एक्सप्लोरर

BLOG: पार्टी प्रवक्ताओं के दिल बदलने का मौसम आया

नेताओं के दल-बदल को लोग मजाक में हृदय परिवर्तन कहते हैं. लेकिन प्रवक्ताओं के पक्ष बदल लेने को क्या कहा जाए- आस्था परिवर्तन या मौकापरस्ती या स्वार्थ सिद्धि?

भारतीय राजनीति में किस पार्टी का नेता कब पाला बदल ले, कुछ कहा नहीं जा सकता. अब इस बात पर आश्चर्य भी नहीं होता क्योंकि यह आए दिन की बात हो गई है. लेकिन किसी एक पार्टी का प्रवक्ता अपनी विचारधारा से धुर विरोधी पार्टी का प्रवक्ता बन जाए तो लोग चौंक उठते हैं. कल्पना करना मुश्किल होता है कि यह वही शख्स है, जो अपनी पार्टी की हर सही-गलत नीति और निर्णय का बचाव करते हुए विरोधी पार्टी के प्रवक्ता या नेता को अपने धारदार तर्कों से ध्वस्त कर दिया करता था और अब उसी विरोधी दल के बचाव में जी-जान से लगा हुआ है. प्रवक्ताओं की दशा देख कर दुष्यंत कुमार का शेर याद आता है- ‘जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में, हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं.’

अभी जब प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस का प्रवक्ता पद त्याग कर शिवसेना का दामन थाम लिया, तो लोगों को सहसा विश्वास नहीं हुआ. आखिरकार कांग्रेस और शिवसेना की विचारधारा में जमीन-आसमान का फर्क है. पहले वह कहा करती थीं कि शिवसेना साम्प्रदायिक, वंशवादी और लोकतंत्र विरोधी दल है, अब उन्हें कहना पड़ेगा कि शिवसेना एक देशभक्त दल है और कांग्रेस ने 60-70 सालों में देश की लुटिया डुबो दी है! नेता भले ही छुप कर अपना काम निकाल ले, लेकिन प्रवक्ताओं की मुसीबत यह है कि उन्हें टीवी पर सरेआम सब कुछ बोलना पड़ता है, अखबारों में अपने नाम से बयान जारी करने पड़ते हैं.

नेताओं के दल-बदल को लोग मजाक में हृदय परिवर्तन कहते हैं. लेकिन प्रवक्ताओं के पक्ष बदल लेने को क्या कहा जाए- आस्था परिवर्तन या मौकापरस्ती या स्वार्थ सिद्धि? जब तेजतर्रार सपा प्रवक्ता गौरव भाटिया पाला बदल कर बीजेपी प्रवक्ता बन गए थे, तो लोगों को आश्चर्य हुआ था. सपा में रहते हुए वह नेताजी मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव का चालीसा पढ़ा करते थे, लेकिन बीजेपी का प्रवक्ता बनते ही उन्हें सपा में चौतरफा भ्रष्टाचार दिखाई देने लगा और हर डिबेट में वह मायावती के साथ घटे गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाने लगे! उनसे पहले रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी का गुणगान करने लगी थीं. प्रेम शुक्ला शिवसेना को छोड़ कर बीजेपी और संजय निरूपम शिवसेना छोड़ कांग्रेस के प्रवक्ता बन गए. पाला बदलने वाले प्रवक्ताओं की सूची लंबी है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या इन प्रवक्ताओं का जमीर इस पल्टीमार प्रवृत्ति को लेकर इन्हें कोसता नहीं होगा? क्या इन नेताओं को इस बात की जरा भी फिक्र नहीं होती होगी कि रोज इनका मुखड़ा देखने वाली जनता के बीच इनकी क्या छवि बनेगी?

