भारत और चीन ने सिक्किम के डोकलाम इलाके में 35 दिनों से नॉन-कॉम्बैट मोड में अपने-अपने तंबू गाड़ रखे हैं. भारत-भूटान-चीन सीमा पर उठ खड़े हुए इस नए बखेड़े को जिस तरह एशिया की इन दोनों महाशक्तियों ने नाक का प्रश्न बना लिया है, उसे देखते हुए लगता नहीं है कि दोनों तरफ के तंबू जल्द ही उखड़ेंगे. चीन का कहना है कि भारतीय सैनिकों ने अवैध रूप से डोकलाम सरहद को पार किया है और भारत का आरोप है कि चीन वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) में चाइना-पाक इकानॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) को मिला रहा है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट किया है कि अगर चीन सिक्किम में ट्राई-जंक्शन (भारत-चीन-भूटान सीमा का मिलान क्षेत्र) पर यथास्थिति में बदलाव करता है तो इसे भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती माना जाएगा. लेकिन चीन ट्राई-जंक्शन इलाके के बटालंगा तक पहुंचना चाहता है. उसकी कोशिश है कि बटालंगा तक पहुंचने के बाद वो जल्द ही ट्राई-जंक्शन तक पहुंच जाएगा. चीन अगर ऐसा कर लेता है तो फिर ट्राई-जंक्शन के स्टेटस-को (यथास्थिति) पर खतरा हो ही जाएगा.



चीन की जिद है कि भारत डोकलाम से अपने सैनिकों को वापस बुलाए और भारत का कहना है कि चीन सरहद पर सड़क निर्माण का काम बंद करे. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने कहा है- "बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने के कूटनीतिक दरवाजे खुले हैं लेकिन इसकी पूर्व शर्त यह है कि पहले भारत अपने सैनिकों को उस स्थान से पीछे हटाए." इधर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में जानकारी दी है- “हम बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन दोनों पक्षों को अपने सैनिक सीमा से वापस बुलाने होंगे.” जाहिर है दोनों खेमों में से पहले पलक झपकाने को फिलहाल कोई तैयार नहीं दिख रहा है.



सिक्किम के डोकलाम में विवाद इसी साल 16 जून को तब शुरू हुआ था जब भारतीय सैनिक दल ने चीनी सैनिकों को वहां सड़क बनाने से रोका था. हालांकि चीन का दावा यह है कि वह अपने क्षेत्र में निर्माण कार्य कर रहा है. जबकि हकीकत यह है कि डोकलाम के साल 2012 में एक समझौता हुआ था जिसके मुताबिक ट्राई-जंक्शन प्वाइंट पर जो भी तय करना होगा, तीनों देश मिलकर तय करेंगे.



लेकिन चीन का सरकारी मीडिया फिजूल के आरोप लगाकर ऐसा भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहा है कि डोकलाम विवाद में भारत भूटान में बेवजह दखल दे रहा है. शायद वह इस बात को नजरअंदाज कर रहा है कि 2007 में भारत और भूटान ने अलग से एक समझौता किया था कि वे ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगे, जिससे दोनों देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा को कोई खतरा पहुंचे. इसीलिए चीन की हरकतों को लेकर भूटान के राजदूत और वहां की सरकार ने नई दिल्ली स्थिति चीनी दूतावास में अपना लिखित विरोध जता दिया था. चीन इसलिए भी बौखलाया हुआ है कि भारत की वजह से भूटान को वह दूसरा तिब्बत नहीं बना पा रहा है.



भारत के लिए ट्राई-जंक्शन का यह संकरा इलाका भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है कि चीन जहां सड़क बना रहा है उसी इलाके में लगभग 20 किमी का हिस्सा सिक्किम और पूर्वोत्तर के राज्यों को भारत के बाकी हिस्से से जोड़ता है. अगर चीन ने यहां सड़क बढ़ाई तो वह न सिर्फ भूटान में घुस जाएगा बल्कि लगभग 200 किमी लंबे और 60 किमी चौड़े भारत के सिलीगुड़ी गलियारे के सामने भी खतरा उत्पन्न कर देगा. और भारत के कई इलाके चीनी तोपों की जद में आ जाएंगे.


चीन समूचे एशिया पर अपनी धौंस जमाना चाहता है. दक्षिणी चीनी महासागर पर प्रभुत्व बढ़ाने में उसे न तो फिलीपींस अथवा अन्य छोटे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से कोई चुनौती मिली, न ही महाशक्तिशाली यूएसए से. एशिया की सबसे बड़ी सैनिक और आर्थिक महाशक्ति तो वह है ही. शायद इसीलिए अब वह भारत जैसे महाबली पड़ोसी की शक्ति की थाह लेना चाहता है. वर्तमान 2017 में न तो 1962 (जब दोनों के बीच युद्ध हुआ था) का चीन है न भारत. दोनों ने अपनी-अपनी ताकत और हिम्मत कई गुना बढ़ा ली है. चीन भूटान जैसे छोटे और कमजोर देश के कान उमेठ कर भारत को उकसाना चाहता है. वह इसे भारत-भूटान रिश्तों का खात्मा करने के एक अवसर के तौर पर भी देख रहा होगा!


भारत के पास इस तनातनी से सम्मानपूर्वक बाहर निकलने का रास्ता क्या हो सकता है? एकमात्र जवाब है- उच्चस्तरीय वार्ता. भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल 26-27 जुलाई को ब्रिक्स देशों के एनएसए सम्मेलन में भाग लेने बीजिंग जा रहे हैं. दोनों देशों के बीच मौजूदा गर्म माहौल में डोकलाम विवाद पर उनकी अपने चीनी समकक्ष यांग जिएची के साथ कोई औपचारिक बातचीत की संभावना तो नहीं दिखती लेकिन अनौपचारिक चर्चा अवश्य हो सकती है. इस चर्चा से निश्चित ही आगे का रास्ता खुल सकता है. विदेश सचिव एस. जयशंकर ने भी एक संसदीय समिति को जानकारी दी है कि मौजूदा तनाव खत्म करने के लिए कूटनीतिक स्तर पर हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं. हालांकि दोनों पक्षों के अड़ियल रवैए के चलते निकट भविष्य में कोई हल निकलता नज़र नहीं आता.


भारत का डोकलाम से एकतरफा अपने सैनिक पीछे हटाना आत्मघाती कदम होगा. चाहे महीनों या सालों वहां डटे रहना पड़े, भारत को अपने आत्मसम्मान और सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से चीन की आंखों में आंखें डाले रखना चाहिए. भारत किसी भी कीमत पर अपने पूर्वोत्तर इलाके को ड्रैगन की ज्वाला में झुलसाना नहीं चाहेगा. इसलिए किसी नतीजे पर पहुंचने की सूरत तभी निकलेगी जब चीन वहां सड़क बनाना बंद करे और अपनी पूर्व पोजीशन पर लौट जाए.


सीमा पर तनाव भारत और चीन के लिए कोई नई बात नहीं है. लेकिन अगर बात आगे बढ़ती है, तो हम उस देश के वासी हैं जहां की मान्यता है- सन्मुख लड़ैं काल किन होई!


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