(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
BLOG: 'चुनावै के टाइम लपेट दिहा मंत्री जी का'
'लाओ भईया एगो चाय बढ़ाओ तो.' ये कहते ही रामसजीवन अमेठी के एक चौराहे पर मौजूद चाय की दुकान पर साइड में पड़े टेबल पर बैठ कर अखबार पलटने लगे. अब रामसजीवन ठहरे अमेठी के तो गायत्री प्रजापति की खबर पढ़ते ही बोल पड़े, 'चुनावै के टाइम लपेट दिहा मंत्री जी का'. बगल में बैठे शख्स ये सुनते ही चुप कैसे रहते, तो वो भी बोल पड़े 'अरे कइले होइहैं'. बस फिर क्या था, बात निकली और दूर तलक जाने लगी.
सड़क पर लाल रंग की खुली जीप जैसे जैसे नज़दीक आती, एक चुनावी गाना कानों में पड़ने लगता. भोजपुरी के अश्लील गाने 'तनी सा जीन्स ढीला करा' की धुन पर 'मोदी के अकड़ ढीला करा' बज रहा है. जीप पर एक सपा का झंडा भी आगे बोनट पर लहरा रहा है. जैसे जैसे जीप पास आती, गाने की आवाज़ बढ़ती जाती और बढ़ती जाती बहस करने वालों की आवाज़ भी. कोई गायत्री को सही बोलता तो कोई ये मानने को तैयार नहीं की मंत्रीजी ने कुछ भी गलत किया होगा.
चाय वाला अबतक चुपचाप चाय बना रहा था लेकिन गांधी परिवार के गढ़ अमेठी में तो राजनीति रग रग में बसी है. आखिर वो कैसे चुप रहते. बंधू बोल पड़े, 'अरे हमहुँ नाही मनती कि मंत्री जी कुछऊ गलत कइले होइहैं'. जब पैसा बांटट रहैं तब ता नाही गलत कहिला, अब काहे गलत कहत हौ'. खैर, वक्त के साथ बहस बढ़ती जाती. जितने मुंह, उतनी बातें. लेकिन चाय वाले के यहाँ हो रही चाय पर चर्चा से एक बात तो साफ़ हो चली थी कि अमेठी विधानसभा में गायत्री प्रजपति पर लगे आरोपों ने राजनीति को गरमा दिया है और लड़ाई असल में बीजेपी की गरिमा सिंह और साईकिल सवार गायत्री प्रजापति के बीच ही है.
खैर यहाँ से बहस सुनकर मुझे लगा कि गायत्री प्रजापति पर आरोप लगने के बाद जितने नुकसान की उम्मीद जताई जा रही थी, उतना नुकसान नहीं हुआ है. अखिलेश यादव की सभा थोड़ी देर में शुरू होनी थी, मैंने घडी देखा तो सुबह के 10.45 बज रहे थे. सोचा ज़रा शेव करवा लूँ. शेव करने वाले पिंटू से बात बात में अंजान बनकर पुछा कि 'क्या माहौल है चुनाव का'? पिंटू बोला 'देखा भइया लड़ाई त कमल आ साईकिल में है'. थोड़ी जिज्ञासा बढ़ी तो उससे पूछ लिया, किसको वोट दोगे? पिंटू ने कहा जिसका माहौल बना उसी को दे दूंगा. खैर, मैं भी कहाँ मानने वाला था, पुछा मंत्री जी ने काम किया है या नहीं? पिंटू बोला, 'काम ता बहुत कइलन हैं लेकिन तनी गरिमौ (गरिमा सिंह) के देख लिहा जाये'. पिंटू से मैंने पूछा कि क्या क्या काम कराये हैं मंत्रीजी? पिंटू ने कहा, 'सड़क बनवाये, हैण्डपम्प लगवाए और सबसे बड़ी बात कि किसी का परेशानी मा मंत्री जी हमेशा मदद करत हैं'.
रैली स्थल पहुंचा तो अखिलेश यादव के आने में थोड़ा समय था. सोचा कुछ महिलाओं से भी पूंछू कि वो इन आरोपों पर क्या सोचती हैं. सभा स्थल पर आगे बैठी महिलाओं से जब पूछा कि मंत्रीजी पर गंभीर आरोप है, आप क्या सोचती है? इस सवाल पर लगभग सभी महिलाओं ने राजनीतिक अंदाज़ में सभी आरोपों को राजनीतिक षड्यंत्र करार दिया. समझ रहा था कि आगे तो माहौल राजनीतिक है. इस थोड़ा पीछे की ओर चल पड़ा. दिखने से पीछे बैठी महिलाएं बेहद आम घरों की लगीं. जब उनसे पूछा कि गायत्री प्रजापति के आरोपों पर वो क्या सोचती हैं तो कई महिलाएं तो यही नहीं जानती थीं कि मंत्री जी पर कोई आरोप भी है. जिन्हें पता था उनमे से एक ने कहा, 'बाबू हमका अधिक ना पता है, कानून के बात कानूने जाने, हमरी बेटी का बियाह मा मंत्री जी मदद कइले रहां'.
इसके बाद अखिलेश यादव की रैली ख़त्म होने के बाद जगह जगह नुक्कड़ों पर रुक-रुककर मैंने अमेठी में जब माहौल जानना चाहा तो हर जगह चर्चा थी तो सिर्फ रेप के आरोप की और लड़ाई में हर कोई साईकिल बनाम कमल की ही बात करता मिला. कुछ महिलाओं से भी जब सवाल किया कि किसके पक्ष में माहौल लग रहा है तो उनका मानना था कि महारानी गरिमा सिंह के साथ अन्याय हुआ है, इसलिए वो गरिमा को वोट देने की सोच रही हैं. ज़ाहिर है अमेठी में तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच जब कई जगहों पर मैंने लोगों का रुझान जानना चाहा तो पता लगा कि यहाँ गायत्री प्रजापति की सीधी लड़ाई गरिमा सिंह से है. हालाँकि ये पब्लिक है, इसका क्या मूड है ये तो 11 मार्च को ही पता लगेगा.
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