जाहिर है, जिस तरह नेताओं को दल बदलने के लिए हौसले और जज्बे की जरूरत होती है, उसी तरह प्रवक्ताओं को भी हौसले और जज्बे के साथ-साथ दूसरे दल के दलदल में धंस जाने की विशेष योग्यता और आत्मविश्वास चाहिए. दलबदल समय की मांग होती है और नेताओं की ही तरह प्रवक्ता भी इसे समझ लेते हैं कि जो समय की मांग का सम्मान नहीं करता, पार्टी उसको हाशिए पर डाल देती है. आखिरकार कोई प्रवक्ता घास काटने के लिए किसी पार्टी में थोड़े ही आता है. उसकी मेधा भी प्रबल होती है. जिस दल का पक्ष वह रखता है, उसका इतिहास-वर्तमान-भविष्य उसे रटना होता है, तारीख सहित पार्टी और नेताओं के सुकर्म-कुकर्म याद रखने होते हैं, उन्हीं के मद्देनजर तर्क दे कर विरोधियों के आरोपों की काट निकालनी पड़ती है. अपनी पार्टी के नजरिए से विपक्षी प्रवक्ताओं की बदले हुए रूप में धज्जियां उड़ानी होती हैं. डिबेट के माहौल को जोशीला बनाने वाली शेरो शायरी याद करनी पड़ती है. इसके बाद दल बदल लेने पर अगली पार्टी के लिए यही कवायद दोहरानी होती है. नई विचारधारा का गुणगान करने के लिए दिमाग का पूरा साफ्टवेयर बदलना पड़ता है. लर्न को अनलर्न करना होता है. सामान्य प्रतिभा का व्यक्ति यह चमत्कार नहीं कर सकता.

सुनते हैं कि प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं के दुर्व्यव्हार से तंग आकर प्रवक्ता पद छोड़ा. संजय निरूपम मुंबई में उत्तर भारतीयों के साथ शिवसेना के दुर्व्यवहार का बहाना बनाकर कांग्रेस में गए थे. रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस की टिकट से नाउम्मीद होकर बीजेपी में गई थीं. गौरव भाटिया ने सपा में अनदेखी के चलते यह कदम उठाया था. हालांकि उनका दावा था कि उन्होंने मुलायम परिवार के झगड़े और नीतियों के चलते सपा छोड़ी. लेकिन सपा त्यागते ही उनकी निष्ठा यहां तक बदल गई कि उन्होंने सपा के नए राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुराग भदौरिया के साथ स्टूडियो में लाइव मारपीट तक कर डाली थी. यानी प्रवक्ता नई पार्टी की संस्कृति को फौरन अपना लेते हैं!

एक बात यहां ध्यान देने लायक है कि अब तक जिन प्रवक्ताओं ने पाला बदला है, उनमें से अधिकांश ने चुनावी मौसम का ध्यान रखा है. यही वह समय होता है, जब अच्छे प्रवक्ताओं की डिमांड रहती है. चुनाव के मौसम में दल बदलना एक कुदरती बदलाव माना जाता है. मैसेज आने लगते हैं कि अब मैं ‘कुपार्टी’ में नहीं ‘सुपार्टी’ में हूं. इसकी एक वजह यह भी है कि एक ही दल में सड़ते रहने से प्रवक्ता की इज्जत घट जाती है. पार्टी नेतृत्व को लगने लगता है कि उसका अमुक प्रवक्ता विरोधियों के सामने कमजोर या ढीला पड़ गया. अब इसमें पहले जैसा जोश बाकी नहीं रहा. इससे पहले कि पार्टी निकाले, प्रवक्ता खुद ही निकल लेता है. इसमें कोई मुश्किल भी नहीं होती क्योंकि दल-बदल कानून उन पर लागू नहीं होता. मुश्किल तो तब होगी जब दिल-बदल कानून बना दिया जाए.

अब भी मौसम चुनावी है. इस मौसम में अगर किसी पार्टी और सिद्धांत की दुहाई देने वाले कुछ और प्रवक्ताओं का दिल किसी दूसरे सिद्धांत की दुहाई देने वाली पार्टी पर आ जाए, तो आश्चर्य मत कीजिएगा.

