अभी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में 9 महीने से ज्यादा वक्त बचा है, लेकिन देश में राजनीतिक विमर्श पूरी तरह से इस पर केंद्रित हो गया है. एक ओर कांग्रेस समेत विपक्ष के कई दल पिछले कुछ महीनों से एक मजबूत गठबंधन की संभावना को मूर्त रूप देने के लिए मंथन में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ बीजेपी भी एनडीए के तले सहयोगियों का कुनबा बढ़ाने में जुटी है. विपक्षी दलों की बैठक 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में तो एनडीए की बैठक दिल्ली में 18 जुलाई को हुई.
बीजेपी के ऊपर जीत की हैट्रिक का दबाव
अगर हम बीजेपी की बात करें, तो नरेंद्र मोदी की अगुवाई में पार्टी को पिछले दो लोकसभा चुनाव में भारी जीत मिली. उस सिलसिले को बरकरार रखने और जीत की हैट्रिक बनाने की चुनौती अब बीजेपी के सामने 2024 में है. ये बात सही है कि 2019 में विपक्ष उस तरह से एकजुट नहीं था, जिसकी तैयारी इस बार चल रही है. उसके साथ ही जिस तरह से 2019 में बीजेपी मजबूत दिख रही थी, वैसी मजबूत स्थिति में इस बार नहीं है.
2019 का प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं
विपक्ष के मुकाबले बीजेपी की स्थिति तो मजबूत है, लेकिन पिछले दो चुनावों में खुद की बदौलत बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी के लिए 2024 में ऐसा करना उतना आसान नहीं दिख रहा है. एक तो लगातार 10 साल से सत्ता में होने की वजह से बीजेपी के सामने एंटी इंकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर की चुनौती है. दूसरी तरफ अगर विपक्षी दलों का गठबंधन बन गया तो, वन टू वन मुकाबले की वजह से देश के कई सीटों पर बीजेपी की राह उतनी आसान नहीं होगी, जैसी 2014 और 2019 में थी. इन तस्वीरों और हालात को देखते हुए बीजेपी अपने गठबंधन एनडीए को मजबूत करने में जुटी हुई है. इसी कवायद के तहत 18 जुलाई को एनडीए की बैठक रखी गई. जिसमें बीजेपी का दावा है कि 38 पार्टियां हिस्सा ले रही हैं.
एनडीए को मजबूत करने के पीछे का मकसद
पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2024 में हालात बदले हुए रहेंगे. 2014 के मुकाबले 2019 में तो बीजेपी की जीत और भी बड़ी थी. ऐसे तो बीजेपी एनडीए के तले चुनाव लड़ रही थी, लेकिन दोनों ही चुनावों में बीजेपी को अपने बदौलत ही बहुमत हासिल हो गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को खुद की बदौलत बहुमत से 10 सीटें ज्यादा यानी 282 सीटों पर जीत मिल गई. ये बीजेपी के लिए तो पहला मौका था ही, जब उसे केंद्र में खुद से बहुमत हासिल हो गया था. ये ऐतिहासिक भी इस लिहाज से था कि 1984 के बाद यानी 3 दशक के बाद किसी पार्टी ने अपनी क़ुव्वत पर स्पष्ट बहुमत हासिल करने का कारनामा किया था. एनडीए की बात करें तो 2014 में जीत का आंकड़ा 543 में से 336 सीटों पर पहुंच गया.
2019 के प्रदर्शन को बीजेपी दोहरा पाएगी!
जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी एक कदम और आगे बढ़ गई. उसने पहली बार 300 का आंकड़ा पार कर लिया. बीजेपी को 303 सीटों पर जीत मिली. उसके वोट शेयर में भी 2014 के मुकाबले भारी उछाल दर्ज हुई. 2014 में बीजेपी को 31% वोट मिले थे, जो 2019 में 6.36% बढ़कर 37.36% पहुंच गया. 2019 में अगर एनडीए की बात करें तो इस गठबंधन के खाते में 353 सीटें आ गई.
इन दोनों चुनावों पर नज़र डालें तो बीजेपी 2019 में अपनी 21 सीटें बढ़ाने में कामयाब रही, वहीं उसकी अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की 17 ही सीटें बढ़ीं. ये आंकड़े बताते हैं कि 2019 में एनडीए के बाकी दलों के मुकाबले बीजेपी के प्रदर्शन में ज्यादा सुधार दिखा था. नरेंद्र मोदी 30 मई 2019 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने.
