हमारे देश में सालों से परंपरा चली आ रही है कि सत्ता पक्ष अपने आम बजट को ऐतिहासिक बताता है और विपक्षी ब्रिगेड उसे घोर जनविरोधी करार दे देती है. केंद्र सरकार ने वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पढ़ी गई शेरो-शायरी की चासनी में पगा वर्ष 2017-18 का धमाकेदार बजट पेश कर दिया है. राहुल गांधी ने बजट की आख़िरी लाइन पूरी होने से पहले ही इसे ‘फुस्स बम’ बता दिया.


पीएम नरेंद्र मोदी समेत रेल मंत्री सुरेश प्रभु, शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, बिजली मंत्री पीयूष गोयल और एनडीए के सभी बड़े दिग्गज जहां बजट को उत्तम एवं अभूतपूर्व कह रहे हैं वहीं विपक्षी हैवीवेट नीतीश कुमार इसे दिशाहीन, ममता बनर्जी इसे विवादित, बेकार व हृदयहीन, लालू यादव इसे युवाविरोधी और येचुरी इसे जुमला बजट बता रहे हैं. क्या करें! पक्षियों की मजबूरी यह है कि वह अपने मट्ठे को पतला क्यों कहे और विपक्षियों की ताक़त तो अपने देश में निंदा रस से ही खुराक पाती है!


देखा जाए तो नोटबंदी से हुई तकलीफें झेलने के बाद (जो अब भी दूर नहीं हुई हैं) सबसे ज़्यादा प्रभावित लघु-मझोले उद्योगों और असंगठित क्षेत्र को बड़ी उम्मीदें थीं कि यह बजट उनके जख़्मों पर मरहम लगाएगा. बजट पर टकटकी लगाए बैठे बेरोज़गारों और किसानों को उम्मीद थी कि वित्त मंत्री शायद गरीबों के खातों में कुछ नकद पैसा डालने की घोषणा करेंगे, किसानों की कर्ज़माफी कर देंगे, व्यापारियों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए कोई योजना चालू करेंगे, बेरोज़गारी भत्ते का ऐलान करेंगे. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. एक बात ज़रूर हुई है कि रेल बजट को आम बजट में समाहित कर दिया गया है.


इसलिए कौन-सी ट्रेनें किन स्टेशनों के बीच शुरू हुई हैं, वह फास्ट फारवर्ड वाला रेलमंत्री का भाषण सुनने से निजात मिल गई है. वैसे आपको बता दें इस बार देश में कहीं कोई नई ट्रेन शुरू ही नहीं की गई तो वित्त मंत्री क्या बताते? प्रभु जी की इतनी कृपा ज़रूर रही कि रेल भाड़ा नहीं बढ़ाया गया है. इसके साथ-साथ आईसीआरटीसी से ऑनलाइन टिकट बुक कराने में सर्विस चार्ज से बरी कर दिया गया है, 500 किमी नई रेल लाइन बनाने की घोषणा की गई है और साल 2020 तक चौकीदार वाले फाटक समाप्त करने का वादा किया गया है. रेल भाड़ा, माल भाड़ा और प्लेटफॉर्म टिकट तो रेल मंत्री बिना बजट के ही बढ़ा चुके हैं!


वैसे इस बजट में कई सकारात्मक पहलू भी हैं. जैसे यही कि अब कोई भी राजनीतिक दल 2000 रुपए से अधिक की नकद राशि चंदे के रूप में नहीं ले सकेगा. इससे ज़्यादा का चंदा या तो किसी डिजिटल माध्यम अथवा चेक से देना पड़ेगा या फिर बैंकों द्वारा जारी बेयरर बांड के जरिए, जिस पर देने वाले का नाम नहीं होगा. दल को रिटर्न भी फाइल करना पड़ेगा. निश्चित ही यह साहसिक कदम है जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी. लेकिन लूप होल यह है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी अनएकाउंटेड मनी या काले धन को नकद चंदे के रूप में देगा तो चेक उसे कैसे रोक लेगा और उस राशि को चिह्नित कैसे किया जाएगा? और 2000 रुपए नकद की जगह शून्य राशि से शुरुआत क्यों नहीं हो सकती थी?


