हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो महत्वपूर्ण बात कही हैं. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को सुझाव दिया है कि अल्पसंख्यकों में जो वंचित और कमजोर तबका है उनके बीच जाकर भी उन्हें अपनी पहुंच बनानी चाहिए. उन्होंने ये भी कहा कि हमें तुष्टीकरण नहीं बल्कि तृप्तिकरण के रास्ते पर आगे बढ़ना है और इसके लिए बीजेपी को देश भर में 'स्नेह यात्रा' निकालनी चाहिये.
मोदी की इस अपील के दो मायने निकाले जा सकते हैं.एक तो ये कि मुसलमानों के वंचित तबकों को सरकारी योजनाओं का पूरा फायदा दिलाते हुए बीजेपी उनके बीच भी अपना जनाधार मजबूत करना चाहती है. और, दूसरा यह कि पिछले कुछ अरसे में कट्टरता और विवादित बयानबाजी के चलते देश में नफ़रत का जो माहौल बना है, उसे ऐसी 'स्नेह यात्रा' के जरिये काफी हद तक दूर किया जा सकता है.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी को मुसलमानों का "स्नेह" मिल पायेगा? इसलिये कि आम मुसलमान बीजेपी को अभी भी एक हिंदू पार्टी ही मानता है और उसके मन में जो शक-शुबहे हैं, उसके चलते वो बीजेपी का खुलकर समर्थन करने से अभी भी कतराता है. लेकिन बीजेपी में एक वर्ग है जिसे लगता है कि जिस तरह से मोदी सरकार ने तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं का समर्थन हासिल करने में सफलता पाई और 2019 के लोकसभा चुनावों में वो समर्थन कुछ हद तक वोटों में भी तब्दील हुआ.
कुछ वैसा ही प्रयोग मुस्लिमों के वंचित तबकों के बीच जाकर भी किया जा सकता है. इसलिए कि केंद्र और बीजेपी शासित राज्य सरकार की कई कल्याणकारी योजनाओं का फायदा उन तक नहीं पहुंच रहा है,लिहाजा बीजेपी के कार्यकर्ता सरकार और उनके बीच एक पुल बनने की भूमिका अगर कारगर तरीके से निभाते हैं,तो आने वाले वक्त में पार्टी को उसका फायदा मिल सकता है.
दरअसल, कार्यकारिणी की बैठक में उत्तरप्रदेश की बीजेपी इकाई की तरफ से एक प्रस्तुति के जरिये ये बताया गया था कि बीजेपी ने हाल ही में रामपुर और आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र में हुए उपचुनावों में किस तरह से जीत दर्ज करने में सफलता पाई है. इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है और वहां बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल एक नेता के मुताबिक वह प्रस्तुति देखने के बाद ही मोदी ने कहा कि भारतीय राजनीति में हिन्दुओं के सामाजिक समीकरणों को लेकर तो अब तक कई प्रयोग किए गए है लेकिन अब पार्टी को पसमांदा मुसलमानों जैसे सामाजिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों के बीच पहुंच बनाने के भी प्रयास करने चाहिए.
पसमांदा मुसलमानों की सबसे अधिक आबादी उत्तर प्रदेश में ही है.इस वर्ग के नेता अक्सर दावा करते हैं कि मुस्लिमों की कुल आबादी में 80-85 प्रतिशत पसमांदा मुसलमान हैं लेकिन अल्पसंख्यक नेताओं ने अल्पसंख्यकों के नाम पर जो विमर्श चलाया, वह वास्तव में उच्चवर्गीय मुसलमानों का विमर्श है और उसका फायदा भी उन्हें ही मिलता है.पसमांदा का मतलब उन मुस्लिमों से है,जो समाज में पिछड़े या दबे-कुचले हैं.
इस वर्ग के नेता कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाते रहे हैं कि इन दोनों ही पार्टियों ने उन्हें ठगने का काम किया है.उन्हें सिर्फ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया लेकिन सरकार में होते हुए भी उनकी बेहतरी के लिए जमीनी स्तर पर कोई ठोस काम नहीं किया गया.
शायद इसलिए मोदी ने अपने भाषण में इस बात पर भी खास जोर दिया कि पार्टी के कार्यकर्ता सिर्फ हिन्दू समाज के पिछड़े और कमजोर तबके में ही पहुंच ना बनाएं, बल्कि अल्पसंख्यकों के बीच भी जाएं और उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का लाभ उन्हें मिले, यह सुनिश्चित करना चाहिए.
जहां तक देश में 'स्नेह यात्रा' निकालने का सुझाव है,तो इसके बैकग्राउंड में पार्टी से निलंबित नेता नुपूर शर्मा के विवादित बयान से अल्पसंख्यक समुदाय में उपजा आक्रोश ही है.जाहिर है कि पीएम मोदी भी जानते हैं कि साम्प्रदायिक फ़िजा को सुधारने के लिए सिर्फ डंडे से ही काम नहीं चलने वाला है.
इसके लिए जमीनी स्तर पर भी कुछ ऐसा किया जाना चाहिए कि दो समुदाय के बीच पैदा हुई नफ़रत को खत्म करके सांप्रदायिक भाईचारे का माहौल बनाया जाए. इसलिये देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों में निकाली जाने वाली बीजेपी की इस 'स्नेह यात्रा' का भी यही संदेश होगा.
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