ट्रोल मोल के बोल... ट्विटर पर किसी ने दीपिका पादुकोण को सलाह दी थी. पर जेएनयू में प्रदर्शनकारियों के साथ खड़ी दीपिका ने तो एक भी शब्द नहीं बोला था. सिर्फ घायल छात्रा के सामने हाथ जोड़ा था. उसे हिम्मत और तसल्ली दी थी. एक लड़की, दूसरी लड़की के साथ है. बीते रविवार जब जेएनयू में नकाबपोश डंडे लेकर पहुंचे, तो उन्होंने लड़कियों को भी नहीं बख्शा. लड़कियों को तेज आवाज में बोलते, हम पसंद भी नहीं करते. पसंद यह भी नहीं करते कि एक दूसरी सिलेब लड़की उसका साथ दे. दीपिका पादुकोण के इस स्टैंड पर लोग नाराज हुए. उन्हें देशद्रोही बताया. इसके बावजूद कि केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्री कह चुके हैं कि यह दीपिका की अपनी मर्जी है कि वह कहां जाएं. किसे सपोर्ट करें.


यह विचार हम तब व्यक्त नहीं करते, अगर पुरुष सिलेब कहीं हो आता है. अक्षय कुमार प्रधानमंत्री का इंटरव्यू ले सकते हैं. सरकारी योजनाओं का प्रचार कर सकते हैं. स्वच्छ भारत अभियान का चेहरा बन सकते हैं. दिल्ली आने पर यूनिवर्सिटी की विमेन मैराथन में एबीवीपी का झंडा फहरा सकते हैं. बेशक, इसके लिए किसी की आलोचना करने का किसी को हक नहीं. सिलेब्स की भी अपनी राय होती है और उसका सम्मान किया जाना चाहिए. पर दीपिका के मामले में आलोचना, यहां तक कि धमकी देने वाले भी सैकड़ों जुट जाते हैं. उनकी फिल्मों का बायकॉट शुरू हो जाता है.


फिल्मी सितारों की भी अपनी राजनैतिक विचारधारा होती है. बीते दौर में पृथ्वीराज कपूर से लेकर दिलीप कुमार और सुनील दत्त ने भी राजनैतिक नेताओं और उनके एजेंडे के लिए काम किया है. दिलीप कुमार की 1957 की फिल्म नया दौर नेहरू के आधुनिक भारत की अवधारणा को फिल्मी परदे पर उतारती थी. राज कपूर, सुनील दत्त जैसे स्टार्स कांग्रेस के समर्थकों में से चंद नाम हैं. सुनील दत्त की हम हिंदुस्तानी में नेहरू और कांग्रेस की बैठक का एक दृश्य भी था. पृथ्वीराज कपूर तो नेहरू के पसंदीदा थे. उनके साथ विदेश यात्राओं पर भी गए थे. बाद के वर्षों में अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ और जीत चुके हैं. विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा लंबे समय तक बीजेपी के साथ जुड़े रहे. अभी भी सत्ताधारी बीजेपी से लेकर हर राजनैतिक दल के पास सिलेब्रिटीज़ की लाइन है. वे चुनाव लड़कर सांसद और विधायक बने हुए हैं. पर दीपिका हमें फूटी आंख नहीं भा रहीं. इसके बावजूद कि उनके राजनैतिक मत के बारे में हम कुछ नहीं जानते. जानते सिर्फ इतना हैं कि उन्होंने जेएनयू हिंसा पर दुख जताया. ऐसा बड़े-बड़े नेताओं ने भी किया. भले ही वे वहां गए नहीं.


