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बिहार में आरजेडी विधायक के जरिये ही बीजेपी कोई नया धमाका करने वाली है?

महज़ पांच महीने के भीतर ही बिहार की राजनीति में फिर से उबाल आता दिख रहा है और ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार को इस बार खतरा बाहर से नहीं बल्कि भीतर से है. आरजेडी के मुखर विधायक सुधाकर सिंह ने नीतीश के खिलाफ जिस तरह से मोर्चा खोल रखा है, उसे लेकर पटना से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में यही खुसर-फुसर है कि सुधाकर सिंह ने बीजेपी से ये सुपारी ले रखी है कि वे आरजेडी और जेडीयू के रिश्तों में इतनी तीखी कड़वाहट ले आएंगे कि सरकार गिरने की नौबत आ जाए, लेकिन सवाल उठता है कि इससे बीजेपी को क्या फायदा होगा क्योंकि नीतीश तो दोबारा बीजेपी से हाथ मिलाएंगे नहीं और लालू-तेजस्वी यादव की आरजेडी से ऐसी उम्मीद करने का कोई मतलब निकालना ही बेकार है. इसलिए सबकी निगाहें इस पर लगी हैं कि आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति कौन-सी नई करवट लेने वाली है.

हालांकि सियासत में हर संभावना मुमकिन है लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं दिखता कि आपसी मतभेद बढ़ जाने के बाद भी अगर नीतीश सरकार गिरने का खतरा पैदा हुआ तब भी बीजेपी इस हैसियत में नहीं है कि वो जोड़तोड़ करके सरकार बना ले, लेकिन सियासी गलियारों में एक कयास ये भी लगाया जा रहा है बीजेपी बेशक सरकार न बना पाए लेकिन अस्थिर राजनीतिक हालात का हवाला देते हुए केंद्र वहां राष्ट्रपति शासन लगाकर बिहार का रिमोट तो अपने हाथ में ले ही सकता है. हालांकि ऐसी अटकलबाजी का फिलहाल कोई ठोस आधार नहीं है, लेकिन एक सच ये भी है कि राजनीति हर घंटे बदलती रहती है इसलिए कोई भी पूर्वानुमान लगाना इतना भी आसान नहीं है.

दरअसल, तेजस्वी के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद से ही आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर व्यक्तिगत हमले करने का मोर्चा खोल रखा है. उन्हें नीतीश ने अपनी सरकार में कृषि मंत्री बनाया था लेकिन उन्होंने मंत्री बनने के बाद कैबिनेट की बैठक में अपने ही विभाग के लोगों को चोर और भ्रष्टाचारी बता दिया था. इसके बाद उनको बतौर कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था. तब से ही वे नीतीश पर अपनी पर्सनल खुंदक निकालने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. कभी वे नीतीश को शिखण्डी बताते हैं तो कभी कहते हैं कि उनकी भूमिका तो सिर्फ नाइट वॉचमैन की थी, जिन्हें कुछ दिन तक सीएम पद पर रहने के बाद ये कुर्सी तेजस्वी यादव को सौंपनी थी लेकिन अब वे उससे चिपक गए हैं.

हालांकि नीतीश ने सुधाकर के बयानों को कोई तवज्जो न देते हुए इतना ही कहा है कि आरजेडी में कौन क्या बोलता है, करता है, ये उनका आंतरिक मामला है. मैं इसकी सिरदर्दी मोल नहीं लेता लेकिन जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने तेजस्वी यादव को साफ लहज़े में चेतावनी देते हुए कहा कि अपने विधायक को समझाइए और बताइए कि राजनीति में भाषाई मर्यादा की बड़ी अहमियत होती है. वे उस शख्सियत को 'शिखंडी' कह रहे हैं, जिन्होंने बिहार को उस खौफनाक मंजर से मुक्ति दिलाने की 'मर्दानगी' दिखाई थी. वह भी तब जब उसके खिलाफ कुछ भी बोलने के पहले लोग दाएं-बाएं झांक लेते थे. 

ऐसे बयानों से प्रदेश की लाखों-करोड़ों जनता और जेडीयू के कार्यकर्ताओं की भावना को चोट पहुंचती है. ऐसे बयानों पर जितनी जल्दी रोक लगे उतना सही होगा. महागठबंधन के लिए और शायद आपके लिए भी. इस चेतावनी के बाद आरजेडी नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को मैदान में कूदना पड़ा. दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि आरजेडी के अधिवेशन में तय हुआ था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के अलावा और किसी का हक नहीं है कि वह नेतृत्व पर टिप्पणी करे. तेजस्वी के मुताबिक अगर कोई नेता ऐसा करता है तो ऐसा नेता बीजेपी का समर्थक होता है.

ये कहकर एक तरह से तेजस्वी यादव ने भी सुधाकर सिंह को बीजेपी का एजेंट बता दिया. तेजस्वी ने इस मामले को गंभीरता से लिए जाने की बात करते हुए साफ कर दिया कि महागठबंधन सरकार या नेतृत्व के बारे में किसी भी तरह का बयान देने का अधिकार सिर्फ आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और मुझे है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि तेजस्वी यादव की इस चेतावनी को अनसुना करते हुए महज़ घंटे भर बाद ही सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार को भीखमंगा बताने वाला बयान दे डाला. लिहाज़ा, इन तेवरों को देखकर सवाल उठता है कि सुधाकर सिंह क्या आरजेडी को तोड़ने की कोई खिचड़ी पका रहे हैं और ये भी कि क्या जेडीयू के कुछ विधायक भी उनके संपर्क में है? अगर ऐसा होता है,तो फिर ये आरोप सही साबित हो जायेगा कि वे बीजेपी के इशारे पर खेल रहे थे लेकिन तब तक तो बीजेपी का मकसद पूरा हो चुका होगा!

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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