पीएम नरेंद्र मोदी के रुतबे का दबाव
2014 से लेकर अब तक बीजेपी ने आर्थिक मोर्चे से लेकर अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की तस्वीर बदलने वाले नेता के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पेश किया है. 2024 में भी पीएम मोदी ही बीजेपी के चेहरे होंगे. हालांकि बीजेपी के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है कि क्या वो नरेंद्र मोदी के नाम पर लगातार 3 लोकसभा चुनाव जीतने का कारनामा कर उस रिकॉर्ड की बराबरी कर पाएगी, जो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास है. तीन लोकसभा चुनाव तो कांग्रेस ने इंदिरा गांधी के नाम से भी जीती थी, लेकिन लगातार ये कारनामा करने का रिकॉर्ड अब तक सिर्फ़जवाहरलाल नेहरू के नाम ही दर्ज है.
सत्ता विरोधी लहर से निपटने की चुनौती
आगामी लोकसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर की चुनौती तो बड़ी होगी ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर बीजेपी ने पिछले दो कार्यकाल में उम्मीदों का जो पहाड़ बानाया है, उसकी वजह से भी उसके ऊपर दबाव बढ़ गया है. विपक्षी गठबंधन को मूर्त रूप मिलने से भी बीजेपी की परेशानी बढ़ेगी, इसकी भी पूरी संभावना है. इन चुनौतियों के साथ ही जिन राज्यों में 2019 में बीजेपी का प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा था, उन प्रदेशों में 2024 में वैसा ही कारनामा करना अब बीजेपी के लिए आसान नहीं रहने वाला है. ये सारी बातें मिलकर बीजेपी के लिए आशंका पैदा कर रहे हैं कि क्या पार्टी का प्रदर्शन 2019 के जैसा रहेगा.
2019 में 8 राज्य बने बीजेपी की ताकत
बीजेपी की आशंका और नुकसान के डर की संभावना को समझने के लिए कुछ राज्यों में एनडीए के बाकी हिस्सेदार दलों को छोड़कर सिर्फ़ बीजेपी के पिछले प्रदर्शन पर नजर डालनी होगी. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 300 का जो आंकड़ा पार किया था उसमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के साथ ही महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे लोकसभा सीटों के नजरिए से बड़े राज्यों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका थी. इन 8 राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था. इन 8 राज्यों में कुल 318 लोकसभा सीटें आती हैं. बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में इन 318 में 223 सीटों पर जीत मिली थी.
2019 में 14 राज्यों से ही मिली थी 275 सीटें
इन 8 राज्यों में अगर 6 राज्य छत्तीसगढ़, झारखंड, हरियाणा, उत्तराखंड, असम और दिल्ली मिला दें तो इन 14 राज्यों में कुल लोकसभा सीटों की संख्या 379 हो जाती है. बीजेपी को 2019 में इन 379 में से 275 सीटों पर जीत मिली थी. इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि यहीं वो 14 राज्य थे, जहां बीजेपी ने पिछले चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन कर एनडीए के तमाम सहयोगियों की सरकार बनाए रखने में मौजूदगी का महत्व खत्म कर दिया था.
उत्तर प्रदेश में अगर हुआ नुकसान तो..
इन राज्यों में 2019 के नतीजों और अबकी बार बदले समीकरण ही वो कारण है जो बीजेपी को डरा रहा है. अगर सबसे बड़े प्रदेश यूपी की बात करें तो ये बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत है. 2014 में बीजेपी यूपी की 80 में से 71 सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही थी और 2019 में यहां 62 सीटों पर कमल का परचम लहराया था. ये फिलहाल बीजेपी का सबसे मजबूत किला और केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में सबसे कारगर राज्य रहा है और 2024 में भी बीजेपी इसे जारी रखना चाहेगी. लेकिन विपक्षी गठबंधन के तहत अगर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ती है तो बीजेपी के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं है.
अगर इस विपक्षी गठबंधन में मायावती शामिल हो जाती हैं, फिर ज्यादातर सीटों पर वन टू वन फॉर्मूले के मुताबिक लड़ाई होने से बीजेपी के लिए यूपी में 60 से ज्यादा सीटें जीतना बेहद मुश्किल होगा. हालांकि मायावती के विपक्षी गठबंधन में शामिल होने की संभावना बेहद क्षीण नजर आ रही है. इसके बावजूद 2019 के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पकड़ पहले से बढ़ी है, जिसकी झलक 2022 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली थी. इस चुनाव में बीजेपी को 57 सीटों नुकसान उठाना पड़ा था, जबकि समाजवादी पार्टी को 64 सीटों का फायदा मिला था.
