ये हम गुनहगार औरतें हैं... जो न रोआब खोएं/न बेचें/न सर झुकाएं/न हाथ जोड़ें- आरा वाली अनारकली फिल्म को देखने के बाद पाकिस्तान की शायरा किश्वर नौहीद की यह कविता याद आ गई. अनारकली भी गुनहगार है. इसलिए क्योंकि अपनी मर्जी उसके लिए सबसे बड़ी है. उसकी नचनिया वाला स्टेटस उसकी मर्जी का नतीजा है. उसकी मर्जी के खिलाफ जो होगा, उसके लिए वह लड़ेगी.


नचनिया कहीं की- ऐसा उस लड़की से भी पुलिसवाले ने कहा था जिसका रेप पिछले साल अगस्त में लखनऊ में हुआ था. 25 साल की वह लड़की एक डांस ट्रुप में काम करती थी. एक आयुर्वेदिक ड्रग कंपनी के चार कर्मचारियों ने ऑफिस पार्टी में उसे और उसकी साथिनों को नचाया और फिर उस पर अपनी मर्जी आजमाई. जब वह एफआईआर करने पुलिस स्टेशन गई तो सबसे पहले उससे यही सवाल किया गया कि तुम ऐसे काम करती क्यों हो? ऐसे-वैसे काम करने पर ऐसा-वैसा व्यवहार तो सहना ही होगा.


अनारकली के साथ फिल्म में होने वाले बर्ताव पर आप भले दुखी हों. उसके ग्रे कैरेक्टर से सहानुभूति रखें लेकिन थियेटर के बाहर आते ही ‘ऐसी’ लड़कियों के लिए हमारी सोच बदल जाती है. कई साल पहले मुंबई में बार डांसर्स पर एक नॉन प्रॉफिट संस्था ने एक सर्वे किया था जिसमें हिस्सा लेने वाली 79 परसेंट लड़कियों ने कहा था कि उन्हें किसी न किसी प्रकार के सेक्सुअल एब्यूस का सामना करना पड़ता है. इनमें से 83 परसेंट लड़कियों ने कहा था कि वे इसकी रिपोर्ट करने से कतराती हैं क्योंकि पुलिस वालों से भी उन्हें एब्यूज का खतरा रहता है. 73 परसेंट ने कहा था कि बार में आने वाले कस्टमर उनकी हर हरकत को फ्लर्ट या इनविटेशन ही मानते हैं. बाद में डांस बार्स पर बैन लग गया और ये सवाल धरे के धरे रह गए.


फ्लर्ट करना मेरा अपना अधिकार है. ये किससे करूंगी, ये मैं तय करूंगी. कोई और नहीं... एक्टर कंगना रानौत ने एक टीवी शो में जब यह कहा था तो एंकर बगलें झांकने लगा था. जाहिर है, बोल्ड होने का मतलब इनवाइटिंग होना नहीं है. लेकिन मर्द इसे समझ नहीं पाते. अक्सर हंसने-मुस्कुराने को ही प्रेम का प्रतीक मान लेते हैं. आप मना करेंगी तो हावी हो जाएंगे- फिर अगर ‘ऐसा वैसा काम करने वाली लड़कियां’ हों तो... अमेरिका के टेक्साज यूनिवर्सिटी की एक स्टडी ‘पोर्नोग्राफी एक्ट्रेज- एन एसेसमेंट ऑफ द डैमेज्ड गुड्स हाइपोथिसिसेस’ में कहा गया है कि 55 परसेंट एडल्ट स्टार्स को अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार तो सेक्सुअल हैरेसमेंट से गुजरना ही पड़ता है. स्टडी में 50 परसेंट से अधिक लोगों ने माना था कि एडल्ट स्टार्स के एक से अधिक सेक्सुअल पार्टनर होते हैं, वह प्रेम-प्यार को दूसरों से ज्यादा इंज्वॉय करती हैं, कम उम्र में ही शारीरिक संबंध बना चुकी होती हैं. दूसरी तरफ सर्वे में शामिल 88 परसेंट ने इस अवधारणाओं से इनकार किया था. हां, यह जरूर माना था कि लोगों की धारणाओं की वजह से ही उन्हें हैरेसमेंट, कई बार रेप का भी शिकार होना पड़ता है.


