Opinion: रेखा गुप्ता पर बीजेपी का भरोसा ऐसे ही नहीं हुआ, पार्टी के निर्णय लेने की शैली है बड़ा कारण

आठ फरवरी को चुनाव परिणाम आने के बाद भारतीय जनता पार्टी की तरफ से लंबा-चौड़ा मंथन किया गया. इसके बाद रेखा गुप्ता को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. लेकिन, सबसे बड़ा यक्ष सवाल तमाम दावेदारों के बीच ये बना हुआ है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने रेखा गुप्ता पर भी भरोसा क्यों जताया? आखिर इसके पीछे क्या कुछ बड़े कारण रहे हैं?
अगर इसके पीछे के कारणों को समझना है तो सबसे पहले बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जिस तरह से फैसले लेता है, चाहे वो राजस्थान, मध्य प्रदेश या फिर छत्तीसगढ़ की बात हो, उसमें जो उसकी निर्णय लेने की शैली है, उसमें वे उभरते हुए नाम और प्रमुख दावेदारों का चयन नहीं होता है. बल्कि, पर्दे के पीछे से जिसकी संभावनाएं मीडिया में काफी कम होती, वे नाम बाद में सामने आ जाता है.
जिस समय आठ फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आए, तभी से ये कयास लगाए जा रहे थे कि प्रवेश वर्मा या फिर तमाम जो दूसरे दावेदार हैं, उनके नाम की संभावना काफी कम है. पहली बार से विधायक बने हुए लोग हैं, उनमें से ज्यादा संभावना है.
उस लिहाज से अगर देखें तो रेखा गुप्ता पहली बार ही विधायक बनीं हैं और वो प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं हैं. ये पहला कारण है. दूसरा कारण ये है कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली की सत्ता पर लंबे समय से सत्ता से दूर थी. 1998 में दिल्ली की सत्ता पर बीजेपी की तरफ से सुषमा स्वराज आखिरी मुख्यमंत्री रही थी.
महिला सशक्तिकरण पर फोकस
इसके बाद का शासन शीला दीक्षित का रहा. फिर 2015 में 2025 तक का पूर्ण कार्यकाल आम आदमी पार्टी का रहा. वर्तमान प्रधानमंत्री का एक जोर महिला सशक्तिकरण की तरफ भी देखा जा रहा है, वो चाहे बात नए संसद में आते ही नारी शक्ति वंदन अधिनियम को लाना की क्यों न हो.
हालांकि, महिला वोटर्स को आम आदमी पार्टी ने भी दिल्ली में खूब साधने की कोशिश की. हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में ये माना गया कि महिला लाभार्थियों पर बीजेपी की पकड़ कहीं न कहीं कमजोर हुई है. इधर, दिल्ली के वोटर्स खासकर महिलाओं के बीच आम आदमी पार्टी की पकड़ काफी मजबूत थी.
वो चाहे बात महिलाओं को फ्री बस सफर की सुविधा देने की बात हो या फिर अन्य स्कीम्स की. लेकिन, जिस तरह से आखिरी वक्त में आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर अरविंद केजरीवाल की तरफ से ये कहा गया कि वो कुछ समय के लिए ही सीएम हैं, जब अगला चुनाव होगा उसके बाद वे मुख्यमंत्री बनेंगे, ऐसे में दिल्ली की महिला मतदाताओं के बीच इसके सही संकेत नहीं गए.
केजरीवाल के बयान के उल्टा असर
ऐसे में कहीं न ही दिल्ली की महिला लाभार्थी जो बेहद मजबूती के साथ 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल का साथ दिया था, वो महिलाओं का आम आदमी पार्टी के पक्ष में जोर 2025 के विधानसभा चुनाव में नहीं दिखाई दिया.
बीजेपी ने महिला मतदाताओं के बीच एक मजबूत संकेत देने के लिए रेखा गुप्ता का चयन किया. चूंकि, जब बीजेपी आम आदमी पार्टी या फिर दूसरे विपक्षी दलों पर जब ये आरोप लगाती थी कि विपक्षी पार्टियां महिलाओं का ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं, जबकि इस वक्त बीजेपी और एनडीए की 21 राज्यों में सरकार है.
वहां पर कोई भी महिला मुख्यमंत्री नहीं है, जबकि अगर देश में देखें तो पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को एक सशक्त मुख्यमंत्री के तौर पर गिनती होती है. दिल्ली में तो शीला दीक्षित ने तीन-तीन कार्यकाल पूरे किए. भले ही इस चुनाव में शीला दीक्षित नहीं रहीं लेकिन उनके कामों की चर्चा लगातार अभी तक हो रही थी.
इस दृष्टि से भी बीजेपी ने बहुत सोच समझकर निर्णय लिया कि महिला मतदाताओं के बीच में जो पैठ आम आदमी पार्टी की कमजोर हुई है और राष्ट्रीय स्तर पर भी महिला मतदाताओं को लेकर बीजेपी जो संकेत देना चाहती है, साथ ही 2024 में बीजेपी की जिस तरह से पकड़ कमजोर हुई, उस दिशा में बीजेपी की ये एक बड़ी कवायद है.
इसके अलावा, अगर दिल्ली बीजेपी पर नजर डाली जाए तो 1998 के बाद से ही यानी जब सुषमा स्वराज चुनाव हारी, उसके बाद से ही दिल्ली बीजेपी में फूट हमेशा से दिखी. उनके बीच अलग-अलग गुटबंदियां हमेशा से रही है. शीला दीक्षित के समय में भी ये माना जाता था कि बीजेपी संगठित होकर चुनाव नहीं लड़ती थी. ऐसे समय में ये आवश्यक था कि किसी ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाए, जिसके नाम पर बहुत ज्यादा विवाद की स्थिति न बने और सभी को लेकर चल सके.
रेखा गुप्ता की एबीवीपी में एक लंबी पारी रही. वो पार्षद के साथ ही दक्षिणी दिल्ली की मेयर भी रहीं हैं. ऐसे में दिल्ली के दिन-प्रतिदिन के कामकाज को देखने के साथ ही संगठन में भी उन्होंने काम किया है. ऐसे में वो ऐसी शख्सियत हैं, जो पार्टी में सभी को एक साथ लेकर चल सकती हैं. उनके पीछे सभी लोग चल सकते हैं और दिल्ली की जमीनी समस्याओं से वो भलीभांत परिचित भी हैं. ऐसे में रेखा गुप्ता को फ्री हैंड दिया जाए तो वे उन परेशानियों का सामना कर भी सकती हैं.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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