किसी शायर ने क्या खूब शुभकामनाएं दी हैं- ‘न कोई रंज का लम्हा किसी के पास आए / खुदा करे कि नया साल सबको रास आए.’ लेकिन मनचाहा कब होता है? 2019 की समाप्ति पर भी सबने अगले साल के लिए मंगलकामनाएं की थीं, मगर पूरा 2020 अब तक की अनदेखी, अनसुनी कोरोना वायरस महामारी की भेंट चढ़ गया. मार्च के बाद से ही भारत इस महामारी से उपजी कठिनाइयों, पीड़ाओं, शोक समाचारों और अफरा-तफरी से उबरने व निबटने में जुटा रहा. उम्मीद, अपेक्षा और राहत की बात यह है कि 2020 खत्म होते-होते इसकी वैक्सीन तैयार कर ली गई और अब उसके वितरण की तैयारियां की जा रही हैं.


भारतीयों की स्मृति में 2020 कई वजहों से एक भयावह साल के तौर पर दर्ज हो गया है. कोरोना पर काबू पाने के लिए लगाए गए लॉकडाउन जैसा गूढ़ अनुभव किसी जीवित पीढ़ी को नहीं हुआ होगा. हजारों किलोमीटर पैदल चल कर अपने-अपने घर पहुंचने का संघर्ष कर रहे लाखों प्रवासियों का दर्द और लाचारी हर भारतीय के दिल में हमेशा के लिए पैबस्त हो गई है. यह साल आर्थिक गतिविधियां ठप होने, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर और भारतीय अर्थव्यवस्था के रसातल में जाने का साक्षी भी बना. खुद भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष (2020-21) के लिए जीडीपी में 7.5 फीसदी गिरावट का अनुमान जताया है. स्कूल-कॉलेज बंद रहने, रेल आवागमन सुचारु न हो पाने और कल-कारखानों के पूरी क्षमता से काम न करने का दुष्परिणाम यह हुआ है कि दिसंबर की समाप्ति पर भी विद्यार्थी, शिक्षक, यात्री, कर्मचारी और मजदूर अनिश्चय की स्थिति में हैं.


कोरोना वायरस के निशाने पर तबलीगी जमात


यह साल एक धर्म विशेष को निशाने पर लेने का गवाह है. कोरोना वायरस को सियासी रंग देते हुए तबलीगी जमात को लपेटे में लिया गया और केंद्र सरकार ने संसद में बयान दिया कि निज़ामुद्दीन मरकज़ में फरवरी के दौरान भीड़ जमा होने के चलते कई व्यक्तियों में संक्रमण फैला.  कथित लव जिहाद रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कानून ही बना डाला! योगी सरकार ने कोरोना की मौजूदगी में ही सरयू तट पर पंचलखा दीपोत्सव मनाया. इसी तरह से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में शुरू हुए देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों को हिंदू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश की गई. इसका नतीजा धरने के जबरिया खात्मे और दिल्ली के दंगों की शक्ल में निकला.


राम मंदिर का शिलान्यास और निर्भया के दोषियों को फांसी


साल 2020 की दो घटनाओं का जिक्र करना जरूरी है- एक तो लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार अगस्त में राम मंदिर का शिलान्यास और दूसरी मार्च में निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा. इन दोनों घटनाओं में सुप्रीम कोर्ट की महती भूमिका है. कोर्ट ने 30 सितंबर को आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत बाबरी ढांचा विध्वंस के सभी 32 आरोपियों को भी बरी कर दिया. दुखद यह है कि शिलान्यास का कार्यक्रम विवादों से परे नहीं रह सका और इसी साल 14 सितंबर को हाथरस की निर्भया के साथ हुए गैंगरेप ने देश को विचलित करके रख दिया. इसका देश-विदेश में तमाशा बना और कोरोना से आंखें फेर कर जातिवाद की आड़ में जम कर दलित-सवर्ण के बीच राजनीतिक रोटियां सेंकी गईं.