ये औरतें डैमेज्ड गुड्स हैं. सामान हैं और टूटा-फूटा भी... इसीलिए उन्हें रौंदा जा सकता है. लेकिन क्या औरतें इसके लिए तैयार हैं? आरा वाली अनारकली इसके लिए तैयार नहीं है. एब्यूज के बावजूद वह घबराती नहीं- शर्मसार नहीं होती. भले ही किसी के साथ पैसे लेकर संबंध बनाती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पैसे देकर कोई भी उसके साथ अपने रिश्ते को खरीद सकता है. फिल्म की नायिका में यह हिम्मत हो सकती है और यही हिम्मत दिखाने की उन सेक्स वर्कर्स को भी जरूरत है जो रेप और दूसरे यौन शोषण को झेलती हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में 70 परसेंट सेक्स वर्कर्स अपने क्लाइंट्स और पुलिस से एब्यूज झेलती हैं.


ये इसलिए होता है क्योंकि हम इन औरतों के काम को काम मानते ही नहीं. काम मतलब वर्क और काम करने वाली या वाला मतलब वर्कर. वर्क और वर्कर का मतलब नियम और कानून होता है जिनका उल्लंघन होने पर अपराधी को सजा हो सकती है. जो काम काम नहीं, उसमें रूम फॉर एक्सप्लॉयटेशन की जगह हमेशा होती है. जब हम सेक्स को वर्क नहीं मानते तो औरत की एजेंसी को नकारते रहते हैं.


सारी बहस से परे एक धारणा यह भी है कि काम में सिर्फ धकेला नहीं जाता. तस्करी की शिकार बच्चियों के यौन शोषण के गर्त में गिरने की कहानियां दिल दहलाने वाली हैं. इनके लिए आप सख्त कानून बनाइए और अपराधियों को धर लीजिए. लेकिन ऐसी भी औरतें हैं जो देह की हदबंदियों से आजाद हो गई हैं. ये महानगरों की नहीं, कस्बों की औरतें भी हैं जो अब इस काम को सिर्फ काम की तरह देखती हैं. आरा की अनारकली की तरह अपने काम को करने में उनकी आंखें नहीं झुकतीं. हां, वे सिर उठाकर अपना काम करना चाहती हैं- छिपकर नहीं. मर्दों की बनाई दुनिया और उनके द्वारा नियंत्रित स्पेस में अपना हिस्सा कब्जाना चाहती हैं. इसके लिए उन्हें किसी मसीहा की जरूरत नहीं. अपनी लड़ाई वह खुद लड़ना जानती हैं.



कई बार ये लड़ाइयां हारी भी जाती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल बेंगलूरु के एक केस में एक दिलचस्प फैसला दिया था. इस केस में एक ‘कथित’ सेक्स वर्कर और उसके तीन क्लाइंट थे. संबंध बनाने के बाद जब तीनों ने पैसे नहीं दिए तो औरत ने उन पर रेप का आरोप लगाया. मामला बीस साल चला. फिर कोर्ट ने कहा कि अगर क्लाइंट पैसे न दो तो सेक्स वर्कर किसी पर रेप का आरोप नहीं लगा सकती. वकालत की भाषा में जो भी कहा जाए लेकिन इस फैसले में नैतिकता का मामला भी शामिल था. एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि सेक्स वर्कर्स के राइट्स में यह भी शामिल है कि उनके ग्राहक उन्हें धोखा न दें. अगर उन्हें सर्विस के भुगतान न हो तो यह उनके साथ हिंसा से कम नहीं.


पर हमारे यहां प्रेम प्यार पैसे से नहीं तौला जाता. प्रेम करना औरत का कर्तव्य है. इसीलिए शादी जैसे ‘सेक्रेड अफेयर’ में कानून मैरिटल रेप यानी वैवाहिक जीवन में बलात्कार को रेकोग्नाइज़ ही नहीं करता. साफ है, प्रेम प्यार में पैसे का क्या काम... औरत पर हावी होना मर्दानगी का सबूत है. सेक्स वर्कर्स भी इसी श्रेणी में आती हैं. जो काम वो करती हैं, उसके लिए उन्हें कभी भी इनकार क्यों करना चाहिए. दरअसल औरत को कभी भी इनकार क्यों करना चाहिए? आरा वाली अनारकली इस सोच का एंटी-थीसिस है. कोई उसे पैसे दे सकता है लेकिन उसे खरीद नहीं सकता. वह बताती है कि औरत की ना का मतलब ना है. चाहे उसका पेशा कानूनी हो या गैरकानूनी.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)