गुजरात में मतदान क्या कम हुआ राजनीतिक पंडित से राजनेता तरह-तरह के मायने निकाल रहे हैं. बीजेपी दावा कर रही है कि पार्टी फिर सत्ता में आएगी. वहीं कांग्रेस ताल ठोक रही है कि पार्टी 22 साल के बाद सत्ता का स्वाद चखेगी. जाहिर है कि चुनाव परिणाम के पहले सारी पार्टी जीत का दावा करती है. गुजरात में प्रथम चरण में करीब 68 फीसदी मतदान हुआ जबकि 2012 में 71 फीसदी मतदान हुआ था यानि तीन फीसदी कम मतदान हुआ. क्या मतदान कम होने से गुजरात में बीजेपी सरकार से जनता नाराज है? ऐसा कुछ नहीं है जिसपर ताल ठोंककर कह सकें कि फलां पार्टी हार रही है और फलां पार्टी जीत रही है. मतदान कम और ज्यादा होने की कई वजहें होती हैं. ये वजहें सरकार के समर्थन में भी हो सकती है और विरोध में भी. मतदान कम और ज्यादा होने की वजहें और उसके प्रभाव पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव की बात करेंगे लेकिन इसके पहले गुजरात के गणित को समझ लेते हैं.


ये जरूरी नहीं है कि मतदान कम होने से राज्य में सत्तासीन पार्टी की हार होती है और मतदान ज्यादा होने से विपक्ष की जीत होती है. मतदान कम होने पर भी जीत सकते हैं और मतदान ज्यादा होने पर भी फतह कर सकते हैं. यही मापदंड हार के लिए भी लागू हो सकता है. मतदान पर समुद्र मंथन से पहले 2012 के नतीजे को समझ लेते हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में 71 फीसदी वोटिंग हुई थी जबकि 2007 में सिर्फ 60 फीसदी यानि 2012 के चुनाव में 11 फीसदी का जबर्दस्त उछाल था. जब मतदान में ज्यादा बढ़ोतरी होती है तो ये माना जाता है कि सत्ता पक्ष के खिलाफ हवा है लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मतदान में जबर्दस्त बढ़ोतरी के बाद नरेन्द्र मोदी की जीत हुई थी. लेकिन 2007 के मुकाबले बीजेपी की सीटें 2012 में दो घट गई थीं. 2007 में बीजेपी को 117 सीटें मिली थीं जबकि 2012 में सिर्फ 115 सीटें. तो फिर 2012 में मतदान में 11 फीसदी की बढ़ोतरी क्यों हुई थी? इसकी तीन मुख्य वजहें थी. गुजरात विधानसभा चुनाव के एक साल पहले यूपीए सरकार के बुरे दिन शुरू हो गये थे. सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ रही थी वहीं मोदी सरकार परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से सीधे यूपीए सरकार पर हमला कर रहे थे.


गुजरात चुनाव के पहले ही ये चर्चा शुरू हो गई थी कि बीजेपी में नरेन्द्र मोदी पीएम के प्रबल दावेदार हो सकते हैं. गुजरात की जनता को लगने लगा था कि अगर मोदी गुजरात विधानसभा का चुनाव जीतते हैं तो वो बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं. उसी दौर में देश से विदेश में ‘गुजरात मॉडल’ का डंका बज रहा था. नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की लालसा और यूपीए सरकार की नाकामी की वजह से गुजरात में जमकर वोटिंग हुई लेकिन केशुभाई की बगावती तेवर की वजह से बीजेपी को ज्यादा सीटें नहीं मिल पाईं. जमकर वोटिंग की वजह से नरेंद्र मोदी चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. लेकिन इतनी ही जबर्दस्त वोटिंग की वजह से 1995 में बीजेपी को पहली बार राज्य में सरकार बनाने का मौका मिला. विधानसभा चुनाव 1995 में 1990 की तुलना में 12 फीसदी वोट की बढ़ोतरी हुई थी और पहली बार गुजरात भगवा रंग से रंग गया था. उस समय बीजेपी की सीटें 67 से बढ़कर 121 हो गई थीं.


