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ब्लॉग: यूपी में बेखौफ बदमाश, लचर कानून-व्यवस्था

बिजनौर की अदालत में पेशी के लिये आये आरोपी की गोली मारकर हत्या किया जाने के बाद राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। यह घटना पुलिस के बड़े अफसरों के दावों की हकीकत बता रही है। जमीन पर कुछ नजर नहीं आ रहा है

लॉ एंड ऑर्डर यानि कानून व्यवस्था आज उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर यूपी में हिंसक प्रदर्शन की घटनाएं पहले ही यूपी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं, लेकिन बिजनौर में कोर्ट रूम के अंदर घुसकर जज के सामने पेशी के लिए आए अपराधियों की हत्या ने प्रदेश की कानून व्यवस्था को कठघरे में ला खड़ा किया है। बिजनौर में जो हुआ वो कोई मामूली वारदात नहीं है, बल्कि घटना ने पुलिस के इकबाल पर सवालिया निशान लगा दिया। क्योंकि जब पेशी के लिए आए दो आरोपियों पर कोर्टरूम में गोलियां चलाई गईं, उस वक्त बिनजौर जिला कोर्ट के सीजेएम योगेश कुमार भी कोर्टरूम में मौजूद थे और फायरिंग में वो बाल-बाल बच गए। लेकिन जज के सामने सरेआम अपराधियों के इस दुस्साहस ने कानून व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है। अपनी हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में यूपी के डीजीपी से लेकर तमाम आला अफसर कानून व्यवस्था चुस्त दुरुस्त होने का दावा करते रहते हैं... लेकिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों से लेकर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सड़क पर उतरकर आगजनी और बवाल ने पुलिस के दावे की पोल खोल दी और बिजनौर की घटना के बाद ये साफतौर पर कहा जा सकता है कि यूपी में कानून-व्यवस्था वैसी तो बिल्कुल नहीं है जिसका दावा ओपी सिंह या बाकी अफसर करते हैं। बिजनौर कांड की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कड़ी निंदा की है, मुख्यमंत्री ने आज विधानसभा में इस घटना पर नाराजगी जताई

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून व्यवस्था को लेकर एक दिन पहले ही वरिष्ठ अफसरों को कड़ी फटकार लगा चुके हैं, बिजनौर कांड के साथ ही नागरिकता कानून को लेकर प्रदेश के कई हिस्सों में हुए हिंसक प्रदर्शन पर भी मुख्यमंत्री बेहद नाराज हैं हालांकि जब एबीपी गंगा ने कल डीजीपी ओपी सिंह से इसपर सवाल किया कि हिंसक प्रदर्शन का खुफिया इनपुट होने पर भी पुलिस ने पहले से इंतजाम क्यों नहीं किये, तो डीजीपी ओपी सिंह सवाल का जवाब दिये बिना निकल गए।

खैर.. जब कोई लाजवाब कर देने वाला सवाल सामने आ जाए... और उसका कोई वाजिब जवाब ना हो तो मौन साध लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता... लेकिन बिजनौर में अदालत में हुए कत्लेआम की घटना में भी लचर कानून व्यवस्था की जवाबदेही से बचने के लिए एक दारोगा समेत 16 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करते हुए... कार्रवाई की रवायत पूरी कर दी है। तो क्या अदालत में फायरिंग और खून-खराबे की जिम्मेदारी जिले के एसपी की नहीं है। अपराधियों के इस दुस्साहस के लिए क्या लॉ एंड ऑर्डर दुरुस्त रखने के लिए राजधानी लखनऊ में बैठे बड़े अफसर जिम्मेदार नहीं हैं? इसीलिये खुद हाईकोर्ट ने इस घटना पर स्वत संज्ञान लेते हुए यूपी के डीजीपी ओपी सिंह... समेत कई आला अफसरों और बिजनौर के सभी वरिष्ठ अधिकारियों को भी तलब किया है। इन सभी अफसरों को 20 दिसंबर तक हाईकोर्ट में पेश होना है। हाईकोर्ट ने बिजनौर की घटना को बेहद गंभीर कहते हुए सवाल पूछा है कि जब प्रदेश में अदालतें और जज सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर आम आदमी कैसे महफूज है।

अदालत में हुई हत्या की इस घटना के बाद अब सवाल उठ रहा है कि क्या जज के सामने हत्या हो जाना ही यूपी की कानून व्यवस्था की असली तस्वीर है? क्या हिंसक प्रदर्शनों पर लगाम लगाने में नाकाम आला अफसरों पर कार्रवाई होगी और हाईकोर्ट की नाराजगी और नोटिस के बाद क्या यूपी के डीजीपी समेत आला अधिकारी सिस्टम में सुधार करेंगे।

यूपी में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों को काबू करने में नाकाम उत्तर प्रदेश पुलिस पहले ही लॉ एंड ऑर्डर को लेकर कठघरे में है, लेकिन बिजनौर के कोर्टरूम में जिस तरह जज के सामने अपराधियों ने हत्या की वारदात को अंजाम दिया, उससे कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। डीजीपी के पास पुलिस की नाकामी के सवालों का जवाब नहीं है, हालांकि मामले में कुछ पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हुई है, लेकिन ये निलंबन सिर्फ रस्म अदायगी भर ना रह जाए इसलिए प्रदेश में कानून का इकबाल बुलंद करने के लिए जमीन पर काम कर रहे पुलिसकर्मियों के अलावा आला अफसरों की जवाबदेही तय करना सबसे ज्यादा जरूरी है।

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