अगर विपक्षी गठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ मायावती भी जुड़ जाती हैं, तो फिर ये गठजोड़ यूपी में बीजेपी के लिए भारी परेशानी का सबब बन सकता है. ऐसा होने पर इन तीनों के कोर वोटर के साथ ही मुस्लिमों का वोट एक पाले में पड़ने की वजह से बीजेपी के लिए इस समीकरण की काट खोजना बेहद मुश्किल का काम होगा.
ओम प्रकाश राजभर से नुकसान की हो पाएगी भरपाई!
इसी समीकरण को साधने के लिए बीजेपी ने ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को एनडीए का हिस्सा बनाया है. भले ही कुछ सियासी जानकार ये कहते हैं कि गाजीपुर समेत पूर्वांचल के कुछ इलाकों ओम प्रकाश राजभर का प्रभाव है, लेकिन ये भी तथ्य है कि इनकी पार्टी 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा में कभी भी कोई सीट जीत नहीं पाई है. यानी अक्टूबर 2002 में पार्टी के अस्तित्व के बाद से ही इसके खाते में कोई लोकसभा सीट नहीं आई है.
हां, ये जरूर है कि विधानसभा चुनावों में 2022 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के तहत ओम प्रकाश राजभर का पार्टी को 6 सीटों पर जीत मिल गई थी. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सहयोगी के तौर पर इनकी पार्टी को 5 सीटों पर जीत मिल गई थी. इन आंकड़ों के आधार पर ये तो कहा जा सकता है कि ओम प्रकाश राजभर विधानसभा की कुछ सीटों पर तो हार-जीत में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का कोई ख़ास प्रभाव अब तक नहीं देखा गया है.
शत-प्रतिशत सीटों वाले राज्यों में कड़ी चुनौती
गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और छत्तीसगढ़ ये कुछ ऐसे राज्य हैं, जहां बीजेपी की नजर शत-प्रतिशत सीटों पर रहती है. इन राज्यों में कमोबेश बीजेपी का सीधा मुकाबला कांग्रेस के साथ ही रहते आया है और 2024 में भी रहने की संभावना है. हालांकि इन राज्यों में इस बार बीजेपी को कांग्रेस से 2019 के मुकाबले ज्यादा कठिन चुनौती मिल सकती है.
गुजरात में अगर कांग्रेस-AAP मिल गई तो..
गुजरात में शत-प्रतिशत सीटें जीतने का करिश्मा बीजेपी 2014 और 2019 दोनों बार ही कर चुकी है. दोनों बार बीजेपी के खाते में यहां की सभी 26 लोकसभा सीटें गई हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पिछला सारा रिकॉर्ड तोड़ते हुए बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की, उससे गुजरात में 2024 में भी बीजेपी शत-प्रतिशत सीटों पर दावेदारी के साथ ही चुनावी दंगल में उतरेगी. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी और कांग्रेस के साथ ही कुछ सीटों पर जीत के लिहाज से आम आदमी पार्टी का सियासी आगाज भी देखने को मिला है. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने करीब 13 फीसदी वोट शेयर के साथ 5 सीटों पर जीत दर्ज कर ली थी. अब अगर विपक्षी गठबंधन के तहत 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के वोट बैंक का सहारा मिलता है तो फिर बीजेपी के लिए सभी 26 लोकसभा सीटों पर जीत का करिश्मा फिर से करना आसान नहीं होगा.
राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ की डगर आसान नहीं
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की राह पहले की तरह आसान नहीं है. पिछली बार राजस्थान की 25 में से 24 लोकसभा सीट पर बीजेपी और एक सीट पर उसकी सहयोगी आरएलपी की जीत हुई थी. उसी तरह से मध्य प्रदेश में बीजेपी को 29 में से 28 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. छत्तीसगढ़ में 11 में से 9 सीटें बीजेपी के खाते में गई थी.
इस साल इन तीनों ही राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होना है. ये तीनों ही राज्य 2019 के हिसाब से बीजेपी के लिए कमोबेश शत-प्रतिशत जीत वाली सूची में शामिल हैं. लेकिन 2024 में बीजेपी की राह इन तीनों ही राज्यों में उतनी आसान नहीं रहने वाली है.
