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कांग्रेस में वापसी के बाद क्या है चौधरी बीरेंद्र सिंह की रणनीति? बीजेपी का रास्ता रोकने के लिए बनाया खास प्लान

देश में लोकसभा चुनाव का क्रम जारी है. तीन चरणों के चुनाव हो चुके हैं. कहा जाता है कि हरियाणा की राजनीति में जहां से चौधरी बीरेन्द्र सिंह चुनाव लड़ते हैं चुनाव वहीं से शुरू होता है. वो जिस पार्टी के साथ चुनाव लड़ते हैं उसकी चुनाव में जीत सुनिश्चित होती है. इस बार वो कांग्रेस में हैं. 2024 के चुनाव के बारे में क्या कुछ रणनीति है आइए जानते हैं उनसे...  

प्रश्न - दस साल के बाद कांग्रेस में आपकी वापसी हुई है आप ने घर वापसी की बात कही इसका क्या मतलब है?
उत्तर  - उस समय कांग्रेस छोड़कर जाने का अपना कोई कारण था. बीजेपी और कांग्रेस दोनों की विचार धारा में काफी अंतर भी है. भाजपा के अंदर रहने के बाद मन की हुई नहीं, बल्कि विचारधारा का बड़ा फर्क है. अपने विचार और पार्टी के विचार दोनों में काफी अंतर होने के कारण घर वापसी यानी कांग्रेस में वापसी की है. राहुल गांधी से बातचीत के बाद पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए.

प्रश्न - आप 42 साल तक कांग्रेस में रहे उसके बाद 2014 में बीजेपी में गए. 10 साल में ही ऐसा क्या हो गया कि घर वापसी आपने कर ली ?
उत्तर  - मैंने ये कभी नहीं सोचा था कि बीजेपी कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ जाकर संविधान को परिवर्तित भी कर सकता है. खुद की अभिव्यक्ति पर पांबदियां लगाई जा रही थी. भाजपा कांग्रेस विरोधी ही नहीं बल्कि धर्म के विरोध में जाकर सत्ता हासिल किया है. सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा के इरादे नेक नहीं रहे है. वो प्रजातांत्रिक नहीं है देश में आजादी को आगे बनाए रखने में सिर्फ कांग्रेस ही आगे है.  सामान्य वोटर को भी आज की स्थिति के बारे में सभी जानकारी है.

प्रश्न -  बीजेपी के शासन काल में ग्रामीण विकास, पंचायती राज, स्वच्छता एवं पेयजल आदि मंत्रालय आपने देखा है क्या आपको लगता है कि बीजेपी में जाना आपका गलत कदम था?
उत्तर - बीजेपी और कांग्रेस दोनों के सोच में अंतर है. कांग्रेस एक सोच है. भाजपा जो जनसंघ था वो एक कैडर पार्टी है. जिसने कांग्रेस को 40 साल से अधिक का समय दिया हो उसके बाद एक छोटी सी बात पर कोई निर्णय ले लिया जाता है तो इससे थोड़ा आहत हुआ था. उसके बाद पार्टी बदलने का फैसला लिया था. मंत्री बनने के लिए पहले नाम तय हुआ और बाद में कुछ घंटे पहले मना कर दिया गया. इससे नाराजगी तो होती है. उसके बाद पार्टी की सुप्रीमो सोनिया गांधी से बातचीत कर के पार्टी छोड़ी.