बजट पेश होने के पहले मध्यम वर्ग की निगाह जिस चीज पर सबसे ज़्यादा टिकी होती है वह है टैक्स स्लैब. इस बार आय कर में छूट की सीमा 2.5 लाख से बढ़ा कर 3 लाख रुपए कर दी गई है. राहत की बात यह भी है कि 3 से 5 लाख रुपए की आय पर जो टैक्स पहले 10% था उसे घटाकर 5% कर दिया गया है. शुरुआती स्लैबों में घटाई गई इन दरों का सकारात्मक असर ऊपरी स्लैबों पर भी पड़ा है और हर करदाता को कम से कम 12500 रुपए की राहत मिली है. डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करने के लिए किसी भी तरह के 3 लाख रुपए से ज़्यादा के नकद लेन-देन पर रोक लगा दी गई है. लेकिन अच्छा होता कि एक निश्चित सीमा तक के डिजिटल लेन-देन पर किसी भी प्रकार का कर न लगाया जाता.


बुजुर्गों के लिए अच्छी बात यह हुई है कि उनका एक स्मार्ट कार्ड बनेगा जो आधार कार्ड से संलग्न होगा और इसमें उनके स्वास्थ्य से संबंधित तमाम जानकारियां दर्ज़ होंगी. एसएमई सेक्टर को आयकर में 5% की छूट दी गई है और ग्रामीण व कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए उसमें 19000 करोड़ की रकम ख़र्च करने का वादा किया गया है.


इसके अलावा रक्षा बजट के लिए 2.74 लाख करोड़, इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए 3 लाख 96 हजार करोड़, मनरेगा के लिए 48000 करोड़, पीएम ग्रामीण सड़क योजना के लिए 27000 करोड़, डेयरी विकास के लिए 8000 करोड़, अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 4195 करोड़, इंटरनेट योजना के लिए 10000 हजार करोड़, हाईवेज के लिए 64900 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.


बजट की कुछ लोकलुभावन घोषणाओं में यह भी कहा गया है कि मार्च 2017 तक देश में 10 लाख तालाब बना दिए जाएंगे, गर्भवती महिलाओं के खाते में 6000 रुपए डाले जाएंगे, रोज़ाना 133 किमी सड़क बनाई जाएगी, फसल बीमा 30% से बढ़ाकर 40% किया जाएगा, भीम एप में कारोबारियों को कैश बैक मिलेगा, 2019 तक सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट होंगे, 600 ज़िलों में स्किल डेवलपमेंट सेंटर खोले जाएंगे, मेडिकल कॉलेजों में पीजी की 5000 सीटें बढ़ेंगी, 2019 तक 1 करोड़ बेघरों को घर मिलेगा, 2017-18 में किसानों को करोड़ों का कर्ज़ दिया जाएगा, 2018 तक सभी गांवों को बिजली मिलेगी आदि आदि...


लेकिन पूछने वाली बात यह है कि लगभग हर क्षेत्र के लिए कुछ न कुछ रेवड़ी बांटने वाली इन तमाम घोषणाओं को ज़मीन पर उतारने के लिए धन कहां से आएगा? अभी तो हाल यह है कि देश की 130 करोड़ की आबादी में टैक्स देने वालों की तादाद 1% के आसपास है. 50 लाख से ज़्यादा आमदनी वाले लोगों में से चंद लोग ही टैक्स भरते हैं जबकि महंगी गाड़ियां ख़रीदने और विदेश यात्राएं करने वालों की तादाद लाखों में है. जाहिर है हम टैक्स जिम्मेदारी से नज़रें चुराने वाला समाज हैं. इसका ख़ामियाजा ईमानदारी से टैक्स देने वालों को भुगतना पड़ता है और देश का विकास भी बाधित होता है.


जीडीपी की तुलना में हमारा टैक्स कलेक्शन दयनीय है. वित्त मंत्री को चाहिए कि पहले वे टैक्स आधार को फैलाने की दिशा में जल्द से जल्द कुछ ठोस कदम उठाएं और टैक्स चोरी करके जो लोग देश में छिपे रहते हैं अथवा विदेश भाग जाते हैं, उनसे पाई-पाई वसूलने की व्यवस्था करें. अगर ऐसा नहीं हुआ तो बजट महज हर साल का एक कर्मकांड बन कर रह जाएगा!


नोट: उपरोक्त लेख में व्यक्त दिए गए विचार लेखक के निजी विचार है. एबीपी न्यूज़ का इनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई सरोकार नहीं है.


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