किसान की आत्मनिर्भरता कोरोना संक्रमित अर्थव्यवस्था को उबरने में करेगी मदद
अब आज का ही माहौल देख लीजिए. जब 40 दिनों के देशबंदी के दौरान आधे से ज्यादा उद्योग धंधे बंद पड़े हैं और सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी मे आधे से भी ज्यादा हिस्सेदारी (कीमत के हिसाब से) रखने वाला सेवा क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो, तब उम्मीद की एक आस गांव में ही नजर आ रही है.
"कोरोना संकट ने अपना सबसे बड़ा संदेश, अपना सबसे बड़ा सबक हमें दिया है कि हमें आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा. गांव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर बने, जिला अपने स्तर पर, राज्य अपने स्तर पर, और इसी तरह पूरा देश कैसे आत्मनिर्भर बने, अब ये बहुत आवश्यक हो गया है."- 24 अप्रैल को सरपंचों के साथ संवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये संदेश सभी 6 लाख 62 हजार 714 गांवों, 2 लाख 83 हजार 541 ग्राम पंचायत समेत तमाम स्थानीय निकायों, 7,084 प्रखंडों, 6,833 उप जिलों, 734 जिलों और 37 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए था, लेकिन इन सब में सबसे अहम कड़ी गांव है. गांव इसलिए, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों का पहला पायदान गांव ही है और बात जब आत्मनिर्भरता की हो तो शुरुआत यहीं से किसानों के साथ करनी होगी.
अब आज का ही माहौल देख लीजिए. जब 40 दिनों के देशबंदी के दौरान आधे से ज्यादा उद्योग धंधे बंद पड़े हैं और सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी मे आधे से भी ज्यादा हिस्सेदारी (कीमत के हिसाब से) रखने वाला सेवा क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हो, तब उम्मीद की एक आस गांव में ही नजर आ रही है. हो भी क्यों ना, कुछ तथ्यों पर नजर डाल लीजिए. फसली वर्ष 2019-20 (जुलाई 2019-जून 2020) के दौरान खाद्यान्न का उत्पादन रिकॉर्ड 29 करोड़ टन तक पहुंचने का अनुमान है. गावों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत काम करने वालों की गितनी कुछ राज्यों में दस गुना तक बढ़ी है. सवा लाख से भी ज्यादा ग्राम पंचायत ब्रॉडबैंड से जुड़े हैं. सभी बसावट वाले गांव तक बिजली पहुंच चुकी है.
जहां तक सवाल बाजार का है तो कोरोना पूर्व के दौर में कुल गाड़ियों की बिक्री में ग्रामीण क्षेत्रों की हिस्सेदारी 30 फीसदी से भी ज्यादा हो चुकी थी. रोजमर्रा का सामान बनाने वाली कंपनियों से पूछिए, वो बताएंगे कि बड़े पैमाने पर उत्पादन होने वाले सामान की खपत गावों में काफी तेजी से बढ़ रही है. जाहिर है कि गांव, बस गांव नहीं रहें हैं, बड़े बाजार बन चुके हैं. ऐसे में जब बात आत्मनिर्भरता की होगी तो ये देखना जरुरी होगा कि गांव कितने हद तक इसके लिए तैयार है, या यूं कह लीजिए कि वहां कितना मजबूत आधार बन चुका है.
आत्मनिर्भरता के लिए ये जानना अहम है कि इस वित्त वर्ष यानी 2019-20 के दौरान गांवों तक कितनी आर्थिक मदद पहुंचाने की तैयारी है. 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक ग्रामीण स्थानीय निकायों को 60 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा रकम देने का प्रस्ताव है. कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट क्रमश: 1.42 लाख करोड़ रुपये और 1.22 लाख करोड़ रुपये का रखा गया है. इन आंकड़ों की गहराई में जाए तो हर वर्ष 6000 रुपये की नगद सहायता वाली योजना पीएम किसान के तहत 75 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान है, जबकि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत 61.5 हजार करोड़ रुपये का इंतजाम है.
मतलब रकम का प्रावधान तो कर दिया गया है. रबी की फसल भी बहुत अच्छी हुई है. देशबंदी के दौरान फसलों की कटाई और बाजार तक पहुंचने के लिए जरुरी रियायतें भी दी गयी हैं, फिर भी किसानों के लिए क्या राहत है? यही वो तथ्य है, जो गांव-देहात की आत्मनिर्भरता के मामले में बड़ी चुनौती है. अब आप पूछेंगे कि किसान की परेशानी क्या है? एक हो तो बताएं. सबसे पहले तो कई राज्यों में कटाई के लिए पर्याप्त मजदूर नहीं मिल रहे. कटाई हो गयी और गेहूं के दाने भी निकाल लिए गए तो उसकी पैकिंग करने और फिर मंडी पहुंचाने के लिए संसाधन की कमी है.
दो गज देह की दूरी का पालन कराने के लिए मंडियों के बाहर कतार लंबी हो गयी. कुछ राज्यों में अचानक आयी बारिश ने खुले में पड़े अनाज को खराब कर दिया. दक्षिण और पश्चिम के राज्यों में आम-अंगूर-संतरा की अच्छी पैदावार के बावजूद किसान मायूस हैं, क्योंकि खरीदार ही नहीं मिल रहे. मतलब साफ है किसान के लिए आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं दिख रहा, क्योंकि जब उसे अपनी पैदावार की उचित कीमत ही नहीं मिलेगी, तो वो किस तरह से आत्मनिर्भर बनेगा.
जब किसान आत्मनिर्भर नहीं होगा तो गांव कैसे आत्मनिर्भर बनेगा? ये भी तब, जब फसल अच्छी हुई और देश-विदेश के बाजार में जरुरत भी काफी है. समय तेजी से बीत रहा है. ऐसे में समय की मांग है कि किसान को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तमाम जरूरी कदम उठाए जाएं. संसाधन का प्रावधान कर देने से बात नहीं बनेगी और नीतियों की चर्चा कर लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता, उन पर तेजी से और प्रभावी तरीके से अमल करना होगा.
किसान आत्मनिर्भर होगा तभी तो तमाम बुरी आर्थिक खबरों के बीच उम्मीद की एक आस दिखा रहा कृषि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए मजबूत मददगार बनेगा.
(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)