अश्वेतों का प्रदर्शन, कैलोफोर्निया के जंगलों में आग और कोरोना विस्फोट, अमेरिका के लिए 2020 बना त्रासदियों का साल
पूरा अमेरिका इस वक्त बेरोज़गारी, कोविड और राष्ट्रपति चुनाव के लिए हो रहे प्रचार में मग्न है. लोग सांसें रोक कर चुनावों का इंतज़ार कर रहे हैं जिसे कई मायनों में ऐतिहासिक माना जा रहा है.
21 वीं सदी का यह बीसवां साल अमेरिका के लिए कई मायनों में त्रासदियों के साल की तरह याद रखा जाने वाला है. राष्ट्रपति चुनावों वाले इस साल में पहली बार है कि देश में डेढ़ लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं लेकिन ऐसी ही एक और त्रासदी से अमेरिका जूझ रहा है जिसके बारे में दुनिया में कम बात हो रही है.
अमेरिका का वेस्ट कोस्ट पिछले कई महीनों से जंगल की भयावह आग से जूझ रहा है
अमेरिका का वेस्ट कोस्ट पिछले कई महीनों से जंगल की भयावह आग से जूझ रहा है. इसमें भले ही लोगों की जानें नहीं गई हों लेकिन इस आग ने जिस तरह से पूरे इलाके को अपनी चपेट में लिया है उसके परिणाम अगले कई सालों तक देखने को मिल सकते हैं.
लोग सांसें रोक कर चुनावों का इंतज़ार कर रहे हैं
राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनके विरोधी जो बाइडन ने अपनी रैलियों में इस आग के बारे में कम ही बात की है. पूरा अमेरिका इस वक्त बेरोज़गारी, कोविड और राष्ट्रपति चुनाव के लिए हो रहे प्रचार में मग्न है. लोग सांसें रोक कर चुनावों का इंतज़ार कर रहे हैं जिसे कई मायनों में ऐतिहासिक माना जा रहा है. ट्रंप के अनुसार अगर वो हार गए तो अमेरिका पर वामपंथी ताकतों का कब्ज़ा हो जाएगा. हां वो ऐसा ही कहते हैं जबकि जो बाइडन विनम्रता से लोगों को समझाने की कोशिश में जुटे हैं कि ट्रंप के हाथ में अगर अमेरिका चार साल और रहा तो देश को ऐसा नुकसान पहुंचेगा जिसे ठीक करना असंभव हो जाएगा.
अश्वेत लोगों का विरोध प्रदर्शन अभी भी रूका नहीं है. वेस्ट कोस्ट के पोर्टलैंड में सौ से अधिक दिन से प्रदर्शन जारी है जहां राइट विंग गुटों के साथ अश्वेत प्रदर्शनकारियों की झड़पें भी हुई हैं. खबरों के अनुसार इस इलाके में लोग इस तादाद में बंदूक खरीद रहे हैं कि बंदूकें कम हो गई हैं.
कैलिफोर्निया और वाशिंगटन राज्यों में भी आग ने कहर बरपा रखा है
अस्मिता की इस लड़ाई में हिंसा पर खूब रिपोर्टिंग हो रही है लेकिन कैलिफोर्निया और आसपास के इलाकों की आग अब जाकर अमेरिकी मीडिया के मुखपृष्ठ पर आई है जब ओरगन राज्य से पचास हज़ार लोगों को बाहर निकालने के आदेश दिए गए हैं. कैलिफोर्निया और वाशिंगटन राज्यों में भी आग ने कहर बरपा रखा है. कैलिफोर्निया में कम से कम तीन मिलियन एकड़ में आग अभी भी जल रही है. ऐसा भी नहीं है कि स्थानीय अधिकारियों को इसका अंदाजा नहीं था. बीच बीच में इस इलाके में आग लगती रही है लेकिन इस साल गर्मियों में लगी आग अभी तक थमी नहीं है. वैज्ञानिक कह रहे हैं कि ये जलवायु परिवर्तन का एक ऐसा रूप है जो अब सीधे कैलिफोर्निया और आस पास के इलाके में पहुंच चुका है.
