आखिरकार यूपी की सच्चाई दिल से जुवां पर उतर ही गई. जब हर पार्टी 300-300 सीटें लाने का दावा कर रही है तो बीच में त्रिशंकु विधानसभा का सपना कहां से दिखने लगा है. राजनीति पार्टियों की स्थिति वही है जो हाथी की होती है यानि हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और. दरअसल उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मायवाती पहेली के जरिए त्रिशंकु विधानसभा की बात कर रहे थे लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस रहस्य पर से पर्दा उठा दिया है. बात है त्रिशंकु की लेकिन मकसद है पूर्ण बहुमत की. नरेन्द्र मोदी ने सपा और बीएसपी पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश लाने का खेल खेलने का आरोप लगाते हुए कहा कि ये दोनों दल ऐसी स्थिति बनाने की फिराक में है जिसके किसी को बहुमत ना मिले. मोदी ने कहा कि चुनाव के पहले तीन चरणों में अपनी हार पक्की होती देख एसपी और बीएसपी ने नया खेल शुरू किया है. हम हारें तो भले हारें, हमारी सीटें कम हों तो हो जाएं लेकिन किसी को बहुमत नहीं मिले. सच्चाई ये भी है कि त्रिकोणीय चुनाव होने पर त्रिशंकु विधानसभा होने की संभावना बढ़ जाती है यानि स्थिति का आकलन करते हुए हर पार्टी अपने हिसाब से दांव खेल रही है.


अफवाह की रणनीति


चुनाव जीतने के कई हथकंड़े अपनाये जाते हैं जिसमें अफवाह फैलाना और गुमराह करना भी रणनीति का हिस्सा होता है. एक पार्टी दूसरी पार्टी को दांव और साजिश के तरह मुद्दों के चक्रव्यूह में फंसाना चाहती है. मसलन अखिलेश बार बार मायावती को बुआ कहकर ये अफवाह फैलाने की कोशिश करते हैं कि चुनाव के बाद बीजेपी और बीएसपी हाथ मिला सकती हैं. वो बीजेपी और बीएसपी के रिश्तों को उजागर करने के लिए राखी बांधने और बंधवाने का जिक्र करते हैं. इस चाल में तीन चाल छिपी है एक त्रिशंकु विधानसभा का संकेत दे रहे हैं, दूसरी बात कि ऐसी स्थिति में बीजेपी और बीएसपी हाथ मिला सकती है क्योंकि पहले भी कई बार मिला चुके हैं, तीसरी बात ये है कि लोगों को आगाह करते हैं कि वोट क्यों बर्बाद कर रहो यानि उनकी पार्टी को वोट दो जो पूर्ण बहुमत ला सकती है. जबकि, अखिलेश के बयान में विरोधाभास भी हैं एक तरह दावा करते हैं कि उनके गठबंधन को आसानी से 300 सीट आ जाएंगे तो फिर त्रिशंकु विधानसभा का संकेत क्यों दे रहे हैं दूसरी बात ये है कि मायावती और बीजेपी सपा/जनता दल के लिए अछूती नहीं हैं तो फिर मायावती को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है. वहीं बीएसपी को मालूम है कि अखिलेश राजनीति कर रहे हैं तो वो भी बीजेपी और सपा के बीच सांठगांठ की बात करती हैं. अब इस खेल में मोदी भी कूद गये हैं वो संकेत दे रहें हैं कि सपा और बीएसपी की सरकार अपने बलबूते पर नहीं बनने वाली है इसीलिए वोटों की बर्बादी न करें बल्कि बीजेपी को वोट देकर स्थायी सरकार बनाएं. बीजेपी अभी तक 300 सीटें लाने की बात कर रही थी लेकिन अचानक पार्टी त्रिशंकु मोड में क्यों आ गई. जनता से वोट लेने के लिए पार्टियां गिरगिरा रही है उसी जनता को त्रिशंकु विधानसभा का डर दिखा रही है जबकि पार्टियां वोटर से ज्यादा डरी हई है कि पार्टी हारी तो सीएम पद की कुर्सी खिसक जाएगी.


त्रिशंकु की सच्चाई


यूपी में चुनाव नतीजे से पहले वैसे तो हर पार्टी बहुमत का दावा कर रही हैं उनकी सरकार आने वाली है जबकि सच्चाई ये है कि किसको कितनी सीटें आएंगी, कौन जीतेगी और कौन हारेगी किसी को मालूम नहीं है. ऐसी स्थिति में हमेशा त्रिशंकु की स्थिति बनी रहती है खासकर 1989 से यूपी में कई बार त्रिशंकु सरकार बनी और कई बार राष्ट्पति शासन भी लगे यानि यूपी का मिजाज त्रिशंकु वाला है. 1991 के बाद लगातार 16 सालों तक किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला जबकि 2007 के चुनाव से स्पष्ट बहुमत मिलने लगा है जबकि ऐसा आगे भी ऐसी गारंटी नहीं है. मायावती को समर्थन देने से पहले बीजेपी ने साल 1989 में मुलायम सिंह की सरकार भी बनवाई थी, लेकिन राम मंदिर आंदोलन के मुद्दे पर उनसे समर्थन वापस ले लिया था. 1991 में बीजेपी की बहुमत वाली सरकार बनी लेकिन अयोध्या में विवादत ढांचा गिराने की वजह से राष्ट्पति शासन लगा दिया गया था. 1993 से लेकर 2007 तक फिर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. 1993 में मुलायम और मायावती ने मिलकर जीत हासिल की थी. मायावती पहले 6 महीने के लिए सीएम बनी थी, लेकिन 6 महीने बाद जब उन्होंने मुलायम को सत्ता देने से मना कर दिया तो सरकार गिर गई. चुनाव आते गये लेकिन 2007 तक किसी को बहुमत नहीं मिला. यही डर पार्टियों को सता रहा है इसीलिए कोई भी पार्टी अंतिम दौर के चुनाव में जंग हारना नहीं चाहती है इसीलिए त्रिशंकु का मुद्दा उठाकर वोटरों को अपनी-अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही है पार्टियां.




  • धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए @dharmendra135 पर क्लिक करें. फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें. https://www.facebook.com/dharmendra.singh.98434


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