प्रश्न - लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में वापसी करना हरियाणा में कितना फायदेमंद होगा? 
उत्तर - भाजपा  से परिवार सहित आना कोई बड़ी राजनैतिक उथल पुथल नहीं है. वैचारिक मतभेद थे उसके बाद वहां रहना शायद सही नहीं था. दस साल भाजपा में ये सीखा है कि हरियाणा खासकर उसने अपने आप को जनता से खुद को जोड़ा ही नहीं है. ये बहुत बड़ी घटना है. कैडर की बात करने वाले पार्टी साधारण तौर पर सामान्य लोग से जुड़ने में कारगर नहीं रहे हैं. जिसको भाजपा कार्यकर्ता मानती है उसके लिए अभी तक क्या किया है. सिर्फ नारा लगाने का साथ है. सिर्फ कांग्रेस मुक्त की बात करते रहते हैं.  आर्थिक रूप से मजबूती के लिए सरकार ने कार्यकर्ताओं के लिए कुछ भी नहीं किया है. किसान आंदोलन, जाट आंदोलन,  महिला खिलाड़ियों के साथ क्या हुआ ये पूरा देश ने देखा है. इससे आम आदमी को जोड़ने के बजाए दूर करने में काम किए. जाति और धर्म के नाम पर राजनीति कर के पार्टी के विचार पर चुनाव जीतना मुश्किल नहीं है. किसानों को मजबूर किया गया. अगर किसान आंदोलन नहीं करेंगे तो किसानों की भूमि उनसे छीन ली गयी. हरियाणा में भाजपा 10 की 10 सीटों की बात करती है वो इस बार आधे पर भी पहुंच जाए तो बड़ी बात है.

प्रश्न -  2019 के चुनाव में बिजेंद्र सिंह ने काफी वोटों से दुष्यंत चौटाला को हराया था उसके बावजूद मंत्री नहीं बनाया गया, इससे शायद आप नाराज थे.?
उत्तर - राजनैतिक परिवार से हम आते हैं. राहुल गांधी ने ये दिखा दिया कि वो भारत के किसी राज्य में जाएं उनके साथ काफी लोग है. किसी परिवार ने अगर देश को दिया है तो देश की जनता उसके साथ देती है. 21 साल तक जो अधिकारी रहा है और प्रतिद्वंदी को करीब तीन लाख वोटों से हराकर चुनाव जीता हो तो उसे टिकट क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? भाजपा की ये कार्यशैली हो गई है कि किसी दूसरे पार्टी से लोगों को लाया जाता है चुनावी और राजनीतिक में उसका फायदा उठाया जाता है फिर उसको एक अच्छा स्थान नहीं दिया जाता तो ऐसे में यही होगा कि वो फिर दूसरे पार्टी की ओर रास्ता देखेगा. बीजेपी के लिए सभी कार्यकर्ता है और सिर्फ नेता एक नरेंद्र मोदी है. सभी को कार्यकर्ता समझकर अगर कोई पार्टी चलाए तो उस पार्टी में रहना सही नहीं है.

प्रश्न -  नरेंद्र मोदी परिवारवाद के नाम पर हमला कर रहे हैं इसको आप कैसे देखते हैं ? 
उत्तर - राहुल गांधी पर परिवारवाद और कई तरह के नारा से हमला किया गया है. राहुल गांधी ने पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण की पैदल यात्रा कर के दिखा दिया और उनकी यात्राओं से जितने लोग जुड़े उससे साफ तौर पर फर्क देखा जा सकता है. आजादी से बाद ही नहीं बल्कि देश के आजादी के पहले से भी देश के लिए काम किया है. आज तक ऐसा कोई परिवार नहीं है जिसने उच्च पद पर होने के बावजूद दो परिवार के सदस्यों की जान गंवाई. देश इन चीजों को कभी नहीं भूलता है. परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को घेरना निराधार है.

प्रश्न - कांग्रेस की हरियाणा में मौजूद स्थिति क्या है क्योंकि आगामी दिनों में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.?
उत्तर -  दस साल में  भाजपा अपने साथ साधारण कार्यकर्ता को नहीं जोड़ पाई. क्षेत्रीय दल जो थे जिनकी हरियाणा में पकड़ थी अब वो भी खत्म कर चुके है. परिवार बंटने के बाद ऐसी दशा है. परिवारवाद को बुरा कहना सही नहीं है. अभी 'मोदी का परिवार' पूरा देश यानी कि140 करोड़ देशवासी हो गए. इतना बड़ा परिवार तो धृतराष्ट्र का भी नहीं था. ये बातें कोई मायने नहीं रखती. मायने ये रखता है कि आपका मतदाता आपके कार्य से खुश और संतुष्ट है कि नहीं है. वोट मिले या नहीं मिले ये अलग बात है. मनोहर लाल खट्टर सीएम बने लेकिन वो राजनैतिक व्यक्ति नहीं बन पाए.

