नमस्कार...मैं हूं राजकिशोर....एबीपी के सभी दर्शकों को सबसे पहले धनतेरस और दीवापली की हार्दिक शुभकामनाएं। आज से 5 दिन तक चलने वाले दीप पर्व का मकसद है खुशियां बांटना। जी हां, बांटना...जिस दौलत की बात हम करते हैं वो असल में सिर्फ रुपए-पैसे, जमीन जायदाद नहीं बल्कि हमारी खुशी, स्वास्थ्य और आपसी प्यार-सामंजस्य है।


5 दिन के इस पर्व में भैया दूज तक हम यही संकल्प लेकर चलें तो पूरा साल बेहतर होगा। इसी शुभकामना के साथ हम शुरू करते हैं आज की राजनीति का सफर। आज की राजनीति सियासत में आई खुशियों से ही जुड़ी है हालांकि, थोड़ा उठापटक भी इसमें शामिल है और छोटी-मोटी उठापटक तो हमारी आपकी जिंदगी में भी चलती ही रहती है फिर ये तो सियासत है।


कल ही उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनावों के नतीजे आए इसमें जिस-जिस पार्टी ने सीटें जीतीं वो खुशी से दिवाली मना रही हैं। कल ही महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के भी नतीजे आए हैं और इन दोनों राज्यों में नतीजों का जो अंकगणित सामने आया है उससे हर पार्टी, हर नेता खुश हैं। वैसे तो दोनों जगहों पर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन अकेले दम पर सत्ता से वो दोनों राज्यों से दूर है।


महाराष्ट्र में भाजपा का शिवसेना के साथ सदा से चला आ रहा गठबंधन है जो बहुमत के आंकड़े से पार है, यानी भाजपा शिवसेना की सरकार बनना तय है, लेकिन जैसा मैंने पहले ही कहा, नतीजों का अंकगणित ऐसा है कि हर पार्टी दिवाली के मूड में है। अब शिवसेना ज्यादा मंत्री पद और मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा पर दबाव बना रही है तो कांग्रेस और एनसीपी भी बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने का इंतज़ार कर रहे हैं, वैसे उनके लिए ये दिवास्वप्न ही है।


हरियाणा में तो किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। भाजपा बहुमत के आंकड़े से 5 कदम दूर है। कांग्रेस ने उछाल भरी है लेकिन सत्ता की चाबी नए नवेले दुष्यंत चौटाला और निर्दलीयों के हाथ में है। उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा की 11 में से 8 सीटें जीतकर भाजपा ने अपना प्रदर्शन बेहतर बता रही है लेकिन पिछले 6 साल की सियासी कसौटी पर इन नतीजों को कसा जाए तो नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा के साथ ये नतीजे फिट नहीं बैठते हैं। हर चुनाव में दो तिहाई सीट का लक्ष्य तय करने वाली भाजपा राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पांव और मजबूती से जमाने के बाद भी पिछले कई विधानसभा चुनावों में दो तिहाई सीटें पाना तो दूर बहुमत से भी चूकने लगी है।


2019 के फौरन बाद हुए हरियाणा महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी यही हुआ लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी ने तो अपना करिश्मा बरकरार रखा है लेकिन भाजपा के क्षेत्रीय छत्रप वो करने में नाकामयाब हो रहे हैं जिसके लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा जानी जाती है।


तो इन नतीजों के बाद अब कुछ बड़े सवाल उठ रहे हैं कि...
क्या प्रधानमंत्री मोदी ने जो भी कमाया, उसे भाजपा के छत्रपों ने गंवा दिया है?
क्या नतीजों में 'केमेस्ट्री' कमजोर होने से जातीय 'अंकगणित' का दबदबा बढ़ गया है?
इन चुनावों में क्या पुराने महारथियों की वापसी, और नये योद्धाओं का निखार हुआ है?


एक बात साफ है कि राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से खड़ी भाजपा अब क्षेत्रीय स्तर पर हर चुनाव में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय मुद्दों को जीत की गारंटी समझने लगी है। पिछले कुछ सालों में भाजपा देश में अपनी जड़ें जमाने में भले की कामयाब हो गई है। क्षेत्रीय नेताओं का प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर निर्भरता चुनाव नतीजों में सामने आने लगी है।


2019 की जीत के बाद मोदी ने अपने भाषण में जनता और अपने बीच जिस केमेस्ट्री का जिक्र किया था। उस केमेस्ट्री पर विधानसभाओं का अंकगणित फिलहाल भारी पड़ता दिखने लगा है। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर बिखरा हुआ विपक्ष इन नतीजों में कम से कम राज्यों में थोड़ा मजबूत दिखने लगा है, जिसमें अनुभव के साथ युवा नेतृत्व की भी मौजूदगी फिर से दिखने लगी है।