शुरुआत इस किस्से से- एक छात्र परीक्षा देने के लिए गाय पर निबंध रट कर गया, लेकिन पर्चे में विषय आ गया 'रेल यात्रा'! छात्र ने कुछ देर सोचा और फिर दिमाग भिड़ाकर लिखना शुरू किया, "एक बार मैं रेलगाड़ी में बैठकर अपने गाँव जा रहा था. मेरी सीट खिड़की के पास थी. तभी दूर खेत में घास चरती एक गाय दिख गई और मुझे याद आया कि गाय हमारी माता है. गाय के चार पैर, दो आंखें, दो कान और एक पूंछ होती है. गाय हमें दूध देती है. दूध से हम मावा, दही, मक्खन, घी इत्यादि बनाते हैं. गाय के बछड़े खेत में हल चलाने के काम आते हैं वगैरह...!”
यही हालत भारतीय जनता पार्टी का भी है. उसका चुनाव प्रचार भले बुलेट ट्रेन या ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे अथवा भ्रष्टाचार के मुद्दों से शुरू हो, उसे पहुंचना राम मंदिर, हिन्दू-मुस्लिम और जात-पात तक ही है. गुजरात विधानसभा चुनाव में भी यही हो रहा है. वहां 22 सालों में पहली बार कांग्रेस टक्कर देने की स्थिति में दिख रही थी क्योंकि सूबे के किसान, दलित, मजदूर, आदिवासी, पाटीदार, छोटे और मध्यम व्यापारी-कारोबारी यानी लगभग सभी वर्ग बीजेपी से खिन्न दिख रहे हैं. गुजरात में 15 साल के लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री रहने के बाद नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री और अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर दिल्ली चले गए. मोदी जी के पीछे प्रदेश में ऐसा कोई कद्दावर नेता नहीं जो अपने दम पर चुनाव जिताने का दावा कर सके. इसीलिए श्री मोदी और श्री शाह समेत केंद्रीय मंत्रियों और बीजेपी शासित कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों की फ़ौज गुजरात में चुनाव प्रचार करने के लिए झोंक दी गई. पर प्रधानमंत्री तक की सभाओं में खाली कुर्सियां और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के बिना भीड़ वाले रोड शोज के विपरीत राहुल गांधी से लेकर हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी तक की सभाओं में उमड़ती भीड़ ने बीजेपी की नींद उड़ा दी.
घबराकर पार्टी धार्मिक कार्ड खेलते हुए देवदर्शन, मंदिर-भ्रमण और हिन्दू होने को लेकर राहुल गांधी को निशाना बनाने लगी, जबकि उसका चुनाव प्रचार जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की उपस्थिति में बुलेट ट्रेन के सहारे शुरू हुआ था. अगले चरण में राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी पर प्रधानमंत्री मोदी ने 'औरंगजेब राज' का तंज कस दिया. सोमनाथ मंदिर में राहुल गांधी के कथित ‘गैर हिन्दू’ रजिस्टर में नाम लिखे जाने पर बीजेपी ने जमकर वबाल काटा और उसके जाल में फंसते हुए कांग्रेस ने राहुल गांधी के जनेऊ का प्रदर्शन कर प्रचार का रुख मोड़ने में बीजेपी की मदद ही की. जबकि अब तक राहुल गांधी गुजरात के विकास मॉडल, नोटबंदी, जीएसटी, अमित शाह के बेटे जय शाह के एक साल में 80 करोड़ की कमाई, राफेल सौदे में गड़बड़ी, भाषा की अशालीनता आदि को लेकर हमले कर रहे थे और सही ट्रैक पर जा रहे थे.