प्रश्न - लोकसभा चुनाव में इस बार आप किस तरह से सक्रिय नजर आएंगे?
उत्तर - सक्रियता के तौर पर देखें तो अभी हम कांग्रेस में है. कांग्रेस के लिए लोगों को एक साथ जोड़ने का काम करेंगे और वोट बटोरेंगे. हरियाणा की सामाजिक, हरियाणा की संस्कृतिक धरोहर को बर्बाद करने और उसको धर्मांधता तक बिगाड़ने वालों का साथ ना देने के लिए प्रेरित करेंगे. ये क्षमता क्षेत्रीय पार्टियों ने पहले ही खो दी है. 2009 में शोभायात्रा निकाली गई उस समय उसका जमकर विरोध किया गया. उसके बाद किसी को हिम्मत नहीं हुई. हरियाणा में जाति और धर्म के नाम पर सद्भाव बिगाड़ने और उसके नाम पर राजनीति करने का काम नहीं होगा.

प्रश्न - इस चुनाव में पोलेजराइजेशन का काम हो रहा है ये कैसे देखते हैं.?
उत्तर - इस चुनाव में पोलेजराइजेशन खूब देखने को मिल रहा है. इसको सामाजिक दृष्टि से लोगों ने नकार कर रख दिया है. चुनाव में आर्थिक समस्याएं, बेरोजगारी, नौकरी ना मिलने की समस्या नहीं उठाई जा रही है. 1991 में पी वी नरसिंह राव की सरकार के समय से ऐसा व्यवस्था बना कि हम अपने ट्रेडिंग में खुद को मजबूत कैसे बनाएं और दुनिया में अपने व्यापार को तेजी से बढ़ाएं. पहले दुनिया में 75 प्रतिशत एशिया से होता है था उसमें से 25 प्रतिशत अकेला भारत था. ये आंकड़े हैं जो बहुत कुछ कहते हैं. आर्थिक शक्ति से दुनिया के पांचवें शक्ति बन जाएंगे. आर्थिक सुधार इस तरह नहीं होना चाहिए कि देश का गरीब और गरीब बनता रहे और दुनिया में हम ढोल पीटते रहें . किसान वर्ग अन्न पैदा करता है उनकी आर्थिक व्यवस्था अभी भी खराब है. आंकडे अभी आए है कि देश के एक प्रतिशत लोग देश के 40 प्रतिशत संसाधनों पर कब्जा किए हुए है. इसमें बराबर का हकदार सबको होना चाहिए. देश के विकास में गरीब और किसान की भी भूमिका होनी चाहिए. ग्रामीण कार्य मंत्रालय मेरे पास था. मनरेगा में पता चला कि कई राज्यों में मजदूरी अलग-अलग है. 212 रुपये तक मनरेगा की मजदूरी है. हरियाणा पंजाब से ये तक बात आई कि मनरेगा का पैसा खत्म नहीं हो पाता क्योंकि प्राइवेट में मजदूरी 500 रूपये के आसपास में है. तो ऐसे में देश को सशक्त और मजदूरों को मजबूत बनाने के लिए सभी के लिए काम करने की जरूरत है. 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देना ये उपलब्धि नहीं है.  गरीबी को मिटाने के लिए काम किया है. सरकार का प्रयास होना चाहिए कि उसको आर्थिक रूप से सशक्त बनाए जिसके बाद गरीबी भी हटेगी और राशन लेने वालों की संख्या में कमी आएगी.