2012 और 1995 के विधानसभा की तुलना करें तो दोनों चुनाव में करीब 11-12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई लेकिन 1995 में बीजेपी सत्ता में आई, जबकि 2012 में सरकार को बरकरार रखने कामयाब रही. 1995 में बीजेपी में पहली बार सत्ता में जरूर आई लेकिन सत्ता में आने के साथ ही सीएम कुर्सी को लेकर पार्टी में मारामारी शुरू हो गई. बीजेपी के ही नेता शंकरसिंह वाघेला अपने ही पाटी के खिलाफ उतर गये और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब हुए. फिर वाघेला कांग्रेस में भी शामिल हुए. पार्टी में टूट और शंकरसिंह वाघेला के कांग्रेस में शामिल होने के बाद 1998 के विधानसभा चुनाव में फिर बीजेपी की जीत हुई लेकिन 1995 के मुकाबले 1998 के विधानसभा चुनाव में मतदान में पांच फीसदी की गिरावट हुई. लेकिन मतदान कम होने के बाद भी बीजेपी सत्ता में आ गई. यही नहीं मोदी के शासनकाल में ही 2007 में 2002 के मुकाबले दो फीसदी कम मतदान हुआ लेकिन सरकार मोदी की ही बनी.


सबसे गौर करने की बात ये है कि लोकसभा 2014 के चुनाव में गुजरात में 64 फीसदी मतदान हुआ था जबकि उसी गुजरात में दो साल पहले विधानसभा चुनाव में 71 फीसदी मतदान हुआ था. यानि दो साल में ही मोदी के बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के बाद भी मतदान में सात फीसदी की गिरावट हो गई. फिर भी बीजेपी राज्य की सभी 26 सीटें जीत गई थी. लोकसभा 1977 और 1984 और 2014 में पिछले चुनाव के मुकाबले रिकॉर्ड मतदान हुआ लेकिन हर चुनाव में मतदान में बढ़ोतरी और कमी के अपने अपने मायने हैं. 1977 और 2014 में कांग्रेस सरकार की विदाई हुई जबकि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की वजह सहानूभूति वोट की वजह से वोटिंग में बढ़ोतरी हुई और फिर कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई.


गुजरात में क्यों हुआ कम मतदान?


गुजरात में मतदान कम होने की कई वजहें हो सकती है हालांकि अभी मतदान के फीसदी में उतार-चढ़ाव हो सकता है. फिलहाल मतदान कम होने की पहली वजह ये है कि वोटर में पिछले विधानसभा चुनाव के तुलना में उत्साह कम है. दूसरी वजह ये है कि 12 साल के बाद राज्य में नरेंद्र मोदी के बिना चुनाव हो रहा है. तीसरी वजह ये है कि जाति की राजनीति, नोटबंदी और जीएसटी की वजह से वोटर नाराज हैं. देश और दुनिया में जिस गुजरात विकास मॉडल की बात हो रही है अब वही मॉडल बेपर्दा हो रहा है. गांधी-पटेल की जमीन पर जाति-जाति की राजनीति हो रही है और ‘नीच’ से लेकर औरंगजेब-खिलजी पर बात हो रही है. विकास की बातों से भटक कर धर्म और अस्मिता का मुद्दा बनाया जा रहा है. अब नजर दूसरे चरण के मतदान 14 दिसंबर को होगा. हो सकता है कि मतदान की फीसदी में सुधार हो सकता है लेकिन एक बात साफ है कि तीन फीसदी मतदान कम होने की वजह से किसी पार्टी हार नहीं होती है और न ही जीत होती है. ये सवाल जरूर है कि तीन फीसदी वो कौन वोटर हैं जिन्होंने मतदान नहीं किया है.


धर्मेन्द्र कुमार सिंह राजनीतिक-चुनाव विश्लेषक हैं और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं.


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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)