2007-08 के ऑस्ट्रेलिया दौरे की बात है. सिडनी टेस्ट में ‘मंकीगेट एपीसोड’ हुआ था.  भारतीय स्पिनर हरभजन सिंह पर आरोप था कि उन्होंने एंड्रयू सायमंड्स पर नस्लीय टिप्पणी की है. विश्व क्रिकेट के बड़े विवादों में वो विवाद शुमार हुआ था. मैदान में खिलाड़ियों के बीच जबरदस्त तनातनी थी. अंत में उस टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया को जीत मिली थी.



यहां तक कि बात तो पूरी दुनिया को मालूम है, लेकिन जो एक बात ‘पब्लिक डोमेन’ में नहीं आई वो थी उस मैच के बाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस. उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैं भी मौजूद था. अनिल कुंबले भारतीय टीम के कप्तान हुआ करते थे. अनिल कुंबले जब प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए आए तो उनके लिए बाकयदा तालियां बजी. ये तालियां भारतीय मीडिया ने अनिल कुंबले के लिए बजाई थीं. एक हारे हुए कप्तान के लिए तालियां शायद ही कभी बजी हों. उन तालियों के बजाने के पीछे थी टीम इंडिया की खेल भावना. जिसकी सभी ने जमकर तारीफ की थी.

उस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में अनिल कुंबले ने एक बहुत बड़ी बात कही थी. उन्होंने कहाथा कि “आई थिंक ऑनली वन टीम हैज प्लेयड इन द राइट स्पिरिट ऑफ द गेम” यानि टीम भावना को लेकर सिर्फ एक टीम खेली. उस पूरी सीरीज पर मंकीगेट विवाद छाया रहा. यहां तक कि भारतीय टीम को दौरे को रद्द करने की धमकी तक देनी पड़ी थी. बाद में जस्टिन हेंसन की अदालत में हरभजन सिंह को ‘क्लीनचिट’ मिली.

आज वही अनिल कुंबले टीम के कोच हैं. असंभव है कि वो मंकीगेट एपीसोड भूले हों. उसके बाद की परिस्थितियां भी उन्हें अच्छी तरह याद होंगी. ऐसे में बेहतर ये है कि मौजूदा सीरीज में भी वो टीम इंडिया को प्रेरित करें कि वो डीआरएस के विवाद से बाहर निकले और मैदान पर ‘फोकस’ करे.

क्या है डीआरएस का ये विवाद

बेगलुरू टेस्ट मैच की दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलियाई टीम 188 रनों के लक्ष्य का पीछा कर रही थी. एक एक रन कीमती था. ऑस्ट्रेलियाई पारी के 20वें ओवर में उमेश यादव की गेंद पर स्टीव स्मिथ के खिलाफ एलबीडब्ल्यू की अपील हुई. अंपायर ने उन्हें आउट करार दिया. स्मिथ इस फैसले से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे. ऐसा लगा कि वो इस फ़ैसले पर डीआरएस लेना चाहते हैं.

डीआरएस लेना है या नहीं इस बात का फैसला करने के लिए उन्होंने ड्रेसिंग रूम की तरफ देखा. यानि वो चाहते थे कि ड्रेसिंग रूम से उन्हें ये इशारा मिल जाए कि उन्हें क्या करना चाहिए. बाद में उन्होंने डीआरएस नहीं लिया. भारतीय कप्तान विराट कोहली को ये नागवार गुजरा. उन्होंने तुरंत फील्ड अंपायरों से इस बात पर आपत्ति जताई.

दरअसल नियमों के मुताबिक डीआरएस के इस्तेमाल के संबंध में साफ है कि ड्रेसिंग रूम से कोई मदद नहीं ली जा सकती है. मैच खत्म होने के बाद कोहली ने ये भी कहा, "हम डीआरएस का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं लेकिन हम अपने फैसले मैदान पर लेते हैं. ड्रेसिंग रूम से किसी तरह की मदद नहीं लेते." आंकड़े बताते हैं कि सीरीज में अब तक डीआरएस को लेकर भारत के मुकाबले ऑस्ट्रेलिया का फैसला ज्यादा बेहतर साबित हुआ है.

तुरंत शुरू हुआ आग में घी डालने का काम  

इस विवाद के तुंरत बाद आग में घी डालने का काम शुरू हो गया. ऑस्ट्रेलिया के तमाम पूर्व क्रिकेटर और मीडिया अपने कप्तान के पक्ष में खड़ा हो गया. बीसीसीआई ने टीम इंडिया की शिकायत को जायज ठहराया तो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने इसे अपमानजनक कहा. दिलचस्प बात ये है कि इस बीच ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज पीटर हैंड्सकोंब ने स्वीकार भी कर लिया कि उन्हें नियमों का पता नहीं था इसलिए उन्होंने ही स्मिथ को ऐसा करने के लिए कहा था.

परिपक्वता इसमें होती कि इस मुद्दे को यहीं खत्म कर दिया जाता क्योंकि इससे निश्चित तौर पर खेल भावना आहत होती है. भारतीय टीम को अच्छी तरह पता है कि ऑस्ट्रेलियाई टीम का इतिहास इस तरह के विवादों से भरा पड़ा है. ऐसे में एक और विवाद में कूदने की बजाए मैदान में पसीना बहाने और सीरीज जीतने पर फोकस करना चाहिए.

विवाद कंगारूओं के लिए नई बात नहीं

विश्व क्रिकेट में विवादों का कंगारुओं से कोई नया रिश्ता नहीं है. आप दुनिया के किसी भी सर्च इंजन पर जाकर ‘क्रिकेट कंट्रोवर्सी’ टाइप कीजिए और नतीजा देखिए आप पाएंगे कि हर चौथे पांचवे विवाद का संबंध ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों से होगा. अंडरआर्म गेंदबाजी से लेकर हालिया विवाद तक. इस हालात में अनिल कुंबले जैसे अनुभवी और सुलझे हुए खिलाड़ी के कोच होने का फायदा भारतीय टीम को उठाना चाहिए.

पहले दोनों टेस्ट मैचों में टीम के प्रदर्शन में भरपूर खामियां रही हैं. किसी भी टीम से जीत का श्रेय नहीं छीना जा सकता है लेकिन सच है कि बेंगलुरू में टीम इंडिया जीती नहीं बल्कि ऑस्ट्रेलिया हार गई. अभी सीरीज के दो टेस्ट मैच बाकि हैं. इस विवाद से बाहर निकलकर उन टेस्ट मैचों के लिए रणनीति बनाने का वक्त है.