प्रश्न - विपक्ष के नेताओं पर ईडी और सीबीआई के छापा पड़ रहा है, अजीत पवार जैसे नेता जिस पर भ्रष्टाचार का आरोप है वो भाजपा में साफ हो जाते हैं इसको कैसे देखते हैं. ?
उत्तर  - मतदाता जो कभी यही मानता था कि भाजपा की देश का कल्याण करेगी अब वो ऐसा नहीं मान रहा है. 400 पार का नारा जो बोलते थे अब इसको बोलने में उनको डर लग रहा है. मतदाता समझ कर करवट बदल रहा है. बीजेपी की सीटें कम होती जा रही है. अगर ऐसा ही हाल रहा तो देश में 200 से भी कम सीटें भाजपा को इस बार मिलेगा.

प्रश्न - 2019 की तरह इस बार वोटर मतदान केंद्र तक नहीं पहुंच पा रहे हैं इसे आप कैसे देखते हैं ? 
उत्तर - भाजपा इस बार कम वोट होने से परेशान है. पिछली बार वोटर देशभक्ति में डूबा हुआ था, देश बचाओ का नारा, पाकिस्तान और चीन के नाम पर वोट लिया गया. देशभक्ति की भावना उस समय थी. अब वोटर समस्याओं और मुद्दो पर वोट देता है. हमेशा 53 - 67 तक ही वोटिंग का प्रतिशत औसतन होती रही है. इसका एक इंपैक्ट प्रत्याशी और पार्टी को लेकर भी पड़ता है. लड़ाई कितनी तेज है इस पर भी असर पड़ता है.

प्रश्न - सूरत से एक नया ट्रेंड देखने को मिला कि कांग्रेस का नामाकंन खारीज होने के बाद अन्य ने नामांकन वापिस ले लिया, इसको आप कैसे देखते हैं.?
उत्तर -  ये चुनाव जीतने का नया तरीका नहीं है. ये डिक्टेटरशिप का तरीका है. ये एक मुद्दा भी है जिससे वोटर चुनाव से पीछे भाग रहा है. इलेक्टरोल बांड, कांग्रेस के खाता फ्रीज करने आदि भी मुद्दे थे. अब ये एक नया मुद्दा बन गया है. दो सीएम को जेल भेजने से भाजपा की पॉपुलारिटी को धक्का लगा है. इंडिया यानी देश का वोटर ये नहीं बर्दाश्त करता, वोटर को पता है कि सरकार कुछ नहीं कर सकती बल्कि सरकार वो खुद बनाते हैं. पार्टी नहीं जनता ही सब मालिक है. पैसे की और सरकार के दम पर परिस्थिति खड़ा कर के प्रत्याशी को खरीद लिया जा रहा है. 23 कैंडिडेट होने के बाद सभी नामांकन वापस ले लते हैं तो जनता को ये सब सीधे तौर पर दिखती है.

प्रश्न -  सत्ता में आने के बाद इंडिया गठबंधन की ओर से पीएम कौन होगा?
उत्तर  - 400 पार वाली टीम अगर 200 के बीच अंटक जाए तो हो सकता है कि बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बना ले. लेकिन वो सरकार चलेगी या नहीं ये भी सवाल है. इंडिया गठबंधन अगर सीट जीतकर सत्ता में आ जाती है तो कोई न कोई फार्मूला निकलेगा. सामान्यता ये होता है कि जो बड़ी पार्टी है उसे सरकार चलाने का मौका मिलता है. आज ये कहनी थोड़ी जल्दबाजी होगी.  हालांकि, इस चुनाव में सरकार जो भी बनाए लेकिन इस बार की विपक्ष काफी मजबूत होगी. चाहे वो भाजपा हो या कांग्रेस हो. आज सबके मन में ये है कि प्रजातंत्र रहेगी की नहीं रहेगी. जनता को आज सब पता है. सरकार को बहुमत नहीं देना चाहती, और विपक्ष को भी कमजोर नहीं करना चाहती. इसका भाजपा को नुकसान यकीनन होगा. 

( चौधरी वीरेंद्र सिंह से यह साक्षात्कार राजेश कुमार ने लिया था. पूरा साक्षात्कार यूट्यूब पर देख सकते हैं)  

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