खबर सबके बीच है. अमेरिकी बाशिंदों ने अपने देश की बागडोर एक महिला को देने से इनकार कर दिया है. हिलेरी क्लिंटन हार गई हैं और डोनाल्ड ट्रंप जीत गए हैं. दुनिया के सबसे ताकतवर देश ने अपना 45 वां राष्ट्रपति चुन लिया है जिसकी तरफ दुनिया भर की नजरें गड़ी हैं. अमेरिका की 240 साल की हिस्ट्री में शायद ही कोई चुनाव इतना रोमांचक रहा हो. एक कैंडिडेट जीतते-जीतते हार गया तो दूसरा हारते-हारते विजय पताका फहरा गया.
वैसे हिलेरी पर ट्रंप की जीत एक कड़वी राजनीतिक लड़ाई का प्रतिफल ही है जो पर्सनली कइयों को बहुत दुख दे रहा है. सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि ट्रंप नस्लीय पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं. बल्कि इसलिए भी कि औरतों को लेकर उनका नजरिया बहुत द्वेषपूर्ण है. उनके किस्से-कहानियां जितने उछले हैं, उनकी तो कोई मिसाल नहीं है. एक-एक करके कितने ही राज बेपरदा हुए हैं. लेकिन राजनेताओं के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है. आम आदमी, अपने ‘आम आदमियों’ के ऐसे कितने ही किस्से भुलाता चलता है! उसकी चोरी और सीनाजोरी को बकलोली समझकर माफ भी कर दिया करता है.
लेकिन ट्रंप की जीत, इस सीनाजोरी की खुशी में पटाखे फोड़ने जैसी लगती है. अब यह खबर भी आ रही है कि ट्रंप की जीत में हिस्पैनिक और अफ्रीकी अमेरिकियों के साथ महिला वोटरों का भी बड़ा हाथ है. हालांकि शुरुआत में औरतों पर ट्रंप की सेक्सुअल टिप्पणियों ने महिलाओं पर बहुत असर किया. फिर खबरें आईं कि किस तरह ट्रंप लड़कियों और औरतों से छूट लिया करते हैं. किसी ब्यूटी पेजेंट के चेंजिंग रूम में घुस जाते हैं. कुछ औरतों ने उनके खिलाफ तरह-तरह के आरोप भी लगाए. इसी से पॉलिटिकल एनालिस्टों ने कहा कि महिला इलेक्टोरल के वोट तो हिलेरी के ही खाते में जाएंगे. पर ऐसा नहीं हुआ.
वैसे अमेरिका में महिलाएं डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ ज्यादा झुकती हैं. इससे पहले रिपब्लिकन मिट रोमनी को 55 परसेंट महिला वोटों के साथ डेमोक्रेट बराक ओबामा धूल चटा चुके हैं. इस बार के एक्सिट पोल्स में भी यही नजर आ रहा था. औरतें हिलेरी की तरफ थीं, पुरुष ट्रंप की तरफ. लेकिन चुनावी नतीजों से कुछ और ही नजर आया. इस बार महिला वोटरों में भी जबरदस्त डिवाइड रहा. 45 से 51 परसेंट कॉलेज एजुकेटेड व्हाइट औरतों ने हिलेरी को चुना तो 34 से 62 परसेंट नॉन कॉलेज एजुकेटेड औरतों ने ट्रंप को. जिन औरतों के पास कॉलेज की डिग्री नहीं है, उनमें से 28 परसेंट ने ट्रंप को चुना.
इसका मतलब साफ है- औरतें किसी को भी माफ कर सकती हैं. चाहे औरत अपने देश की हो या सात समुंदर पार की. चाहे वह साड़ी में लिपटी हो, बुर्के में कैद हो या मिनी स्कर्ट पहनती हो. मर्द दिलफेंक अय्याश अमीरजादा हो या मूंछें मरोड़ता टिपिकल ठरकी - चाहे चाबुक सटकाए या कान उमेंठे. उसे माफ कर दिया जाएगा. हाथों-हाथ लिया जाएगा. अपने देश की महिलाओं की ही तरह ट्रंप की बीवी मेलानिया ने भी हर पल उनका साथ दिया- सभी से कहा कि बिली बुश जैसे पत्रकार अपने फायदे के लिए गलत खबर चलवाते हैं. वरना मेरे पति ऐसे बिल्कुल नहीं.
औरतों ने ट्रंप को माफ किया तभी तो फेसबुक पर विमेन फॉर ट्रंप के 53 हजार फॉलोअर हैं और फीमेल फॉर ट्रंप के 80 हजार के करीब. इसके अलावा ट्रंप को सपोर्ट करने वाली औरतों ने एक वेबसाइट भी बनाई है जिसका नाम है विमेन वोट फॉर ट्रंप. इस पर सभी औरतों से कहा जा रहा था कि प्लीज ट्रंप को अपना समर्थन दें. वेबसाइट पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा है- विमेन वोट स्मार्ट, विमेन वोट ट्रंप. मतलब हमें मत बताइए कि हम किसे चुनें. यह अलग बात है कि हम हर बार उसे ही चुनने का फैसला करते हैं जो हमें धकियाता और लतियाता है.
अमेरिका के मशहूर इकोनॉमिस्ट पॉल क्रुगमैन ने कहा है कि इस अमेरिका को मैं बिल्कुल नहीं जानता. शायद यह एक विफल देश और समाज है. क्रुगमैन कई मायनों में सही हैं. एक मर्दवादी सोच के साथ अमेरिका ने फिर एक बार एक मर्द को उसके किए पर माफ किया है. दुनिया भर में सबसे महंगी फिल्में बनाने वाले अमेरिका ने साबित किया है कि वहां 21 वीं सदी में भी किसी औरत के लिए राष्ट्रपति बनना आसान नहीं. फिक्शन में भी नहीं- क्योंकि वहां भी यह तभी संभव होत है जब सभी मर्द अल्लाह को प्यारे हो जाएं.
याद आती है, 1996 की मशहूर हॉलिवुड फिल्म मार्स अटैक्स, जिसकी शुरुआत राष्ट्रपति की 14 साल की बेटी टैफी के साथ होती है. पृथ्वी पर मंगलवासियों का हमला होता है. एलियन्स धरती वासियों को पराजित करते हैं. पूरी फेडरल गर्वनेंट मारी जाती है. तब हार कर टैफी को राष्ट्रपति बनाया जाता है. इसी तरह वाई- द लास्ट मैन नाम की कॉमिक सीरिज में भी वाई क्रोमोजोम्स (यह पुरुषों में ही होता है) वाले प्राणियों के मारे जाने के बाद मार्गेट वेलेंटाइन नाम की एक्स क्रोमोजोम्स को देश की राष्ट्रपति बनाया जाता है.
पर यह फिक्शन नहीं, हकीकत है. इसे अपने हिसाब से नहीं बदला जा सकता. न्यूयार्क के मशहूर महिला संगठन द विंग की एक्टिविस्ट्स हिलेरी के हारने से दुखी हैं. अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर संगठन औरतों का पक्ष लेता है और कहता है कि अधिकतर अमेरिकी औरतों ट्रंप की जीत से खुश नहीं. हां, अब उनका संघर्ष और तेज होगा. हमें एक नाकामयाब समाज के संघर्ष और उसकी कामयाबी का इंतजार रहेगा.