BLOG: जेलों में भी महिला कैदियों को झेलनी पड़ती है गैर बराबरी
राजीव गांधी की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रही नलिनी श्रीहरन माफी चाहती है. उसका कहना है कि वह जेल में सबसे ज्यादा समय बिताने वाली महिला कैदी हैं. उसे जेल गए पच्चीस साल हो गए हैं इसलिए उसे माफी दिलवाई जाए. इसके लिए उसने राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) का दरवाजा खटखटाया है.
नलिनी एक हाई प्रोफाइल कैदी है. उस पर आरोप भी हाई प्रोफाइल है. भले ही उसे जेल में रहते लंबा समय बीत गया है लेकिन इस दौरान उसे ए क्लास की सुविधाएं मिली हैं. उसने जेल में रहते हुए शानदार अंकों से एमसीए पास किया है. इग्नू ने उसे कई साल पहले जब यह डिग्री दी तो काफी खबरें चली थीं. नलिनी एक पढ़ी-लिखी कैदी है. राजीव गांधी की हत्या से पहले एक निजी कंपनी में काम भी करती थी. उसने पहले ही इंग्लिश लिटरेचर में एमए किया था. हत्या के समय वह प्रेगनेंट थी इसलिए उसकी बच्ची का जन्म जेल में ही हुआ था. 2000 में नलिनी की डेथ पेनेल्टी को उम्र कैद में बदला गया था और उसकी वजह भी एनसीडब्ल्यू था. तब सोनिया गांधी ने बड़प्पन दिखाते हुए माफ किया था. वैसे भी कांग्रेस स्थान-काल-पात्र को देखते माफ करती भी है और माफी मांगती भी है.
अब जेल की दूसरी महिला कैदी भी अपनी-अपनी गुहार लगाने चाहेंगी. एनसीडब्ल्यू को भी दूसरी महिला कैदियों की ओर ध्यान देना होगा. यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि देश की लगभग 18,000 महिला कैदियों को नलिनी की तरह हाई प्रोफाइल सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. उनकी हालत बदतर है और उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. यहां तक कि उन्हें पुरुष कैदियों से भी खराब स्थिति का सामना करना पड़ता है.
महिला कैदियों के बारे में हर साल राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो अपने आंकड़े जारी करता है. ब्यूरो के सबसे ताजा 2015 के आंकड़े कहते हैं कि देश में महिला कैदियों की संख्या 17834 है. इनमें से 1525 कैदियों के बच्चे भी हैं. ऐसे बच्चों की संख्या 1760 के करीब है. इन महिला कैदियों में 10 महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें मौत की सजा सुनाई गई है. 3398 महिलाएं उम्र कैद की सजा काट रही हैं. दर्जनों ऐसी भी हैं जिनके पास जमानत का पैसा नहीं है इसलिए वह जेल में ही बंद हैं. इनकी हालत के बारे में भी जानना जरूरी है.
हमारे देश में महिला जेलों की संख्या काफी कम है. कुल मिलाकर 18 महिला जेल हैं. पंजाब, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, गुजरात, तेलंगाना में एक-एक जेल है. राजस्थान में दो और तमिलनाडु और केरल में तीन-तीन जेल हैं. दिल्ली को छोड़कर सभी जगहों पर जेलों में कैपिसिटी ज्यादा है, पर कैदी कम. सिर्फ दिल्ली की जेल में ही कैपिसिटी से ज्यादा महिला कैदी हैं. इसलिए यह तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि जगह की कमी की वजह से कैदियों के लिए अच्छा रहन-सहन मुहैय्या नहीं कराया जा सकता.
बिल्कुल.. देश की जेलों में महिला कैदियों को अच्छा रहन-सहन उपलब्ध नहीं है. कोई कहेगा कि जेल के अंदर क्या, बाहर भी कौन से अच्छे रहन-सहन की आदी हैं औरतें. फिर कैदियों का क्या. लेकिन बात हक की है, वह भी तब जब सजा का ऐलान न्यायपालिका की तरफ से किया जाता हो. सोशल एक्टिविस्ट एंजेला सोनटके पांच साल से माओवादी संबंधों के चलते जेल में बंद थीं. इस साल की शुरुआत में उन्हें नागपुर जेल से बेल पर रिहा किया गया. एंजेला ने पिछले साल जेल में महिला कैदियों की स्थिति पर काफी विरोध जताया था. जेल के महिला सेल में सीसीटीवी कैमरा लगाए जाने के विरोध में तो एंजेला ने लंबी भूख हड़ताल भी की थी. उनका कहना है कि जेलों में भी महिला कैदियों को पुरुष कैदियों से कम सुविधाएं और सामान दिया जाता है.
