आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और घोटालों के आरोपों और विवादों का चोली-दामन का साथ रहता है, मसलन चारा घोटाला, बिहार में जंगल राज, बेनामी संपत्ति का मामला, हेमा मालिनी के गालों को लेकर टिप्पणी, शहाबुद्दीन का ऑडियो टेप मामला, रेलवे के होटल टेंडर आवंटन में गड़बड़ी, करोड़ों के गिफ्ट स्वीकारने को लेकर लगे आरोप, मिट्टी घोटाला, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स घोटाला इत्यादि. उनके खिलाफ कई मामलों में सीबीआई अक्सर गब्बर सिंह की भूमिका निभाती आई है लेकिन इस बार तो उसने लालू यादव के पूरे कुनबे को ही लपेटे में ले लिया है.


पहले लालू यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान हुए होटल टेंडर आवंटन मामले में पटना स्थित राबड़ी देवी के आवास सहित देश के कुल 12 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी हुई और अब अरबों रुपए के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी पुत्री मीसा भारती और दामाद शैलेश कुमार के दिल्ली स्थित ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय ने छापे मारे हैं. आयकर विभाग ने लालू की पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, पुत्र और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, पुत्री चंदा और रागिनी यादव की संपत्ति को अस्थायी तौर पर जब्त करने का नोटिस भेजा है. यह नोटिस बेनामी लेन-देन (प्रतिबंध) कानून की धारा 24(3) के तहत जारी किया गया है.


अभी तक ऊपरी तौर लालू यादव यही दिखा रहे हैं कि उन्हें इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता. उल्टे वह इन तमाम कार्रवाइयों को राजनीतिक लाभ उठाने का सुनहरा अवसर मान कर चल रहे हैं और अपनी चिर-परिचित शैली में खम ठोंक रहे हैं- “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह हमें मिटाना चाहते हैं. लेकिन ऐसे चिल्लर और खटमल का इलाज मैं जनता की दवा से करूंगा.” यही नहीं लालू का दावा है कि जिस मामले में उनको घसीटा जा रहा है, वह फैसला अटल जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में हुआ था. साल 2006 में आईआरसीटीसी ने ओपन टेंडर से रांची, पुरी, हावड़ा और दिल्ली के होटलों को हासिल कर लिया. अगर कोई गड़बड़ी होती तो उसी समय दूसरे भागीदार केस कर देते!


लालू की सफाई का जवाब सीबीआई यह कह कर दे रही है कि टेंडर देने में गड़बड़ी की गई थी और कान घुमाकर सुजाता प्राइवेट लिमिटेड नामक प्राइवेट कंपनी को लाभ पहुंचाया गया. इस कंपनी के द्वारा 32 करोड़ की जमीन सिर्फ 65 लाख रुपये में लालू यादव की कंपनी मैसर्स लारा प्रोजेक्ट एलएलपी को ट्रांसफर की गई. सीबीआई ने लालू और उनके परिवार समेत आठ लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी), सेक्शन 120 बी (साझा साजिश), भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसी एक्ट) की धाराएं 13(2) और 13(1) (डी) भी अलग-अलग एफआईआर में जोड़ी हैं.


लेकिन हम जिस लालू यादव को जानते हैं, वह ‘उम्मीद पर दुनिया कायम है’ के सिद्धांत पर अमल करने वाले राजनेता हैं. चारा घोटाले में जेल काट आए लेकिन उनका जोश कम नहीं हुआ. सामाजिक न्याय का मसीहा बनने का जज्बा उनमें अब भी बरकरार है. राम मंदिर आंदोलन के वक्त जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी रथयात्रा निकाल रहे थे तो उन्होंने तमाम राजनीतिक ख़तरे उठाते हुए 23 अक्तूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी जी को गिरफ्तार करवा लिया था.


जनवरी 1996 में जब उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा तो करोड़ों का चारा घोटाला सामने आया. इसके बावजूद ‘खतरों के खिलाड़ी’ लालू यादव मुख्यमंत्री बने. उन पर चुनाव लड़ने का प्रतिबंध लगा तो उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को सीएम बनाकर विरोधियों को पटखनी दे दी. पिछले चुनाव में नीतीश कुमार और कांग्रेस से महागठबंधन करके अपने दोनों पुत्रों का राजनैतिक कैरियर लॉन्च कर दिया. अब सीबीआई की मैराथन छापेमारी के बाद वह अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए देशभर में फैले एनडीए के विरोधियों को संगठित करने की योजना बना रहे हैं.


लालू ने भावुक ऐलान किया है- “27 अगस्त को बिहार की जनता और देशभर के विपक्षी नेता पटना के गांधी मैदान में जुटेंगे. हमने मोदी-शाह को बिहार से भगाया है. यही कारण है कि ये लोग झूठे आरोपों से हमें घेरने का प्रयास कर रहे हैं. हम पर केस किया तो किया, बच्चों और बीवी तक को फंसा दिया है. जबकि यह तब का मामला है जब तेजस्वी नाबालिग थे. राबड़ी देवी भी किसी पद पर नहीं थीं.”


जहां लालू इतनी छीछालेदर के बाद भी दबंग मुद्रा बनाए हुए हैं वहीं उनके पार्टनर नीतीश कुमार की ख़ामोशी बहरा कर देने वाली है. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह उन्हें उकसा रहे हैं, “आज नीतीश कुमार मौनी बाबा बने हुए हैं लेकिन अब सुशासन बाबू को जवाब देना ही होगा.’’ वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने उलाहना दी है, “नीतीश कुमार को तेजस्वी और तेज प्रताप को अविलंब बर्खास्त करना चाहिए. क्या कोई मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल में ऐसे लोगों को रख सकता है जिनकी एक दर्ज़न संपत्तियां कुर्क हो चुकी हों?”


लेकिन नीतीश कुमार जानते हैं कि लालू के दोनों बेटों पर कार्रवाई करने का मतलब है अपनी सरकार को संकट में डालना. आख़िर 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में आरजेडी के 80, जेडीयू के 71 और कांग्रेस के 27 विधायक हैं. अगर नीतीश लालू से नाता तोड़ते हैं तो बहुमत खो जाएगा. सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी, जीएसटी और राष्ट्रपति चुनाव जैसे मुद्दों पर एनडीए का साथ देनेवाले नीतीश कुमार भले ही फिलहाल अपने पत्ते भले नहीं खोल रहे हैं लेकिन लालू आश्वस्त हैं- “महागठबंधन अटूट है. इन छापों का कोई असर नहीं होगा.”


मगर लालू बाहर से चाहे जितना आत्मविश्वास दिखाएं, मन ही मन वह भी हिले हुए हैं कि इस बार बुरे फंसे! सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले में उन्हें पहले ही तगड़ा झटका दे दिया है. अगर उनको और परिवार के सदस्यों को जेल हो गई तो उनका राजनीतिक रसूख हमेशा के लिए मिट्टी में मिल जाएगा और आरजेडी भी टुकड़े-टुकड़े हो जाएगी. लालू की मुश्किल यह भी है कि न तो जेडीयू और न ही कांग्रेस का कोई बड़ा नेता उनके बचाव में सामने आ रहा है. केंद्र द्वारा बदले की कार्रवाई और सताए जाने की करुण पुकार के बावजूद उनके लिए राजनीतिक और कानूनी लड़ाई लड़ने वाला भी फिलहाल उनके पीछे कोई नज़र नहीं आ रहा.


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