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राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा हैं अमित शाह की पसंद, उन पर लगी है आरएसएस की मुहर

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के बाद अब राजस्थान में भाजपा ने पूरी तरह चौंकाया. पहली बार जीते विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया. इनके नाम की भी कहीं कोई चर्चा नहीं थी और बहुतेरे लोगों ने तो इनका नाम तक नहीं सुना था. जब घोषणा हुई, तो लोगों ने इनके बारे में पता करना शुरू किया. हालांकि, शर्मा पिछले 15 वर्षों से महासचिव रहे हैं, संघ के समर्पित कार्यकर्ता और अमित शाह के भी करीबी माने जाते हैं. बहरहाल, इनका नाम घोषित कर भाजपा ने 2024 के लिए अपने पत्ते खोल दिए हैं, इरादे जाहिर कर दिए हैं. 

चौंकानेवाला पर असंभव नहीं

यह निश्चित रूप से चौंकानेवाला नाम है, लेकिन भजनलाल 15 साल से महासचिव रहे हैं. वह भरतपुर के जिलाध्यक्ष भी रहे हैं और अमित शाह के बहुत करीबी भी माने जाते हैं. जब भी कोई कोर कमिटी की बैठक होती थी, तो इनको जरूर रखा जाता था और सूचनाओं को अमित शाह तक पहुंचाने का, आदान-प्रदान का काम ये करते थे. इन्हें जब टिकट दिया गया तो वह भी चौंकाने वाला फैसला था, क्योंकि सिटिंग विधायक अशोक लाहोटी का टिकट काटकर इनको लाया गया.

इनको संघ का भी आशीर्वाद प्राप्त है और 15 साल से संगठन की सेवा तो कर ही रहे हैं. वैसे, ये जातिगत समीकरणों को भी साधनेवाला नाम है. एक जगह अगर भाजपा ने आदिवासी और एक जगह ओबीसी को बना दिया, तो यह चर्चा तो चल रही थी कि राजस्थान में किसी ब्राह्मण को बनाएंगे. अब बनाएंगे तो किसी जीते हुए विधायक में से ही, तो विकल्प तो सीमित ही थे. हां, इनके साथ दो डिप्टी सीएम भी भाजपा ने बनाए हैं.

प्रेमचंद बैरवा अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं और दीया कुमारी के जरिए महिला और राजपूत दोनों ही समुदायों को साधने की कोशिश की गयी है. वासुदेव देवनानी के स्पीकर बनने की चर्चा है तो उनके जरिए सिंधी समाज तक पहुंचने की भाजपा की कोशिश है. भजनलाल पिछले 15 साल से जयपुर में रहते हैं और मूलतः भरतपुर के हैं. इनका बनाना चौंकाने वाला है, लेकिन असंभव नहीं है. यह तो आगे 15 साल की राजनीति को ध्यान में रखते हुए अमित शाह ने किया है, ऐसा लगता है. पहली बार के विधायक प्रेमचंद बैरवा भी हैं. तो, उनको भी डिप्टी सीएम बनाया. दीया कुमारी तो चलिए एक बार विधायक और दो बार सांसद रही हैं. इसके जरिए सारे जातिगत समीकरण भी साधे गए. यह एक अलग समीकरण है और अलग तरह का संदेश भी देने की कोशिश की गयी है. यह पूर्वी राजस्थान को भी खुश करने की कोशिश है, क्योंकि उसने पूरी तरह से भाजपा की झोली भर दी है. जयपुर से अब मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री दोनों होंगे. 

सभी समुदायों को साथ लेकर चलेंगे

ब्राह्मण उम्मीदवार के तौर पर सीपी जोशी का नाम तो चल रहा था, क्योंकि पहली बार विधायक बनने के बाद सीधा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंच जाना थोड़ा चौंकाता तो है, लेकिन ये मोदी-शाह की भाजपा है और इस तरह के चौंकानेवाले फैसले लेती रही है. फिर, संगठन में तो वो लगभग डेढ़ दशकों से सक्रिय थे ही. संगठन महामंत्री चंद्रशेखर मिश्र के करीबी थे ही, संघ का आशीर्वाद भी था. 48 हजार से जीत तो मायने रखती ही है, इसका मतलब है कि संघ ने इनको जिताने के लिए जान लगा दी है. अमित शाह के भी ये करीबी हैं, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि ये आगे अच्छा काम भी करेंगे.

जहां तक गूजर और जाट समुदाय की बात है तो आगे मंत्रियों के रूप में काफी प्रतिनिधित्व उनको दिया जाएगा. अभी अजमेर से मिल गया, जयपुर से मिल गया तो आगे और भी ये लोग देखेंगे. प्रेमचंद बैरवा और दीया कुमारी के जरिए भी जयपुर को ही प्रतिनिधित्व मिल रहा है, तो आगे अब बाकी लोगों को भी दिया जाएगा मौका. अब तो चीफ सेक्रेटरी भी बदला जाएगा, जब 31 दिसंबर को उनका कार्यकाल खत्म होगा. फिलहाल तो भाजपा ने चौंकाया भी है, साधा भी है. 

जिस प्रकार से तीनों राज्यों में नामों की घोषणा हुई है और खासकर राजस्थान में जिन तीन नामों की घोषणा हुई है, बिल्कुल स्पष्ट है कि इन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के फैसले की छाप है, लेकिन अमित शाह का भी इन फैसलों में बड़ा योगदान है. खासकर राजस्थान में तो इन लोगों को टिकट भी अमित शाह के कहने पर ही दिया गया था. कह सकते हैं कि कोर-कमिटी के ये सदस्य थे, सारी सूचनाएं ये भेजते थे, इसलिए इन पर अमित शाह की भी छाप है.

हां, संघ के योगदान को नकार नहीं सकते, क्योंकि इनकी जीत के लिए संघ लगा. इनको बाहरी कहा जाने लगा था और यह विवाद का भी विषय बना, लेकिन संघ ने अपनी पूरी जान लगाकर इनको समर्थन दिया और जिताया. संगठन महामंत्री का भी पूरा आशीर्वाद है और मौजूदा अध्यक्ष ने भी इनको महासचिव बनाए रखा, तो भजनलाल शर्मा का इतने लंबे समय तक महासचिव होना भी बहुत कुछ उनकी अर्हता के बारे में कहता है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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