बीजेपी आश्चर्यजनक रूप से विकास का मुद्दा छोड़ रही थी. पार्टी ने गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए कांग्रेस नीत यूपीए सरकार पर गुजरात के विकास में बाधाएं डालने के आरोप लगाए जो एक तरह से स्वीकृति थी कि गुजरात के विकास मॉडल, जिसके बूते पार्टी पिछला लोकसभा चुनाव जीती थी, में कुछ समस्या थी. पार्टी ने कांग्रेस पर सरदार पटेल और मोरारजी देसाई से 'अन्याय' करने के आरोप लगाकर 'गुजराती अस्मिता' को मुद्दा बनाने की भी कोशिश की. लेकिन बीजेपी ने जल्द ही महसूस कर लिया कि यह सब बेअसर हो रहा है और जातीय समीकरणों समेत कई तीर खाली जा रहे हैं. अतः ऐसे में एक बार फिर भगवान राम की शरण में जाना ही ठीक रहेगा.
इसमें बीजेपी को ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ी. ‘पंडित राहुल गांधी’ वाले पोस्टरों के जवाब में कांग्रेस के नेताओं मनोज त्यागी, रणदीप सुरजेवाला, मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल बारी-बारी से सेल्फ गोल ठोकते चले गए! बीजेपी भगवान राम से जुड़े हर प्रतीक को लेकर पहले ही अप्रत्यक्ष रूप से मुद्दा गरम रखे हुए थी. पहले अयोध्या में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के दौरे, उसके बाद सरयू तट पर भव्य दिवाली मनाना और फिर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का वह बयान कि राम मंदिर वहीं बनेगा. लेकिन कपिल सिब्बल की सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के बारे में दी गई दलील पहले चरण के चुनाव प्रचार में आखिरी वक्त पर बीजेपी को एडवांटेज दे गई.
अब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आक्रामक होकर पूछ रहे हैं कि राम मंदिर के निर्माण में देरी हो, इसके लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल युक्तियां भिड़ा रहे हैं लेकिन उन्हें यह भी बताना चाहिए कि क्या वे जल्द से जल्द राम मंदिर बनाने के पक्ष में हैं या नहीं? उन्होंने कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा करते हुए आरोप लगाया है कि राम मंदिर को चुनावों से बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस जोड़ रही है क्योंकि उसे देश की सबसे कम चिंता है. दरअसल बीजेपी बातें भले विकास की करे पर असल में उसे मालूम है कि उसका वोट बैंक- लव जिहाद, गोरक्षा, भारत माता, वन्दे मातरम्, धर्म परिवर्तन और मंदिर जैसे मुद्दों के सहारे ही टिकता और बढ़ता है. स्पष्ट है कि बीजेपी ने गाय के सहारे रेल यात्रा पर निबंध लिखने में सफलता प्राप्त कर ली है.
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को ‘नीच’ कहने वाले बड़बोले मणिशंकर अय्यर को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करके डैमेज कंट्रोल की कोशिश अवश्य की है लेकिन जो नुकसान होना था हो चुका. कपिल सिब्बल द्वारा मंदिर मामले की सुनवाई 2019 तक टालने की मांग पर भले ही यह सफाई दी जा रही हो कि उन्होंने कांग्रेस नेता के तौर पर नहीं बल्कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील की हैसियत से सुप्रीम कोर्ट में वह मांग की, लेकिन बीजेपी ने उस बयान का पूरा फायदा उठा लिया है.
ज़मीनी सच्चाई यह है कि गुजरात चुनाव में असली मुद्दे किसानी, बेरोज़गारी, महंगाई, नोटबंदी और जीएसटी ही हैं. लेकिन दोनों प्रमुख पार्टियों की तरफ से बात घूम-फिर कर राम मंदिर तक पहुंचा ही दी गई. लोकनीति-सीएसडीएस का सर्वेक्षण कहता है कि ऐन चुनाव से पहले विकास को छोड़ राम मंदिर का मुद्दा उछलने से बीजेपी को कितना फायदा होगा, यह कहना मुश्किल है. लेकिन इतना तो जाहिर ही हो गया है कि गुजरात में पार्टी अब 'रामभरोसे' चल पड़ी है.
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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)