लेखक से ट्विटर पर जुड़ने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/VijayshankarC

और फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/vijayshankar.chaturvedi

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने केंद्र सरकार पर उठाए सवाल, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को सुनाई खरी-खरी
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने केंद्र सरकार पर उठाए सवाल, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को सुनाई खरी-खरी
कालीचरण महाराज ने महात्मा गांधी पर की विवादित टिप्पणी, गोडसे की तारीफ की
कालीचरण महाराज ने महात्मा गांधी पर की विवादित टिप्पणी, गोडसे की तारीफ की
लापता हुए सुनील पाल का पुलिस ने खोजा पता, जानें कहां गायब हो गए थे कॉमडियन
लापता हुए सुनील पाल का पुलिस ने खोजा पता, जानें कहां गायब हो गए थे कॉमडियन
IND vs AUS: 'विराट कोहली से डर लगता है...', दूसरे टेस्ट से पहले ही ऑस्ट्रेलिया ने टेके घुटने! दिग्गज ने अपने बयान से चौंकाया
'विराट कोहली से डर लगता है', दूसरे टेस्ट से पहले ही ऑस्ट्रेलिया ने टेके घुटने! दिग्गज ने अपने बयान से चौंकाया
ABP Premium

वीडियोज

Bangladesh priest arrested: Chinmay Das के वकीलों पर हमले का दावा, जमानत की सुनवाई में नहीं हुए शामिल | Janhitकभी थे सूबे के सरकार, सुखबीर सिंह बादल अब बने पहरेदार! | Bharat Ki BaatBharat Ki Baat: Eknath Shinde की भूमिका पर इतना सस्पेंस क्यों? | Mahayuti | BJP | Maharashtra New CMSandeep Chaudhary: EVM से तौबा-तौबा...तो ही चुनाव निष्पक्ष होगा? | Maharashtra | ABP News

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने केंद्र सरकार पर उठाए सवाल, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को सुनाई खरी-खरी
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने केंद्र सरकार पर उठाए सवाल, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को सुनाई खरी-खरी
कालीचरण महाराज ने महात्मा गांधी पर की विवादित टिप्पणी, गोडसे की तारीफ की
कालीचरण महाराज ने महात्मा गांधी पर की विवादित टिप्पणी, गोडसे की तारीफ की
लापता हुए सुनील पाल का पुलिस ने खोजा पता, जानें कहां गायब हो गए थे कॉमडियन
लापता हुए सुनील पाल का पुलिस ने खोजा पता, जानें कहां गायब हो गए थे कॉमडियन
IND vs AUS: 'विराट कोहली से डर लगता है...', दूसरे टेस्ट से पहले ही ऑस्ट्रेलिया ने टेके घुटने! दिग्गज ने अपने बयान से चौंकाया
'विराट कोहली से डर लगता है', दूसरे टेस्ट से पहले ही ऑस्ट्रेलिया ने टेके घुटने! दिग्गज ने अपने बयान से चौंकाया
बाबा रामदेव ने पिया गधी का दूध, जानें इसकी कीमत और क्या हैं फायदे
बाबा रामदेव ने पिया गधी का दूध, जानें इसकी कीमत और क्या हैं फायदे
महाराष्ट्र चुनाव को लेकर चुनाव आयोग से मिले कांग्रेस नेता, मांगे वोटर लिस्ट के आंकड़े! ECI ने दिया ये जवाब
महाराष्ट्र चुनाव को लेकर चुनाव आयोग से मिले कांग्रेस नेता, मांगे वोटर लिस्ट के आंकड़े! ECI ने दिया ये जवाब
खाते में नहीं पहुंची महतारी वंदन योजना की किस्त? तुरंत करें ये काम
खाते में नहीं पहुंची महतारी वंदन योजना की किस्त? तुरंत करें ये काम
संभल हिंसा: तलाशी में मिले पाकिस्तान और अमेरिका में बने कारतूस के खोखे, फॉरेंसिक टीम ने खंगाली नालियां
संभल हिंसा: पाकिस्तान और अमेरिका में बने कारतूस के खोखे, फॉरेंसिक टीम ने खंगाली नालियां
Embed widget