(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
राजस्थान-मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में रुझानों में बीजेपी की जीत के जानिए असल मायने
लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले देश के पांच राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधान चुनाव को काफी अहम माना जा रहा था. अभी तक जो रुझान आए उसके मुताबिक, पाचों राज्यों के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले इस मायने में रहे क्योंकि कई एग्जिट पोल की भविष्यवाणी गलत साबित हुई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को आगे कर बीजेपी ने इस चुनाव को लड़ा और इस नतीजे सबको हैरान करके दिया. भारतीय जनता पार्टी के बड़े आलोचकों ने भी ऐसे जनादेश की उम्मीद नहीं की थी. सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी ने कैसे इस तरह जीत हासिल कर ली? न सिर्फ उसने मध्य प्रदेश में वापसी की, बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी कांग्रेस के हाथ से झटक लिया.
दरअसल, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तीन राज्यों में बीजेपी की जीत इसलिए संभव हो पाई क्योंकि भगवा सत्ताधारी पार्टी लगातार समावेशी विकास की बात करती आ रही है. इसके अलावा, संगठनात्मक ढांचा और ज्वाइंट लीडरशिप प्रमोट करने की जो बातें कही गई थी, उस पर अमल भी किया गया है. विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारक के तौर पर खुद पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा ने धुआंधार रैलियां कीं और विपक्ष के दावे को खोखला बताकर लोगों को समझाने में कामयाब रहे. पार्टी के जितने नेता हैं, प्रभारी है, सबने एकजुटता के साथ काम किया.
कैसे कमल ने किया कमाल?
राजनीतिक विश्लेषक रुमान हाशमी की अगर मानें तो सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अगर कांग्रेस के नजर से देखा जाए तो जिस ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को कांग्रेस ने उठाया, उसे सबसे पहले बिहार में नीतीश सरकार ने जातीय जनगणना करवा कर विधानसभा से पास किया. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी ओबीसी बैकवॉर्ड का मुद्दा जोरशोर से उठाया. अमित शाह ने भी कुछ राज्यों के संदर्भ में ओबीसी का सीएम होने के बात कही. इसके बाद चुनाव में ये बड़ा मुद्दा बन गया था. चुनाव परिणाम से साबित होता है कि राहुल जैसे ओबीसी और जातीय जनगणना को लेकर अड़े थे, वो पार्टी के पक्ष में नहीं गया.
जातीय गणना नहीं चलने के पीछे दो वजह
दरअसल, राहुल ने जिस ओबीसी का मुद्दा इतने जोर-शोर से उठाया था, उसके नहीं चलने की मुख्य तौर पर दो वजहें रहीं. पहली ये कि खुद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबीसी से आते हैं. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं दिया. दूसरा कि ये चुनाव इस बार पीएम मोदी के चेहरे को आगे कर ही लड़ा गया. वैसे तो जब से नरेन्द्र मोदी पीएम बने हैं, उसके बाद से चुनाव जितने राज्यों में होते रही पीएम ने खुद कमान ली. इस बार का चुनावी चेहरा भी पीएम मोदी का ही था.
इसके अलावा, ये चुनाव बीजेपी की तरफ से ज्वाइंट लीडरशिप में लड़ा गया. वैश्विक तौर पर भी भारत की स्थिति काफी मजबूत हुई है. भारत को विदेशों में इज्जत की नजर से देखा जा रहा है. एक दिसंबर से मलेशिया ने वीजा फ्री किया है. ये कहा जा रहा था कि अशोक गहलोत जादूगर है, राजस्थान में कांग्रेस जीत जाएगी. एक चैनल ने दिखाया था कि उत्तर भारत में कांग्रेस की सुनामी, लेकिन एमपी में पहले नेता शिवराज चौहान है, जो तीसरी बार सीएम बनाने जा रहे हैं.
साइलेंट वोटर की बड़ी भूमिका
राजस्थान की जहां तक बात है, वहां भी बीजेपी सरकार बनाने जा रही है. बीएसपी ने पहले ही साफ कर दिया था कि जो पार्टी सबसे ज्यादा सीट लेकर आएगी, हम उसको सरकार बनाने में मदद करेंगे. सारे चैनल सर्वे में दिखा रहे थे कि छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सीएम बनने जा रहे हैं. लेकिन वहां पर कांटे का टक्कर हो गया है. छत्तीसगढ़ में महादेव एप का मुद्दा उतना अपील नहीं किया. भूपेश बघेल की काम की शैली से लोग थोड़े नाराज थे. बस्तर में काफी कांग्रेस का नुकसान हुआ है. बस्तर आदिवासी इलाका है. यानी, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की शिकस्त के बाद यही समझा जाएगा कि भूपेश बघेल सरकार के नक्सली उन्मूलन एक्शन मामले में आम आदिवासी को उत्पीड़न झेलना पड़ा हो.
मध्य प्रदेश चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले रहे तो इसके पीछे भी महिलाओं का खुलकर वोट करना हो सकता है. राज्य की जनता ने सीएम शिवराज सिंह चौहान के काम पर ही वोट किया. इसके अलावा, मोदी कैंपेन और आने वाले समय में जो काम करेगी सरकार, उसका जो खाका रखा गया, ये बीजेपी की जीत के बड़े फैक्टर है. साथ ही, महिलाओं का साइलेंट वोटर पूरी तरह से बीजेपी की तरफ शिफ्ट कर गया है. इंदौर में तकरीबन 73 फीसदी मतदान हुआ था. महिलाएं भारी तादाद में वोट दिया है, महिलाओं के इतना वोट करने के पीछे बीजेपी के पक्ष में वोट हो सकता है. ये इंदौर नहीं बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में कुछ इसी तरह महिलाओं ने बीजेपी के पक्ष में वोट किया है.
कांग्रेस की करारी हार के बाद राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार का कहना है कि पार्टी की अंदरुनी कलह के चलते वो जितना अच्छा कर सकती थी, उतना बेहतरन नहीं किया. इसके अलावा, नई लीडरशिप को नहीं लेकर आना भी उसे महंगा पड़ा. जनता नई लीडरशिप चाहती है. लेकिन, अगर आगे चलकर भी कांग्रेस नहीं सुधारेगी तो राहुल की भारत जोड़ो यात्रा कि जितना फायदा हुआ, हो सकता है कि आगे चलकर उसे वो फायदा न मिल पाए.
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