आज ऐसा एक मुद्दा, जिसका ताल्लुक खासतौर पर से उत्तर प्रदेश से है लेकिन ये मुद्दा हर देशवासी की आस्था से जुड़ा है। मुद्दा राम मंदिर का, करोड़ों हिंदुस्तानियों की आस्था से जुड़ा ये मुद्दा देश की सर्वोच्च अदालत में है लेकिन इससे अपने ही ढंग से छेड़ा है यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह ने। भाजपा के राम मंदिर आंदोलन का एक बड़ा चेहरा। प्रधानमंत्री से बहुत पहले और भाजपा के संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवाणी के बाद भाजपा में हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय रहे हैं कल्याण सिंह। राम मंदिर के मुद्दे पर अपनी सरकार को गंवाने वाले कल्याण सिंह के साथ राम मंदिर का मुद्दा गहराई से जुड़ा है। यूपी की जनता का विश्वास और आस्था भी उनके साथ उतनी ही गहराई से जुड़ी है। यही वजह है कि राज्यपाल पद से रिटायर होने के बाद एक बार फिर सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले 87 साल के कल्याण सिंह ने भाजपा में वापसी की तो उनका पहला बड़ा बयान राम मंदिर पर ही आया। इस बयान ने सियासी गलियारों में नई हलचल पैदा कर दी है।


कल्याण सिंह ने अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस को साजिश मानने से इनकार किया है। दिलचस्प ये है कि जिस वक्त कल्याण सिंह सक्रिय राजनीति में वापस लौटे हैं। ऐन उसी वक्त सीबीआई ने इस मामले में अपनी स्पीड भी बढ़ा रखी है। कल्याण का ये बयान का दौर भी अहम है। सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर मुद्दे पर रोजाना सुनवाई कर रहा है और माना जा रहा है कि चंद दिनों बाद फैसला भी आ सकता है। आज हम इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर जब पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह खुद 75 पार के लोगों को सियासत से दूर कर रहे हैं, ऐसे में 87 साल के कल्याण सिंह के सक्रिय राजनीति में आने के क्या मायने हैं। हम समझने की कोशिश करेंगे कि सक्रिय राजनीति में आते हैं कल्याण सिंह ने पहला बड़ा बयान राम मंदिर पर ही क्यों दिया।


कल्याण सिंह के बयान की अहमियत इसलिए और भी ज्यादा है क्योंकि खुद प्रधानमंत्री इस साल की शुरुआत में ही ये साफ कर चुके हैं कि अब राममंदिर पर पहला फैसला सुप्रीम कोर्ट ही सुनाएगा यानि किसी तरह की बयानबाजी ना करने की भी परोक्ष चेतावनी। फिर भी कल्याण सिंह ने बयान दिया तो क्या सिर्फ सीबीआई केस की खातिर या कुछ और इस कुछ और की बात को आगे बढ़ाते हैं, यूपी में योगी सरकार के आबकारी मंत्री राम नरेश अग्निहोत्री। जिसे एक मंत्री के तौर पर सरकार का बयान भी समझा जाएगा।


कल्याण सिंह राम मंदिर आंदोलन से सीधे-सीधे जुड़े रहे हैं और मुख्यमंत्री रहते हुए सीधे सत्ता और सिस्टम से। जाहिर है उस दौर में कल्याण सिंह के पास पल-पल की सूचनाएं थीं। तो कल्याण सिंह का दावा उन्हीं सूचनाओं के आधार पर है या इस विवाद में नए सिरे से सियासत की कोशिश है। राजनेता कुछ बोलेगा तो सियासत लाज़िमी है और विरोधी दल का पलटवार भी जाहिर है। कांग्रेस ने कल्याण सिंह के इस बयान को भाजपा सरकार की चाल बताया और कहा कि अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत समेत तमाम मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की खातिर ये बयान दिया गया है।


कांग्रेस की बात को अगर सही मान भी लिया जाए तो फिर कल्याण सिंह को इस बयान से क्या फायदा होने वाला है। ये सवाल भी उठना चाहिए लेकिन उससे पहले जरा समझ लीजिए कि कल्याण सिंह होने का मतलब क्या है। भाजपा से बाहर होने के बाद उन्होंने कई प्रयोग किए और उनके प्रयोगों पर सवाल भी उठे लेकिन कल्याण सिंह बेफिक्र रहे। एक दौर में भाजपा की धुर विरोधी विचारधारा वाली पार्टी सपा के साथ जुड़े और भाजपा पर कड़े हमले भी किए लेकिन फिर पूरी शान-ओ-शौकत के साथ भाजपा में लौटे। राज्यपाल भी बने। ऐसा क्यों है इसे भी समझिए जरा,


दरअसल उत्तर प्रदेश में भाजपा के पहले हिंदू पोस्टर ब्वॉय कल्याण सिंह रहे। इसके पीछे वजह वही थी कि उनके मुख्यमंत्री रहते विवादित ढांचे का विध्वंस हुआ, उनकी सरकार चली गई तो संदेश गया कि उन्होंने मंदिर के लिए सत्ता की कुर्बानी दे दी । सिर्फ इतना ही नहीं मुख्यमंत्री रहते हुए भी सख्त फैसले कल्याण सिंह की पहचान बने इसमें खास कर नकलविहीन परीक्षा के साथ ही शिक्षा पर सुधार के लिए उठाए कदम ने तो उनका पूरा देश में नाम कर दिया। इतना ही नहीं, जब पीएम मोदी ने पूरे देश में वंशवाद के खिलाफ बिगुल फूंका है..पार्टी में वंशवाद के खिलाफ सक्रिय हैं। ऐसे वक्त में भी कल्याण सिंह खुद राज्यपाल रहे तो उनका बेटा राजवीर एटा से सांसद और अब तो उनका पोता संदीप सिंह भी यूपी सरकार में राज्य मंत्री है।


कल्याण सिंह के कद को समझने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी में उनके शामिल होने की इस नई बिसात के मायने समझते हैं। प्रचंड बहुमत वाली यूपी सरकार के दौर में 87 साल के कल्याण सिंह का भाजपा में शामिल होना और फिर शामिल होते ही राम मंदिर पर बयान देना आखिर क्या इशारे कर रहा है। आखिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐन पहले 'राम मंदिर' का तड़का क्यों लगाया गया?


दरअसल, सब चीजों का विश्लेषण करने के बाद समझ में आता है कि कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी उत्तर प्रदेश में पार्टी की अंदरूनी सियासत का भी बड़ा इशारा करती है। कल्याण सिंह की वापसी योगी सरकार के ढाई साल के शासन और अगले चुनाव में जाने की रणनीति का भी इशारा करती है। भाजपा कल्याण सिंह के ओबीसी चेहरे और हिंदुत्व की जुगलबंदी का समीकरण फिर खड़ा करना चाहती है, जिसे कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री बनने के दौर में पार्टी सफलता से आजमा भी चुकी है। भाजपा में अंदरूनी तौर पर ये भी माना जा रहा है कि यूपी में अभी कुछ और हलचल हो सकती है।