(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
BLOG: जब लड़की ने लड़की को देखा तो कैसा लगा
ट्रेलर हाजिर है- 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा'. '1942 अ लव स्टोरी' फिल्म का गाना है, हम गुनगुनाने लगते हैं. जाहिर सी बात है, लड़के ने लड़की को देखा तो उसे कैसा लगा, गीत यही बयान करता है. लेकिन इस पुराने गाने को नई फिल्म में दोहराया गया है और यहां सिचुएशन भी अलग है. इस बार लड़के ने लड़की को नहीं देखा, लड़की ने ही लड़की को देखा और किसी ने उसकी तरफ से गुनगुना दिया. इस नई फिल्म का टाइटल ही है, एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, और पुरानी फिल्म की तरह इस नई फिल्म में भी अनिल कपूर हैं. साथ में हैं उनकी बिटिया सोनम कपूर. वह फिल्म की हीरोइन हैं और फिल्म का टाइटल उनकी मनःस्थिति का खुलासा करता है.
पिता बने अनिल कपूर बिटिया बनी सोनम के लिए लड़का तलाश रहे हैं. पसंद भी कर रहे हैं लेकिन बेटी को लड़के नहीं, लड़की पसंद है. वह समलिंगी है और अब माता-पिता को इस बात को कबूल करना है. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को रद्द किया था. यह धारा समलिंगी रिश्तों को अपराध बताती थी. आदमी-आदमी के साथ, औरत-औरत के साथ सेक्स संबंध बनाते थे तो इसके लिए उन्हें 10 साल की जेल हो सकती थी. लेकिन कोर्ट ने इस धारा को रद्द किया. कहा कि मामला दिलचस्पी का है.
सेक्सुअल ओरिएंटेशन व्यक्ति का मौलिक अधिकार है. संविधान भी किसी से भेदभाव न करने की बात कहता है. किसी भी कानून के जरिए इस भेदभाव को कायम नहीं किया जा सकता. इसके बाद चोरी-छिपे रिश्ते रखने वाले सामने आए. अब खुल्लम खुल्ला अपने रिश्तों को कबूला जा रहा है और सिनेमा भी खुल्लम खुल्ला इस बदलते रिश्ते को दिखा रहा है.
1996 में जब पहली बार दीपा मेहता की फायर में फुल फ्लेजेड लेस्बियन रिश्तों को दिखाया गया था, तब दर्शकों को यह सब गले नहीं उतरा था. ठीक उसी तरह, जैसे असल जिंदगी में ऐसे रिश्तों को हम कबूल नहीं करते. औरत अपनी सेक्सुएलिटी तय करे, यह यूं भी बर्दाश्त नहीं किया जाता. फिर औरत से ही औरत के रिश्ते!!! फिल्म को जबरदस्त विरोध सहना पड़ा था. सिनेमाघरों में तोड़-फोड़ हुई थी. कहा गया था कि यह फिल्म भारतीय संस्कृति के खिलाफ है. यह नाखुश बीवियों को सिखाती है कि वे अपने 'पतियों के भरोसे' मत बैठी रहें.
तो, यह धारा बहते-बहते 2018 की फिल्म 'वीरे दी वेडिंग' तक पहुंच चुकी है जिसमें स्वरा भास्कर खुद को संतुष्ट करने के लिए खुद पर निर्भर रहना पसंद करती हैं. इस रोल और मास्टरबेशन वाले सीन के लिए स्वरा को सोशल मीडिया पर लताड़ा गया क्योंकि, जाहिर सी बात है, लड़कियों की ऐसी च्वाइस हमें जमती नहीं. हां, 'मस्ती', 'क्या कूल हैं हम' जैसी फिल्में हम आंखें फाड़-फाड़कर देख लेते हैं. इनमें लड़कियां ऑब्जेक्ट होती हैं. आदमी उन्हें टकटकी लगाए संतुष्ट हो लेते हैं. तब हमें कोई दिक्कत नहीं होती. दिक्कत तब होती है, जब औरत खुद ऑब्जेक्ट की तलाश करने लगती है.
फायर के बाद समलिंगी रिश्तों पर 'अलीगढ़' और 'मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ' जैसी फिल्में भी आईं. 'कपूर एंड संस' में भी एक छोटा सा हिस्सा गे रिश्तों को समर्पित था. फवाद खान का कैरेक्टर गे है और मां रत्ना पाठक शाह के लिए इसे स्वीकार करना मुश्किल है. फिल्म के आखिर में कुछेक सीन्स में यह विषय उठाया गया था. अब सोनम कपूर एक नई तरह के सिनेमा की शुरुआत कर रही हैं. नए दौर की परछाइयां सिनेमा में दिखाई दे रही हैं. फिलहाल फिल्म के ट्रेलर से यही पता चल रहा है.
तमाम इंटरव्यूज़ और सोशल मीडिया पर अनिल और सोनम के पोस्ट्स से भी यह एहसास हो रहा है कि फिल्म एक अनूठे कॉन्सेप्ट को लेकर आई है. हम भी 'वेन हैरी मेट सेजल' और 'जब वी मेट' से ऊपर उठना चाहते हैं. लव स्टोरीज़ हमें पकाती हैं. कितनी भी खूबसूरती से क्यों न बुनी गई हों. जिन्हें साल-दो-साल बाद देखने पर हंसी आए. जिनमें आज के समाज का एक टुकड़ा भी पिरोया न गया हो. ऐसे शोपीस वाले डांसिंग कपल तो म्यूजिकल बॉक्स में भी अच्छे नहीं लगते. एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा...ताजा हवा के झोंके सी लगती है.
हमारी मिडिल क्लास सेंसिबिलिटी कई बार हमें रोकती है लेकिन फिर भी हम मन की अड़चनों से लड़ सकते हैं. नए सिनेमा के खुशनुमा तौर-तरीकों के साथ तालमेल बैठा सकते हैं. इसी साल अहमदाबाद में जून में एक लेस्बियन कपल ने साबरमती में कूदकर अपनी जान दी थी. तब अहमदाबाद में क्वीर समुदाय के लिए क्वीराबाद जैसी संस्था चलाने वाली शामिनी कोठारी ने लिखा था कि यह आत्महत्या कोई नई बात नहीं है. इसे रोकने के लिए जैसे संवाद की जरूरत है, वह हमारे यहां होता ही नहीं.
ऐसे में सोनम कपूर की पहल शायद इस संवाद की शुरुआत कर सकती है. अपनी देह पर अपना हक...ऐसी फिल्में लगातार आ रही हैं. 'पार्च्ड', 'लिपस्टिक अंडर माइ बुर्का', 'एंग्री इंडियन गॉडेजेज़', 'द डर्टी पिक्चर', 'मसान' जैसी फिल्में बताती हैं कि औरतों की च्वाइस कितनी मायने रखती है. 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा', इसी च्वाइस का एक्सटेंशन है. चुनने का हक, जाति, धर्म, और अब लिंग से भी परे. औरत की इस च्वाइस का भी सम्मान करना होगा. तब तक के लिए सोनम कपूर को बधाइयां.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)