बिहार में माता सीता के सहारे सत्ता के रथ पर सवार होगी बीजेपी?
बिहार की राजधानी पटना से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर उत्तर की ओर पड़ता है सीतामढ़ी. पटना से सड़क मार्ग से जाएंगे तो रास्ते में हाजीपुर, मुजफ्फरपुर से होकर गुजरना पड़ेगा. पटना से जाने के लिए शानदार सड़क है 4-5 घंटे में आसानी से पटना से सीतामढ़ी पहुंचा जा सकता है.
सीतामढ़ी शहर के बीच में है पड़ता है जानकी स्थान. यहां माता सीता का भव्य मंदिर है. रोज यहां देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आते हैं. शादी ब्याह के सीजन में यहां शादियां भी होती हैं. चूंकि, मंदिर शहर के बीच में है लिहाजा आसपास काफी दुकानें हैं. पतली गलियां हैं. भीड़ की वजह से जाम की स्थिति दिन में बनी रहती है. लेख में जानकी मठ की पौराणिक प्रचलित कथा का जिक्र आगे है.
सीतामढ़ी शहर से तीन किलोमीटर पश्चिम की ओर बढ़ने पर एक छोटा सा गांव है पुनौरा. अब इसे पुनौरा धाम के नाम से जाना जाता है. चूंकि शहर से करीब है और शहर का विस्तार होने के बाद पुनौरा धाम अब सीतामढ़ी में बिल्कुल सट चुका है . इसी पुनौरा धाम में है जानकी जन्मस्थली . मान्यता है कि माता सीता का जन्म इसी पुनौरा नाम की जगह पर जमीन से हुआ था .
पारंपरिक कथाओं में जो बातें कही सुनी जाती है . यहां जाएंगे तो लोग आपको माता जानकी के जन्म की कहानी के बारे में विस्तार से बताएंगे . जो बातें प्रचलित हैं उसके मुताबिक उस युग में ये इलाका वीरान जंगल हुआ करता था . साधु संत इस जंगल में जप तप किया करते थे . ये इलाका उस वक्त राजा जनक के जनकपुर राज में पड़ता था . आज जनकपुर नेपाल में पड़ता है और माता सीता की जन्मस्थली भारत के सीतामढ़ी जिले में .
बताया जाता है कि राजा जनक के राज में भयानक अकाल पड़ा था . राजा जनक परेशान थे . प्रजा के सामने खाने पीने का संकट खड़ा हो रहा था . इस अकाल से उबरने के लिए राजा जनक साधु संतों की शरण में गए . तब उन्हें सलाह मिली कि राजा खुद से खेतों में हल चलाएंगे तब अकाल से मुक्ति मिलेगी और बारिश होगी .
प्रजा के हित का ख्याल रखते हुए राजा जनक हल से खेत जोतने को तैयार हुए . खेत जोतने के लिए भी एक हल तैयार किया गया . जिस लकड़ी से हल तैयार किया गया वो आज के सीतामढ़ी से 25 किलोमीटर पश्चिम में तब के वीरान जंगल की लकड़ी से बनाया गया . इन जंगलों में तब अलग अलग जगह पर भगवान शिव के अलग अलग स्वरूप के मंदिर थे . साधु संत उन मंदिरों में पूजा करते थे . राजा के खेत जोतने के लिए जिस हल को तैयार किया गया उसे शिव हल कहा गया . जिस जगह की लकड़ी से शिव हल तैयार किया गया था आज उस जगह का नाम शिवहर है . जो कि बिहार का सबसे छोटा जिला है .
आज के शिवहर और सीतामढ़ी के बीच पड़ता है पुनौरा धाम . मान्यता है कि पुनौरा की जमीन पर राजा जनक जब बैसाख माह की नवमी तिथि को हल जोत रहे थे तब हल के नोक से धरती में गड़ा एक घड़ा टकराया . घड़ा और हल की नोक से टक्कर के बाद घड़ा फूट गया और उसी से एक सुंदर कन्या निकली .
वो कन्या कोई और नहीं माता जानकी थी .