अखबारों की मानें तो कैलिफोर्निया के इतिहास में जंगल में लगी आग की बीस सबसे बड़ी घटनाओं में से छह घटनाएं इसी साल हुई हैं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अमेरिका का वेस्ट कोस्ट झुलस रहा है.
देश के कई इलाकों में ब्लैक लाइव्स मैटर के प्रोटेस्ट थम नहीं रहे
एक तरफ वेस्ट कोस्ट में जहां आग लगी हुई है वहीं देश के कई इलाकों में ब्लैक लाइव्स मैटर के प्रोटेस्ट थम नहीं रहे हैं. कुछ महीने पहले जॉर्ज फ्लायड की पुलिसिया बल प्रयोग में हुई मौत के बाद भी काले लोगों पर पुलिस कार्रवाई की घटनाएं थमी नहीं हैं. पिछले दिनों विस्कांसिन के केनोसा में जॉर्ज ब्लेक नाम के एक काले युवक को पुलिस ने उनके बच्चों के सामने सात गोलियां मारी और वो अब अपाहिज हो चुके हैं जीवन भर के लिए. इसके जवाब में लोगों ने केनोसा में कई दुकानें जला दी हैं.
अगर इन दोनों आगों से अगर कोई अमेरिका में बचा है तो वो कोविड की मार झेल रहा है जिसके सामाजिक और मानिसक असर पड़ रहे हैं. बेरोज़गारी और जीवन को लेकर अनिश्चितता बढ़ी है देश में और अब लोग यही उम्मीद कर रहे हैं कि चुनाव हो तो फिर से अमेरिका अपने पैर पर खड़े होने की कोशिश करे.
अमेरिका भी फेक न्यूज़ से परेशान है
इन कठिनाईयों के बीच अमेरिका भी फेक न्यूज़ से परेशान है. वेस्ट कोस्ट में लगी आग को लेकर फेसबुक पर ये अफवाह फैलाई गई कि ये आग एंटिफा कार्यकर्ताओं और ब्लैक लाइव मैटर्स के कार्यकर्ताओं ने लगाई है. ये खबर तेजी से फैली और जल्दी ही सोशल मीडिया पर इसे लेकर एंटिफा और ब्लैक लाइव मैटर्स पर आरोप लगने लगे.
फेसबुक ने अब स्पष्ट किया है कि उन्होंने स्वतंत्र रूप से जांच में पाया है कि ऐसी अफवाहें बिल्कुल झूठी हैं कि ये आग एंटिफा या ब्लैक लाइव मैटर्स के समर्थकों ने फैलाई हैं. फेसबुक ने कहा है कि वो ऐसी अफवाहों को चिन्हित कर के रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
अमेरिका में डेढ़ महीने बाद चुनाव होने वाले हैं
अगर पिछले तीन महीने के अमेरिका को देखा जाए तो लगता नहीं है कि आप किसी विकसित देश में रह रहे हैं. महामारी को गंभीरता से नहीं लेना, महामारी के लिए राष्ट्रपति ट्रंप का चीन को दोषी ठहराना, डबल्यूएचओ से निकल जाना, जॉर्ज फ्लायड और उसके बाद के विरोध प्रदर्शनों को लेकर राष्ट्रपति के गैर जिम्मेदार ट्वीट्स, वेस्ट कोस्ट की आग पर किसी भी राजनीतिक दल का ज्यादा बात नहीं करना अजीबोगरीब लगता है.
अगर इन घटनाओं को पढ़कर आपको भारत की बाढ़ की खबरों का मुख्य अखबारों से गायब रहना या सीएए के विरोध प्रदर्शनों को लेकर सरकार के कड़े रवैए और राइट विंग द्वारा उन प्रदर्शनों के बारे में अफवाहें फैलाना याद आता है तो यही कहा जा सकता है कि अमेरिका और भारत फिलहाल एक ही नाव पर सवार हैं. बस अंतर ये है कि अमेरिका में डेढ़ महीने बाद चुनाव होने वाले हैं और भारत में अगले चुनावों में चार साल बाकी हैं.
तब तक यही हो सकता है कि उम्मीद की जाए कि मानव निर्मित न कही प्राकृतिक आपदाएं तो कम से कम खत्म हो ताकि महामारी और समाज में नस्ल की बढ़ती खाईयों को पाटने के लिए कुछ सार्थक कदम उठाए जा सकें.
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