निश्चित तौर पर ध्वस्त हो गयी है. नीतीश कुमार ने शिक्षा में सुधार का प्रयास किया है, उसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है, लेकिन नौकरशाही और निजी स्कूलों के दबदबे के कारण शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं हो पा रहा है. शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए शिक्षा राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर शिक्षा नीति में बदलाव करना होगा. सरकार यह नीति बना दे कि सरकार से वेतन लेने वाले सभी लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ायेंगे. मंत्री, विधायक, जज, आईएएस, आईपीएस समेत जो भी सरकारी अधिकारी हैं, वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ायेंगे. जिस दिन यह हो जाएगा उस दिन बिहार ही नहीं देश के शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो जाएगा.
मुझे लगता है जनसुराज कैंपेन कोई प्रशांत किशोर का कैंपेन नहीं है. वे पैसा लेकर राजनीतिक दलों के लिए काम करते हैं. इस बार भी वे किसी राजनीतिक दल से पैसा लेकर उसके लिए काम कर रहे हैं. जनसुराज कैंपेन का कोई खास रिस्पांस नहीं दिख रहा है और न ही बिहार की राजनीति में उनके यात्रा का कोई प्रभाव पड़ेगा. जनसुराज कैंपेन में वे केवल नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के खिलाफ बोल रहे हैं. भाजपा के खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे हैं. इसलिए ऐसा लगता है कि वे इस बार भाजपा के कॉर्पोरेट मैनेजर बनकर राजनेता का लबादा ओढ़कर बिहार के जनता का मिजाज जान रहे हैं. उनके जनसुराज कैंपेन में ज्यादातर उनके कॉर्पोरेट कर्मचारी रहते हैं और एक जाति विशेष के लोग रहते हैं, जो बीजेपी के वोटर माने जाते हैं. उनकी यात्रा और कार्यक्रम की योजना एक महीने पहले बनाई जाती है. वे किसी दल के लिए बिहार के लोगों की नब्ज टटोल रहे हैं. बिहार की जनता के मनमिजाज का रिपोर्ट बनाकर उस दल को भेजेंगे. मुझे लगता है कि 500 से ज्यादा कर्मचारी को उन्होंने बहाल किया है बिहार में जनसुराज कैंपेन को सफल बनाने और रिपोर्ट तैयार करने के लिए.
प्रशांत किशोर किसी भी दल से पैसा लेकर उनके लिए काम कर सकते हैं, उनका गठबंधन कराके चुनाव जीता सकते हैं. बिहार की राजनीति में फिलहाल तो कहीं से भी वे फिट नहीं बैठ रहे हैं. मुझे नहीं लगता है कि बिहार के लोग प्रशांत किशोर को राजनीति में कोई समर्थन देंगे. यह बिहार की धरती है, यहां के लोगों के नस-नस में राजनीति है, फिर वे एक मैनेजर या कहिए कि कॉर्पोरेट एजेंट को अपना समर्थन क्यों देंगे.
प्रशांत किशोर कभी भी आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी का विकल्प नहीं बन सकते हैं. कॉर्पोरेट मैनेजर और सिर्फ़ पैसा के बल पर कोई राजनीति में सफल होता तो आज देश में टाटा, बिरला, अंबानी और अडानी प्रधानमंत्री बन गये होते. विकल्प बनने के लिए उन्हें किसी न किसी राजनीतिक दल का दामन थामना होगा तभी उन्हें अपने अभियान में सफलता मिलेगी.
वे पहले नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के पास भी गये थे बिहार के लिए प्लान बनाकर. अपनी कॉर्पोरेट कंपनी के माध्यम से वे सरकार बनवाने का दावा कर रहे थे. तेजस्वी और नीतीश कुमार ने जब उन्हें घांस नहीं डाला तो वे किसी और दल से पैसा लेकर उनके खिलाफ बोलते हैं. यह भी हो सकता है कि वे बीजेपी से पैसा लेकर उसके लिए काम कर रहे हों.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल राजनीतिक विश्लेषक संतोष कुमार से बातचीत पर आधारित है]