जिन जेलों में महिला सेल अलग से हैं, वहां महिला कैदियों को मूवमेंट की उतनी इजाजत नहीं होती, जितनी पुरुष कैदियों को. कोई भी जानकारी लेनी होती है तो उन्हें जेल अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता है. कई जगहों पर जेल अधिकारी से मिलने के लिए उन्हें पैरों से चप्पल उतारनी पड़ती है और सिर ढंककर आना होता है. कई बार सलवार कमीज की जगह साड़ी पहननी पड़ती है. कई जेलों में उन्हें पर्याप्त सेनेटरी नैपकिन नहीं दिए जाते. कई जगहों पर धुलाई के लिए साबुन तो उतना ही मिलता है जितना पुरुष कैदियों को, पर खाने को खाना पुरुष कैदियों से कम दिया जाता है. आम तौर पर माना जाता है कि औरतों की खुराक मर्दों से कम होती है- इसलिए कई जगहों पर भोजन की मात्रा कम होती है. इसीलिए कई बार महिला कैदी एनिमिक भी पाई जाती हैं.
एक और बात है जिसमें महिला और पुरुष कैदियों के साथ गैर बराबरी का बर्ताव किया जाता है. औरतों को सिलाई-कढ़ाई-बुनाई-रंगोली जैसे स्किल सिखाए जाते हैं जबकि पुरुषों को लीडरशिप डेवलपमेंट और मैनेजेरियल स्किल्स में पारंगत किया जाता है. कई जगहों पर पुरुषों को स्पीच देना, इंटरव्यू देना आदि भी सिखाया जाता है. सिर्फ कंप्यूटर को छोड़कर शायद ही ऐसा कोई स्किल है जिसमें औरतों को मर्दों के बराबर प्रशिक्षित किया जाता है. इसके साथ कई महिला जेलों में न्यूजपेपर या पढ़ने की सामग्री नहीं दी जाती. कहीं पीसीओ की सुविधा नहीं है.
औरतों के साथ बदसलूकी की घटनाएं भी जेलों में आम हैं. जेल अधिकारियों को जेंडर सेंसिटिव बनाने के लिए पिछले ही महीने एनसीडब्ल्यू ने जेल अधिकारियों के लिए जेंडर सेंसिटिव ट्रेनिंग प्रोग्राम भी आयोजित किया. प्रिजन रिफॉर्म्स पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जेल अधिकारियों की पांचवीं राष्ट्रीय कांफ्रेंस में महिला कैदियों के लिए काउंसिलिंग और रीड्रेसल यानी शिकायत निवारण तंत्र की सिफारिश की गई. ऐसी कितनी ही महिलाएं हैं जो अंडर ट्रायल होती हैं. कितनी औरतों के साथ उनके बच्चे भी होते हैं जिन पर बुरे बर्ताव का बहुत बुरा असर होता है. एनसीडब्ल्यू की कोशिश है कि जेल अधिकारी इस संबंध में सोचें और अपना व्यवहार दुरुस्त करें.
बुरा बर्ताव किसी कैदी की जिंदगी तबाह कर सकता है. तीन साल पहले देश में सबसे ज्यादा लंबे समय तक जेल में रही विजया को वेल्लोर जेल से 23 साल बाद रिहा किया गया था. एक समय ऐसा था जब विजया चहक-चहककर सड़कों पर तमाशा दिखाया करती थी. जेल से रिहा होने के बाद उसने बोलना भी बंद कर दिया था. जेल उसकी मासूमियत की कत्लगाह बन गई थी.
पीनल रिफॉर्म एंड जस्टिस एसोसिएशन का कहना है कि छह महीने से ज्यादा समय तक जेल में रहने वाली पचास परसेंट औरतें मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाती हैं. डब्ल्यूएचओ का भी कहना है कि दुनिया में महिला कैदियों की संख्या 90 लाख के करीब हैं. इनमें हर नौ में से एक कैदी किसी न किसी मानसिक या शारीरिक बीमारी का शिकार है. इसी वजह से कितनी ही औरतों की मौत अननैचुरल तरीके से होती है. कितनी ही सुसाइड करने को मजबूर होती हैं. 1980, 1986 और 1987 में केंद्र सरकार जेलों की स्थिति में सुधार के लिए कई कमिटियों का गठन कर चुकी है. लेकिन स्थिति जस की तस है.
बेशक ये सभी औरतें नलिनी की तरह माफी की गुहार नहीं लगा रहीं. उन्हें सिर्फ मानवीय स्थितियों की दरकार है. मानवीय होना क्या है... यही कि हम ऐसी परिस्थिति में रहें जो हमें दबाए नहीं. हम बिना किसी दबाव के खुद को समझने, खुद से बाहर निकलने के बारे में सोचें. क्या हम अपनी साथिनों को ऐसा मौका दे सकते हैं.
Note: ये लेखक के निजी विचार हैं, इससे एबीपी न्यूज़ का कोई संबंध नहीं है.