घड़ा के फूटते ही मौसम ने करवट लेना शुरू कर दिया . आसमान में काले बादल छाने लगे . ऋषि-मुनियों ने जो कुछ कहा था वो सच होने लगा था . चूंकि ये पूरा इलाका तब वीरान जंगल था लिहाजा राजा अपने रथ पर माता सीता को लेकर जनकपुर लौटने लगे . डर था कि कहीं बारिश में फंस न जाए . जितनी रथ तेजी से जनकपुर की ओर बढ़ रहा था उतनी ही तेजी से बादल भी आसमान पर छाये जा रहे थे . लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था . रथ कुछ दूर पहुंचा था कि बारिश होने लगी .
वीरान जंगल के बीच राजा को एक झोपड़ी दिखी . माता सीता को बारिश से बचाने के लिए राजा उन्हें गोद में लेकर उस झोपड़ी में चले गए . झोपड़ी को स्थानीय बोली में मड़ई भी कहते हैं . जिस जगह माता सीता को बारिश से बचाने के लिए राजा जनक छिपे थे उस जगह को सीता मड़ई के नाम से जाना गया . वही सीता मडई आज सीतामढ़ी हो चुका है .
जिस मड़ई में माता सीता को बारिश से बचाने के लिए राजा जनक छिपे थे उसी जगह पर आज का जानकी स्थान है . जिसका जिक्र लेख में ऊपर मैंने किया है .
आजादी के 75 साल बाद भी माता सीता की जन्मस्थली सरकारी उपेक्षा का शिकार है . 25-30 साल पहले तो ये इलाका पूरी तरह से बाढ़ में डूबा रहता था . राजधानी पटना से सीतामढ़ी-शिवहर का सड़क संपर्क दो-ढाई दशक पहले 4-4 महीने तक बंद रहता था . अब सड़कों की हालत बेहतर है . सुविधाएं बढ़ी हैं लेकिन जानकी माता का मंदिर अब भी विकास की बाट जोह रहा है . पिछले हफ्ते बिहार सरकार ने जानकी जन्मस्थली के विकास के लिए 75 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है . जबकि देश के मानचित्र पर इस जगह को लाने के लिए 100-200 करोड़ खर्च करने की जरूरत है .
सीतामढ़ी नेपाल से सटा है . ट्रेन और सड़क के रास्ते यहां से नेपाल जा सकते हैं . मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, शिवहर और चंपारण जिले की सीमा सीतामढ़ी जिले से सटती है . रामायण सर्किट के तहत इस इलाके के विकास की प्लानिंग की गई है .
सीतामढ़ी जिले में मुख्य रूप से दो तरह की भाषा बोली जाती है . सीतामढ़ी के पश्चिमी इलाके की बोली बज्जिका है तो पूर्वी इलाके में मैथिली का टच है . नेपाल से सटे कुछ इलाकों में नेपाली और चंपारण वाली भोजपुरी का भी असर दिखता है . खाने पीने के लिए दही-चूरा (पोहा), पूरी-जलेबी, बालूशाही मिठाई, आलू चप, कचरी-बचका मशहूर है .
1972 में मुजफ्फरपुर जिले से अलग होकर सीतामढ़ी जिला बना . 1994 में सीतामढ़ी से शिवहर अलग होकर नया जिला बना . सीतामढ़ी में पुपरी, बेलसंड, बैरगनिया, सुरसंड, परिहार, रुन्नी सैदपुर, सोनबरसा जैसे नगर हैं . सीतामढ़ी शहर लखनदेई नदी के किनारे बसा है . हालांकि अब इस नदी की स्थिति दयनीय है . जिले की प्रमुख बड़ी नदी बागमती है . जिसका पानी जिले में हर साल कहर बरपाता है .
सीतामढ़ी चर्चा में इसलिए है क्योंकि लोकसभा चुनाव में बीजेपी सीतामढ़ी के विकास को मुद्दा बनाकर बिहार में चुनाव लड़ सकती है . राम मंदिर के बाद बीजेपी बिहार में सीता माता के मंदिर के जरिये उत्तर बिहार के दर्जनभर लोकसभा सीटों को साधने की कोशिश करेगी . जानकी जन्म स्थान का विकास होता है तो इलाके की तस्वीर बदल जाएगी . गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों झंझारपुर में रैली के दौरान माता सीता का बार बार जिक्र करके अपने सियासी इरादे जता दिये हैं .
जानकी मंदिर के विकास का मुद्दा बिहार में सीतामढ़ी, शिवहर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, बाल्मीकि नगर, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, झंझारपुर, दरभंगा लोकसभा के समीकरण को प्रभावित कर सकता है.
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