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनातनी में कमी आने से राजस्थान में कांग्रेस मजबूत होते दिख रही है. वहीं छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच पिछले 3 साल से जारी गतिरोध को भी खत्म करने में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को कामयाबी मिलने से प्रदेश में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई है.
मध्य प्रदेश में पहले के मुकाबले कांग्रेस ज्यादा मजबूत दिख रही है. शिवराज सिंह चौहान लंबे समय से मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री हैं. इस वजह से बीजेपी को सांगठनिक स्तर पर प्रदेश में सबको एकजुट रखने की चुनौती है. कुल मिलाकर इन तीनों ही राज्यों में 2024 में कांग्रेस से बीजेपी को नुकसान की होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बिहार में सबसे ज्यादा नुकसान की आशंका
बिहार में सियासी और जातीय समीकरणों को साधने के लिए बीजेपी ने चिराग पासवान और जीतन राम मांझी को एनडीए का हिस्सा बनाया है. बिहार में पिछली बार जेडीयू के साथ मिलकर बीजेपी ने सभा 40 में से 39 सीटों पर एनडीए की जीत सुनिश्चित की थी. हालांकि अब नीतीश और तेजस्वी के साथ आने से इस बार बीजेपी के लिए ये करिश्मा करना यहां असंभव है कि एनडीए के खाते में 39 सीटें चली जाए. बिहार में बीजेपी के लिए 2019 में जीते गए 17 सीटों के आंकड़े को पार करना भी आसान नहीं होगा. पिछले कुछ चुनावों के आधार पर कहा जा सकता है कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन हो या फिर जेडीयू-आरजेडी गठबंधन..इन दोनों ही गठजोड़ का तोड़ निकालना बेहद मुश्किल है और इसकी वजह गठबंधन से जुड़े जातीय समीकरण बन जाते हैं.
चिराग पासवान से एनडीए को कितनी मदद मिलेगी?
अब चिराग पासवान के आने से 6 से 7 सीटों पर तो एनडीए की दावेदारी मजबूत हो जाती है, लेकिन इसमें भी एक पेंच हैं, जिसे बीजेपी को साधना होगा. चिराग के चाचा पशुपति पारस के खेमे में फिलहाल 6 में से पांच सांसद हैं और जिन सीटों पर एलजेपी की दावेदारी पूर्व के लोकसभा चुनावों में होती थी, उन सीटों पर चिराग और पशुपति पारस के बीच सामंजस्य कैसे बनेगा, इसकी तोड़ बीजेपी के लिए चुनौती बनेगी. ये भी देखना होगा कि क्या रामविलास पासवान के निधन के बाद एलजेपी की पकड़ वैशाली, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, मुंगेर, जमुई और नवादा जैसी सीटों पर अभी भी उसी तरह से बरकरार है.
महाराष्ट्र में बीजेपी की कैसे बढ़ेगी ताकत!
महाराष्ट्र की बात करें तो ये लोकसभा सीटों के लिहाज से यूपी के बाद सबसे बड़ा राज्य है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में एनडीए को यहां 48 में से 41 सीटें हासिल हुई थी. लेकिन उस वक्त बीजेपी और शिवसेना एक पाले में हुआ करते थे. 2014 और 2019 में दोनों ही बार बीजेपी को 23 और शिवसेना को 18 सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन 2024 के चुनाव तक यहां के समीकरण पूरी तरह से बदले हुए होंगे. शिवसेना और एनसीपी में दो फाड़ हो चुका है. दोनों का एक-एक हिस्सा बीजेपी के साथ मिलकर प्रदेश की सरकार में शामिल है. शिवसेना से एकनाथ शिंदे और एनसीपी से अजित पवार के एनडीए में आने से भले ही गठबंधन को मजबूती मिल जाए, लेकिन महाराष्ट्र में बतौर पार्टी बीजेपी की बढ़ती ताकत के लिहाज से इसे नकारात्मक पहलू ही माना जाएगा.
कर्नाटक में 2019 जैसा प्यार मिलना आसान नहीं
कर्नाटक में भी बीजेपी को भारी नुकसान की आशंका सता रही है. यही वजह है कि प्रदेश की क्षेत्रीय दल जेडीएस को अपने पाले में लाने पर बीजेपी विचार कर रही है. दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक ही दक्षिण भारत में एकमात्र राज्य था, जहां बीजेपी को सीटों के लिहाज से गजब की कामयाबी मिली थी. यहां की कुल 28 में से 25 सीटों पर बीजेपी जीत गई थी. हालांकि इस साल मई में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मिली करारी हार के बाद 2024 के लिए कर्नाटक में बीजेपी की राह कांटों भरी नजर आ रही है. जेडीएस को एनडीए के साथ लाने की चर्चा जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से हो रही है, उससे भी संकेत मिलता है कि बीजेपी को कर्नाटक में 2019 जैसा प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद कम ही है.
