गांव में कहावत है कि भेष से ही भीख भी मिलती है. प्रतीक की राजनीति के चलन को महात्मा से लेकर महात्मा गांधी तक ने बखूबी समझा. देश और काल कोई भी हो, मजबूत ब्रांडिंग के लिए प्रतीक के तीर गंभीर 'घाव' करते हैं.
आज कांग्रेस ने छत्तीसगढ के लिए 36 वादों का घोषणा पत्र जारी किया. टीएससिंह देव ने 3 मिनट में राहुल को 36 बार 'सर' कहा. अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें बुरा क्या है? दो व्यक्तियों के निजी बातचीत की भाषा में कोई बुराई नहीं है. लेकिन जब आप सार्वजनिक जीवन में होते हैं तो जनता ही 'सर' होती है. हालांकि पहचान की मोहताज जनता के रूखे हुए हाथों में अगर कुछ है तो वो है वोट देने का अधिकार, अपने इसी ताकत से जनता आपको सड़क से संसद और संसद से सड़क पर ला देती है. ऐसे मौके पर लोकाचार बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है. लोकाचार को हमेशा समाज नैतिक मूल्य की तरह मानता है. इसे समाज का व्यापक समर्थन होता है जिस वजह से इसे टूटता देखकर समाज बेचैन हो जाता है. घोषणापत्र किसी भी सियासी दल के लिए 'धार्मिक ग्रंथ' की तरह होना चाहिए, ऐसा प्रचलन है. जब आप घोषणापत्र प्रस्तुत कर रहे हैं उस वक्त एक मंझे हुए राजनेता से उम्मीद की जाती है कि वह कार्यक्रम को 'तीर्थाटन' बना दे. लेकिन आज ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे ‘जिल्लेइलाही’ बैठे हों और एक सेवक निर्गुण पाठ सुना रहा हो. घोषणापत्र आम जनता के लिए था ना कि आलाकमान के लिए... यह छोटी सी बात ना उनके बुजुर्ग नेता समझे ना ही उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष.
अब यहां दो बातें हो सकती हैं. या तो कांग्रेस का मीडिया मैनेजमेंट फेल है या कांग्रेस का स्वरूप ही लोकतंत्र और सामंतवाद का मिश्रण है? यह बृहद चर्चा का विषय हो सकता है. जब सामने प्रतीक की सियासत को समझने वाला नायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा हो तो राहुल गांधी के सहयोगियों को ऐसी चूक नहीं करनी चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब से ही गांधी परिवार के लिए सल्तनत, शहंशाह.. मैडम... जैसे प्रतीकात्मक शब्दों की सियासत के जरिए जोरदार हमला करते रहे हैं. जिसकी काट अभी तक कांग्रेस नहीं खोज पाई है. गुजरात का 'नीचकांड' बेहतरीन उदाहरण है. सियासत में ऐसी जंग जाहिर सी बात है, होना स्वभाविक भी है. राहुल गांधी की 2019 के सियासी अखाड़े में भिड़ने वाली छवि बनाने में जुटे कांग्रेसी चिंतक ऐसी छोटी लेकिन गंभीर गलतियां करके बीजेपी की तरकश में ब्रह्मास्त्र दे रहे हैं. जब सियासी रूप से कांग्रेस को ऑक्सीजन की जरूरत है ऐसे में इस तरह की प्रतीकात्मक चूक आत्मघाती कदम साबित होंगे.
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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)