सुशांत सिंह राजपूत की मौत


जून महीने में हुई बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत को इस साल का एक और बड़ा तमाशा बना दिया गया था. इसमें उनके प्रशंसकों से लेकर बॉलीवुड, राजनीति, जांच एजेंसियों और मीडिया ने अपने-अपने हाथ सेंके, लेकिन नतीजा अभी तक सिफर ही है. इतना जरूर रहा कि बॉलीवुड में वंशवाद और ड्रग्स के संजाल की घिनौनी परतें उधड़ गईं.


राजनीति


राजनीतिक मोर्चे पर नजर डालें तो इस साल कोरोना के कहर के बीच मध्य प्रदेश में कमलनाथ की चुनी हुई सरकार को बीजेपी ने गिरा दिया, राजस्थान में गहलोत का तख्तापलट करने की कोशिश की और बिहार में चुनाव के बीच कोरोना लेशमात्र बाधक नहीं बन सका. मध्य प्रदेश में ही पिछले दिनों उप-चुनाव संपन्न हो गए, हैदराबाद का स्थानीय चुनाव हो चुका, अब बंगाल में बीजेपी नेता रैलियां और सभाएं करते घूम रहे हैं.


गलवान घाटी में भारत-चीन की झड़प


साल 2020 के घटनाक्रम में दो वाकये सर्वोपरि हैं. पहला मई-जून के दौरान गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुई हिंसक झड़प, नतीजतन 20 भारतीय सैनिकों की शहादत हुई, और दूसरा केंद्र सरकार के तीन कृषि-कानूनों के खिलाफ भड़का किसान आंदोलन. गलवान घाटी भारत के लिए सामरिक रूप से कितनी अहम है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान यह जगह भारत के पक्ष में जंग का प्रमुख केंद्र बनी थी. लेकिन कई दौर की बातचीत के बाद भी उस मोर्चे पर भारत-चीन के बीच तनाव कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है.


किसान आंदोलन


साल 2020 का किसान आंदोलन भारत की मूर्छित लोकतांत्रिक चेतना को जीवंत एवं जागृत करता दिख रहा है. यह भारतीय लोकतंत्र और जनपक्षधर लोगों को नई स्फूर्ति और ताकत देने का आंदोलन बन चुका है. इसने पंजाब और हरियाणा के दायरे से निकल कर अखिल भारतीय स्वरूप धारण कर लिया है. किसानों ने हर तबके की जनता के मन में सरकार के जनविरोधी फैसलों को हू ब हू स्वीकार कर लेने के खिलाफ लड़ने का साहस और माद्दा पैदा कर दिया है.


शांतिपूर्ण प्रतिरोध 


यह साल जनता के विराट शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिए भी याद रहेगा. पंजाब के जालंधर से हिमालय का नजारा साफ दिखने वाला फिनॉमिना भी बड़े कुदरती संकेत दे कर हमसे विदा ले रहा है.


'वर्क फ्राम होम'- एक उपलब्धि


साल 2000 ने सुसुप्त पड़ी 'वर्क फ्राम होम' की बहुप्रतीक्षित अवधारणा को बल दे दिया है. यह भारत समेत दुनिया भर के  लोगों काम करने की एक नई दिशा और आजादी देगी. ट्विटर जैसी कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के सामने आजीवन वर्क फ्राम होम की छूट दे दी है. भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियां भी देर सवेर इस पर पूरा अमल करेंगी. इसे 2020 की उपलब्धियों में गिना जाना चाहिए.


साल 2021 भारत की जनता और सरकारों के लिए हर मोर्चे पर यकीनन नई-नई चुनौतियां और समाधान पेश करेगा. लेकिन हमें अहमद फराज के इस शेर को याद रखना चाहिए- ‘न शब ओ रोज़ ही बदले हैं न हाल अच्छा है / किस बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है.’


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