बहुतों ने कहा कि दीपिका जेएनयू कभी न जातीं, अगर वह दिल्ली में अपनी फिल्म छपाक का प्रमोशन न कर रही होतीं. कइयों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया. अगर यह सही भी है तो इसमें क्या गलत है? गलत इसलिए है क्योंकि जब भी कोई औरत अन्याय, पक्षपात या हिंसा के खिलाफ अपनी राय रखती है, उसे आलोचनाएं ही सहनी पड़ती हैं. सोशल मीडिया के दौर में उसे ट्रोल्स का शिकार होना पड़ता है. गालियां मिलती हैं. धमकियां मिलती हैं- रेप, हत्या, एसिड अटैक की. दीपिका को भी धमकियां मिली हैं. पद्मावत के वक्त तो उनका सिर कलम करने के लिए 10 करोड़ रुपए का ईनाम तक रखा गया था. जाहिर सी बात है, ट्विटर पर जिसके 26 मिलियन और इंस्टाग्राम पर 42 मिलियन फॉलोअर्स होंगे, उसे बहुत कुछ सुनना पड़ सकता है. ऐसी धमकियां स्वरा भास्कर को अक्सर मिलती हैं. उन्हें निर्देशक राज शांडिल्य जैसे फिल्म इंडस्ट्री के ही लोग सस्ती बता देते हैं. इसी तरह इन लोगों की दुकान चलती रहती है.


स्वरा काफी वोकल हैं. जामिया मिलिया इस्लामिया में हिंसा के बाद भी उन्होंने ट्वीट किया था. वैसे अलग-अलग मंचों पर अपनी राय जाहिर करने के कारण उन्हें अपना काम से हाथ धोना पड़ा है और एंडोर्समेंट्स से भी. पिछले आम चुनावों में उन्होंने अलग-अलग राजनैतिक दलों के छह उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार किया तो छह ब्रांड्स ने उन्हें अपने कैंपेन से हटा दिया. पर वह पीछे नहीं हटीं. ऐसे ऑनलाइन ट्रोल्स की शिकार मलयाली ऐक्ट्रेस पार्वती भी हो चुकी हैं. उन्होंने एक मंच पर यह कह दिया था कि उन्हें 2016 की कस्बा फिल्म को देखकर बहुत निराशा हुई. इसमें लीड ऐक्टर मिसॉजिनिस्ट यानी औरतों के लिए द्वेष से भरे डायलॉग्स बोलता है. इस फिल्म में मलयालम सुपरस्टार मम्मूटी थे. बस, उनके फैन्स ने पार्वती को लाइन हाजिर कर दिया. उनके खिलाफ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर गालियों की बौछार होने लगी. हत्या-रेप की धमकियां आईं. हारकर पार्वती ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.


यह पहली बार है कि किसी मेनस्ट्रीम बॉलिवुड ऐक्टर की मौजूदगी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. आप दीपिका की राजनैतिक राय नहीं जानते. आप सिर्फ इतना देख भर पाए हैं कि लड़के-लड़कियों के जख्मी होने पर वह उनके साथ खड़ी हैं. हिंसा के शिकार लोगों के साथ खड़ा होना क्या गलत है? 2017 में हॉलिवुड की मशहूर ऐक्ट्रेस मेरील स्ट्रीप ने गोल्डन ग्लोब्स पुरस्कार समारोह में अभिनय के लिए पुरस्कार लेते समय लगभग पांच मिनट का वक्तव्य दिया था. यह वक्तव्य सामाजिक और राजनीतिक व्यवहार में शालीनता की बहाली की एक शानदार अपील बन गया था. इसे सुनकर सिर्फ अमेरिका नहीं, पूरी दुनिया के लोगों ने उसमें अपने लिए भी कुछ सुना था. मेरिल ने वक्तव्य में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस भाषण का हवाला दिया था जिसमें उन्होंने डेली न्यूज़ के रिपोर्टर सर्ज कोवाल्स्की के लाचार हाथों की नकल उतारी थी और उनकी खिल्ली उड़ाई गई थी.
बेशक मेरील की तरह दीपिका के मन में स्टूडेंट्स के साथ हुई हिंसा धंस गई. समाज धीरे-धीरे इस तरह की हिंसा का आदी होता जाता है. यह सब कुछ देखकर दिल सचमच टूटता है. लेकिन जैसा मेरील स्ट्रीप ने अपने वक्तव्य के अंत में कहा, ‘अपने टूटे हुए दिल को कला में बदल दो!’ कला आखिरकार सच्चाई का बयान या खोज ही तो है. दीपिका या उनके जैसे ऐक्टर्स को यह समझना चाहिए.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)