पश्चिम बंगाल में ममता ने बढ़ाई चिंता
पश्चिम बंगाल में हालांकि 2024 में बीजेपी 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है. 2019 में बीजेपी का यहां प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था. बीजेपी 18 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी. इससे पश्चिम बंगाल को लेकर बीजेपी का उत्साह काफी बढ़ गया था. हालांकि 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. उसके बाद इसी महीने हुए पंचायत चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस ने दिखा दिया कि अभी भी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का दबदबा कायम है.
ऐसे तो ममता बनर्जी के सामने फिर से पिछला प्रदर्शन दोहराना ही उतना आसान नहीं था, उसमें अब विपक्षी गठबंधन बनने पर अगर ममता, कांग्रेस और लेफ्ट एक पाले में आ गए, तब तो बीजेपी को पश्चिम बंगाल में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. पिछले विधानसभा चुनाव और हाल के पंचायत चुनावों से एक बात और भी स्पष्ट हुआ है कि पश्चिम बंगाल में हिंदुत्व कार्ड के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण फिलहाल उतनी आसानी से नहीं होता दिख रहा है. ऐसे में अगर पश्चिम बंगाल में 2024 में ममता, कांग्रेस और सीएम के वोटों का बिखराव नहीं हुआ तो इससे बीजेपी की मुश्किलें ही बढ़ेंगी.
दिल्ली और झारखंड में कैसे बनेगी बात?
2019 में बीजेपी को झारखंड, दिल्ली और हरियाणा से भी बहुत ज्यादा मदद मिली थी. हरियाणा की सभी 10 सीटों, दिल्ली की सभी 7 सीटों और झारखंड की 14 में से 12 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.
विपक्षी गठबंधन की संभावना पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों मिलकर सभी 7 सीटों पर बीजेपी के लगातार तीसरी बार जीतने के मंसूबों पर पानी फेर सकती है. उसी तरह से झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 2024 में बीजेपी के लिए फिर से 10 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करना आसान नहीं होगा. हरियाणा में कांग्रेस और इनलो के बीच की बढ़ती खाई की वजह से बीजेपी को कोई ज्यादा नुकसान की संभावना नहीं है.
दक्षिण राज्यों में पकड़ बनाना आसान नहीं
कर्नाटक को छोड़ दें तो दक्षिण भारत के बाकी राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में खुद बीजेपी की अपनी कोई ज्यादा पकड़ है नहीं. तेलंगाना में भले ही पिछली बार 17 में 4 लोकसभा सीटों पर बीजेपी को जीत मिल गई थी, उसकी बड़ी वजह केसीआर की पार्टी के खिलाफ विपक्ष के तौर पर कांग्रेस का खिसकता जनाधार था. हालांकि इन 4 सालों में एक बार फिर से तेलंगाना में कांग्रेस की पकड़ बढ़ती दिख रही है, जो बीजेपी के हित में नहीं है.
आंध्र प्रदेश में तो जगनमोहन रेड्डी के सामने कोई भी पार्टी फिलहाल चुनौती बनते नहीं दिख रही है. पिछली बार वाईएसआर कांग्रेस को 25 में से 22 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी का अपना तो यहां कोई जनाधार फिलहाल है. लेकिन बीजेपी पवन कल्याण की जन सेना पार्टी को तो एनडीए से जोड़ चुकी है. भविष्य में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को भी गठबंधन में शामिल कर बीजेपी आंध्र प्रदेश में एनडीए का रकबा बढ़ाने की कोशिश कर सकती है. फिलहाल केरल में बीजेपी के लिए कोई बड़ी उम्मीद नहीं नजर आती है.
जो राज्य 2019 में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी ताकत बने थे, उनमें से 10 से 12 राज्यों में पार्टी को 2024 में नुकसान की आशंका है. यही वजह है कि उसकी भरपाई के लिए अब बीजेपी एनडीए के तले अपने कुनबे को मजबूत करना चाहती है, ताकि खुद को जो भी नुकसान हो उसकी भरपाई इनके जरिए हो सके.
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