BLOG: ममता कहीं विपक्षी एकजुटता का केंद्रबिंदु न बन जाएं !
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सीबीआई की दौड़ देखकर रामगोपाल वर्मा की संजय दत्त-उर्मिला मातोंडकर स्टारर सुपरहिट फिल्म 'दौड़' का एक दृश्य याद आ जाता है. पता ही नहीं चल रहा कि कोलकाता के कमिश्नर के पीछे सीबीआई है या सीबीआई के पीछे कोलकाता पुलिस या कोलकाता पुलिस के पीछे ममता बनर्जी या ममता बनर्जी के पीछे पीएम मोदी या पीएम मोदी के पीछे ममता बनर्जी या यूपी के सीएम योगी के पीछे ममता बनर्जी या ममता बनर्जी के पीछे योगी या सीबीआई के पीछे सुप्रीम कोर्ट या ममता बनर्जी के पीछे सुप्रीम कोर्ट या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पीछे कोलकाता पुलिस.
लगता है कि उक्त फिल्म की ही तरह सारे लोग एक घेरे में गोल-गोल घूम रहे हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह दौड़ सांस लेने भर को 20 फरवरी तक के लिए थम गई है. बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में ममता को भ्रष्टाचारी दिखाने के लिए अचानक नींद से जागकर शारदा स्कैम की सीबीआई जांच तेज करवाई है, लेकिन उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जमीनी संघर्ष की मजबूत खिलाड़ी ममता बनर्जी इस पूरे मामले को संघ बनाम राज्य की लड़ाई का रूप दे देंगी. राज्य की अनुमति के बिना केंद्र सरकार द्वारा कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर सीबीआई भेजने को उन्होंने लोकतंत्र के लिए खतरा बता दिया और धरनास्थल से ही कैबिनेट चलाने लगीं.
इस राजनीति का रिएक्शन कुछ ऐसा हुआ है कि आम चुनाव के पहले विपक्षी एकता के गुब्बारे में हवा भरने का उपक्रम फिर से जोर पकड़ने लगा है. इसकी बड़ी वजह यह है कि एसपी, बीएसपी और आरजेडी समेत कई दल सीबीआई के दुरुपयोग की वजह से हलकान हैं. यह इतना स्पष्ट है कि यूपी में एसपी-बीएसपी के गठबंधन का एलान होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुए खनन घोटाले में सीबीआई ने कई अफसरों को शिकंजे में लिया है. इतना ही नहीं, गोमती रिवर फ्रंट के कथित घोटाले की जांच अलग से चल रही है. बीएसपी की मुखिया मायावती के ऊपर तो सीबीआई की तलवार चौबीसों घंटे लटकती रहती है, इसलिए वे कांग्रेस का सीधा रुख करने से घबराती हैं.
बिहार में तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि सीबीआई केंद्र के इशारे पर ही उनके परिवार को निशाना बना रही है. चारा घोटाले में सजा मिलने के बाद अब रेलवे घोटाले को लेकर सीबीआई का केस लालू कुनबे के खिलाफ चल रहा है. उक्त सारे दल बीजेपी के प्रमुख विरोधी रहे हैं, इसलिए आगामी आमचुनाव में इन्हें अपनी छतरी के नीचे लाने के लिए कांग्रेस पश्चिम बंगाल के ताजा घटनाक्रम को एक सुनहरे अवसर की तरह देख रही है. जब समाजवादी पार्टी के नेताओं के खिलाफ सीबीआई ने कार्रवाई शुरू की थी, तो कांग्रेस ने अखिलेश के समर्थन में खुल कर बयान दिए थे. रणनीति यह थी कि यूपी में एसपी-बीएसपी गठबंधन की खिड़की किसी भी सूरत में बीजेपी की तरफ खुलने न पाए.
पश्चिम बंगाल में भी ममता के साथ चुनाव से पहले कांग्रेस का गठबंधन नहीं होने जा रहा है, लेकिन बाद के लिए कांग्रेस रास्ता खुला रखना चाहती है. सिर्फ तेलंगाना के केसीआर अपनी पार्टी टीआरएस का रुख स्पष्ट नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनके सूबे में बीजेपी से ज्यादा चुनौती उन्हें कांग्रेस से मिलती है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू ममता बनर्जी के साथ एकजुटता दिखाने के लिए आज स्वयं कोलकाता जा रहे हैं. उनका आरोप है कि पश्चिम बंगाल में कार्रवाई बदले की भावना से की गई वह भी इसलिए कि ममता बनर्जी की ओर से आयोजित विपक्ष की 'यूनिटी रैली' बड़ी सफल रही थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और राष्ट्रीय जनता दल के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव खुलकर ममता के साथ आ गए हैं और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने फोन पर ममता के साथ होने की बात कही है. कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बनाकर चलने वाले उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तक इस मुद्दे पर ममता के साथ दिखाई पड़ रहे हैं. यानी पश्चिम बंगाल में अपनी सीटें बढ़ाने के प्रयास में बीजेपी ने अनचाहे ही विपक्ष में रहने वाले सभी क्षेत्रीय दलों को एकजुट कर दिया है और ममता बनर्जी को इस एकजुटता की धुरी बना दिया है.
यूपी में होने वाली संभावित सीटों के नुकसान की भरपाई की कोशिश में शुरू किया गया बीजेपी बनाम ममता का मामला सिर्फ पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं रह गया है. संसद में भी केंद्र सरकार का विरोधी खेमा कई मुद्दों पर एकता दिखा रहा है. सीबीआई की पश्चिम बंगाल में सीधी दखल के भले ही अलहदा कानूनी पहलू हों और बीजेपी अपने बचाव में संविधान की लाख दुहाई दे, लेकिन पार्टी के रणनीतिकार भांप चुके हैं अब यह जंग राजनीतिक और घोर जमीनी संघर्ष में तब्दील हो गई है. यही वजह है कि ममता के खिलाफ संसद के भीतर राजनाथ सिंह और सड़क पर स्मृति ईरानी व रविशंकर प्रसाद को मोर्चा संभालना पड़ रहा है.
उधर ममता बनर्जी भी बीजेपी को बंगाल में कदम न जमाने देने की ठान चुकी हैं और उनके इशारे पर योगी आदित्यनाथ, शिवराज सिंह चौहान और शाहनवाज हुसैन के हेलीकॉप्टर तक नहीं उतरने दिए जा रहे हैं. सूबे में पीएम मोदी की हंगामेदार रैली के बाद पश्चिम बंगाल की जनता अब अगर ममता बनर्जी की हिम्मत की दाद दे रही है, तो यह बीजेपी की रणनीतिक हार और ममता की जीत ही कही जाएगी.
केंद्र सरकारों के द्वारा सीबीआई का दुरुपयोग कोई खबर या रहस्य नहीं है, लेकिन सीबीआई की मौजूदा गतिविधियों से साफ जाहिर है कि वह पिंजरे का तोता नहीं बल्कि शिकारी बाज बना दी गई है. शारदा चिट फंड घोटाले के प्रमुख आरोपी मुकुल राय कभी ममता बनर्जी का राइट हैंड माने जाते थे, और इस घोटाले के प्रमुख आरोपियों में उनका नाम शुमार था. लेकिन जैसे ही उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की, सीबीआई के राडार से वह लगभग हट से गए. लेकिन मुकुल राय को बगल में करके सीधे ममता बनर्जी को घेरने की सारी कवायद कहीं बैकफायर न कर जाए और ममता बंगाल से निकल कर पूरे देश में विपक्षी एकजुटता का केंद्रबिंदु न बन जाएं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)