आज दुनिया की जैव-विविधता एक बड़े संकट की ओर बढ़ रही है. जैव-विविधता आकलन और संरक्षण से जुड़ी संस्था आइयूसीएन (IUCN) द्वारा प्रकाशित ‘रेड डाटा बुक’ के मुताबिक वैश्विक स्तर पर लगभग सभी प्रजातियों के ‘संरक्षण स्थिति’ में असामान्य रूप से नकारात्मक बदलाव देखा गया है. 'लिविंग प्लैनेट' रिपोर्ट, 2022 की माने तो  पिछले आधी सदी में ही स्तनधारी, पक्षी, सरीसृप, उभयचर, और मछलियों की औसत संख्या लगभग दो-तिहाई तक घट गयी है. गैर-परंपरागत भूमि उपयोग, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, शिकार और अवैध व्यापार तथा इनवेसिव प्रजातियों  का नए इलाकों में प्रसार, जैव विविधता में व्यापक स्तर पर आने वाले बदलाव के कुछ प्रमुख कारक हैं. ग्लोबल बायोडाइवर्सिटी फ्रेमवर्क (GBF) जिसे 2022 में अपनाया गया, जैव-विविधता की क्षति को रोकने और मानवीय कार्यकलापों से होने वाले जीव-जन्तुओं के विलुप्तिकरण को तत्काल रोकने के लिए अनुबंधित करता है. इस क्रम में जैव-विविधता का समय-समय पर आकलन एक महत्पूर्ण पड़ाव है जो एक कठिन और जटिल प्रक्रिया है. हालाँकि कुछ जीव पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ के सूचक जैसे होते हैं, जिसमें तितली और पक्षी प्रमुख हैं. 


पक्षी हर जगह अच्छी खासी संख्या में पाये जाते हैं. इनकी आसानी से पहचान की जाती है. ये घुमंतू और पारिस्थितिकी तंत्र में छोटे से छोटे बदलाव के प्रति संवेदनशील होते हैं. इस प्रकार पक्षियों का आकलन उस क्षेत्र के जैव-विविधता में होने वाले बदलाव के लिए संकेतक का कार्य करती है. पर ‘रेड डाटा बुक के आँकड़ों के अनुसार ये खुद ही ‘मानवजनित’ ‘पर्यावरण विघटन’ की शिकार हैं. पक्षियों की लगभग आधी प्रजातियों की संख्या घट रही है, जबकि मात्र 6% प्रजातियों की संख्या में बढ़ोतरी का संकेत दे रही है. पिछले केवल 40-50 सालों में ही यूरोप और उत्तरी अमेरिका से पक्षियों की संख्या में कम से कम एक-तिहाई की कमी आई है. भारत में पक्षी विविधता संबधी विस्तृत और सिलसिलेवार अध्ययन की कमी के कारण संरक्षण का दायरा कुछ खास और बड़े पक्षियों तक सीमित रहा है. लेकिन आजकल अच्छी खासी संख्या, हर जगह पाया जाना, और आसानी से पहचान लिए जाने के कारण बड़े पैमाने पर पक्षियों की विविधता और उनकी संख्या के अध्ययन में जन सहभागिता यानि सिटिजन साइंस एक कारगर तरीका बन गया है.  



जन सहभागिता पर आधारित पक्षियों के वैश्विक ऑनलाइन सूचना तंत्र ‘इबर्ड’ के अनेक लोगों के 867 पक्षियों के एक करोड़ से अधिक अलग -अलग अवलोकन का उपयोग कर भारत में पहली बार पक्षी विविधता और ‘संरक्षण स्थिति’ का आकलन 2020 में किया गया. जिसमें कई नयी जानकारियाँ सामने आईं, जिसमें पूर्व धारणा के उलट गौरैया का विस्तार और संख्या सामान्य पाई गयी. वहीं रहवास क्षेत्र के संकुचन, अवैध शिकार और व्यापार  के कारण शिकारी और जलीय पक्षी बुरी तरह प्रभावित पाए गए.  दीर्घकालिक आकलन के योग्य 246 पक्षियों, मे से लगभग आधी  की संख्या में गिरावट देखी गई, वही 146 पक्षियों मे से लगभग अस्सी प्रतिशत की संख्या तात्कालिक मूल्याङ्कन में  कम होती पाई गई. 



अभी भारत में पाई जाने वाली 1350 प्रजातियों मे से 942 पक्षियों की तात्कालिक (पिछले आठ साल में आये बदलाव) और दीर्घकालिक (पिछले तीन दशक में आये बदलाव) आबादी, उनके उपमहाद्वीप में वितरण और ‘संरक्षण स्थिति’ पर प्रकाशित स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स (एसओआईबी) रिपोर्ट 2023 में गम्भीर संकेत मिले हैं, जो वैश्विक सन्दर्भ के अनुरूप ही है. इस अध्ययन में दीर्घकालिक आकलन के योग्य 348 प्रजातियाँ जिनके व्यवहार, रहन-सहन, विस्तार आदि पर पिछले तीस वर्षों से नज़र थी, में से साठ प्रतिशत प्रजातियों की संख्या में गिरावट देखी गई. पिछले आठ साल से 359 प्रजातियाँ जो मूल्यांकन योग्य थी,उनकी संख्या में भी चालीस प्रतिशत तक कमी पाई गई. ये कमियाँ पाटने योग्य नहीं हैं क्योंकि इस रिपोर्ट का चौंकाने वाला पक्ष यह है कि खुले स्थान और वेटलैंड में रहने वाले पक्षियों की संख्या में कमी आयी है. पक्षियों के लिए खुले प्राकृतिक आवास एक विस्तृत रहवास हैं और पारिस्थितिकी तंत्र की एक वृहद् श्रृंखला है. जिसमें घास के मैदान, अर्द्ध शुष्क मैदान और रेगिस्तान, नदियों के किनारे और विशाल समुद्री तट सहित मानव निर्मित, कृषि-भूमि, चरागाह, परती भूमि और मैदान शामिल हैं. खुला क्षेत्र मौसमी चरम से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला क्षेत्र हैं. चाहे अत्यधिक तापमान, सुखाड़, बाढ़ या उतनी ठंढ, जिसका असर खुले क्षेत्र में पाई जाने वाली पक्षियों की घटती संख्या पर साफ दिख रहा है. इस बात की पुष्टि कॉर्नेल यूनिवर्सिटी और झेजियांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा चीन के शहरों पर बढ़ते तापमान के चलते पक्षियों की संख्या और उनकी विविधता की कमी से हो जाती है.


प्रस्तुत रिपोर्ट में पाया गया है की फल, फूल, मधु या सर्वाहरी पक्षियों के मुकाबले मांसाहारी, कीटभक्षी और अनाज या बीज खाने वाले पक्षियों की संख्या में अधिक तेजी से गिरावट आ रही है. हालांकि आहार के आधार पर आयी कमी के कारण स्पष्ट नहीं है पर मांसाहारी, अनाज और बीज खाने वाली पक्षियों की संख्या में गिरावट आहार श्रृंखला में रासायनिक खाद और पेस्टीसाइड जैसे जहर की मौजूदगी की तरह इशारा करती है. जिसका सटीक उदाहरण भारत में गिद्ध की संख्या में अचानक आयी गिरावट है, जिसके मूल में दुधारू जानवरों को दी जाने वाली दवा डाइक्लोफेनेक थी.इसके अलावा प्रवासी प्रजातियाँ जो हजारों किलोमीटर प्रजनन के लिए सुदूर उत्तर से उड़कर आती हैं, गैर-प्रवासियों और स्थानीय पक्षियों की तुलना में अधिक खतरे में पाई गयी हैं.


सारी चिंताओं के बीच उपमहाद्वीप स्तर के अध्ययन में एक सुकून की खबर यह है कि दीर्घकालिक आकलन में 134 और तात्कालिक आकलन में 217 प्रजातियाँ ऐसी पाई गईं हैं जिनकी संख्या या तो स्थिर थीं या संख्या में बढ़ रही थीं. पर क्या इन प्रजातियों की संख्या में बढ़ोतरी का ज्यादा प्रजातियों में हो रही कमी का कोई सम्बन्ध तो नहीं है? भारत के पक्षियों के दशा और दिशा पर ऐसे कई सवाल है जिनका जबाब इस रिपोर्ट में जबाब मिलना मुश्किल है, पर प्रस्तुत रिपोर्ट उपमहाद्वीप स्तर पर पक्षियों के अर्थपूर्ण और प्रभावी संरक्षण के निति निर्धारण और क्रियान्वयन में सहायक होगा.  


मनुष्य का अस्तित्व इन छोटे पक्षियों के साथ अधिक मेल खाता है जो बिना किसी कारण के, महज़ अपने भीतर की ऊर्जा के कारण गाना शुरू कर देते हैं. सुबह- सुबह चहचहाते पक्षी इस बात के द्योतक हैं कि हमारे आस-पास एक ब्रह्मांड है जिसमें हम प्राणियों की उपस्थिति है. मनुष्य आज भी सिर्फ़ चिड़ियों की बोली और उसके उड़ान के इर्द-गिर्द घूम रहा है लेकिन उसके उड़ान और गति को पूर्ण रूपेण  समझ नहीं सका. अब तक जिज्ञासु शोधार्थी और वैज्ञानिक सुन्दर चिड़ियों की गिनती पूरी कर भी नहीं पाये कि पहले से मौजूद इन पंछियों की संख्या दिन-ब-दिन कम होने लगी.




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