बर्थडे स्पेशल ब्लॉग: आज भी भुलाए नहीं भूलती अभिषेक बच्चन के बचपन की वह बात
अभिषेक बच्चन आज 43 साल के हो गए. पता ही नहीं लगता वक्त कब गुजर जाता है. मुझे आज भी वह बात याद है जब 5 फरवरी 1976 को मुंबई में अभिषेक का जन्म हुआ था. तब यह खबर मुझे माननीय डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के पत्र से मिली थी. तब आज की तरह एक पल में ख़बरें वायरल नहीं होती थीं. फिल्म और फिल्म सितारों के समाचारों को तब बड़े दैनिक समाचार पत्र तो कभी कभार तभी छापते थे जब कोई बहुत बड़ी घटना हो. अन्यथा फिल्मों के बारे में अधिकतर समाचार फिल्म पत्रिकाओं से ही मिलते थे. इससे किसी फिल्म समाचार को मिलने में तो दस–बीस दिन या कभी महीना भर भी लग जाता था. लेकिन अभिषेक के जन्म का समाचार उनके दादा जी ने मुझे तभी पत्र से दे दिया था कि अमिताभ के यहां पुत्र हुआ है और उसका नाम अभिषेक रखा है.
यह मेरा सौभाग्य रहा है कि सुप्रसिद्ध कवि और लेखक माननीय डॉ हरिवंश राय बच्चन जी मेरे ऐसे गुरु रहे हैं जिनसे मैंने जिंदगी, लेखन-पत्रकारिता, सफलता-असफलता और परिश्रम व लगन जैसे बहुत से मुद्दों पर बहुत कुछ सीखा है. वह जब तक स्वस्थ रहे उनके मेरे बीच पत्र व्यवहार का लम्बा सिलसिला चलता रहा. यहां तक बच्चन जी के अस्वस्थ रहने पर उन्हें भेजे हुए मेरे कई पत्रों के जवाब मुझे अमिताभ बच्चन भी देते रहे. हालांकि अभिषेक के जन्म को लेकर भेजा उनका पत्र मैं अपने रिकॉर्ड में अब नहीं देख पा रहा हूं. लेकिन मुझे अभिषेक के बचपन की कुछ स्मृतियां आज भी ज्यों की त्यों याद हैं.
मैंने अभिषेक को जब पहली बार देखा तब वह एक बरस के रहे होंगे. लेकिन अभिषेक की जो बात मेरे दिल-ओ-दिमाग में ज्यादा बसी है वह है दिसम्बर 1980 की. तब दिल्ली में फिल्म ‘सिलसिला’ की शूटिंग चल रही थी. मुझे दिल्ली में 20 दिसम्बर को, मुंबई से हरिवंश राय बच्चन जी का पत्र मिला कि वह दिल्ली आ रहे हैं. सभी लोग कुछ समय तक दिल्ली के ओबेरॉय होटल में ठहरेंगे, कभी सुविधा से मिलना. पत्र मिलने के दो तीन दिन बाद जब मैं ओबेरॉय होटल पहुंचा तो वहां माननीय बच्चन जी अपने परिवार के सदस्यों अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, श्वेता और अभिषेक के साथ ठहरे हुए थे. साथ ही फिल्मकार यश चोपड़ा और रेखा भी वहीं होटल में थे.
मैं जैसे ही होटल में इनके कमरे की मंजिल पर लिफ्ट से बाहर निकला तो वहां अभिषेक-श्वेता खेल रहे थे. मैंने उनसे पूछा दादा जी किस कमरे में हैं तो वे मुझे उनके कमरे में ले गए. मैं माननीय बच्चन जी से बात कर रहा था तब भी श्वेता-अभिषेक उनके कमरे में खेल रहे थे. अभिषेक की उम्र उस समय पांच साल से भी कम थी. मुझे यह भी अच्छे से याद है कि अभिषेक ने काले रंग का कोट पैंट, सफ़ेद रंग की कमीज और लाल रंग की बो पहनी हुई थी. अभिषेक इतने प्यारे लग रहे थे कि मैं उन्हें अपनी गोदी में बैठा कर बात करता रहा. कुछ देर बाद जब वह श्वेता के साथ खेलने के लिए जाने लगे तो मैंने अभिषेक के गाल पर एक ‘किस’ कर लिया. और फिर बच्चन जी के साथ बातचीत करने में व्यस्त हो गया.
कुछ देर बाद वहां जया बच्चन आईं. यूं मैं कुछ साल पहले भी जया जी से दो तीन बार मिल चुका था. फिर भी बच्चन जी ने एक बार फिर मेरा जया जी से परिचय कराया. हम बात कर ही रहे थे कि जया जी ने देखा श्वेता तो कमरे में हैं, लेकिन अभिषेक दिखाई नहीं दे रहे. इस पर झट से जया जी ने श्वेता से पूछा कि अभिषेक कहां हैं? श्वेता ने कमरे के दरवाजे के पीछे इशारा करते हुए कहा कि वह परदे के पीछे छिपा हुआ है. जया जी ने हंसते हुए कहा- क्यों तुम खेल रहे हो या तुम दोनों की कोई लड़ाई हुई है? श्वेता ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा-नहीं अंकल ने अभिषेक को ‘किस’ कर लिया तो वह शरमा कर छिप गया है.” यह सुनकर हम सब जोर से खिलखिलाकर हंस पड़े. अभिषेक सारी बातें सुनते हुए कुछ लजाते-मुस्कुराते परदे से सिर बाहर निकाल रहे थे. जया जी ने अभिषेक को अपने पास आने के लिए कहा और वह उसे प्यार करते हुए मुझसे बोलीं- यह शुरू में थोड़ा शरमाता है लेकिन बाद में जब खुलता है तो फिर खूब बातें करता है.”
(तस्वीर: अभिषेक बच्चन इंस्टाग्राम)जया जी की अभिषेक के लिए की गयी यह बात मेरे मन में घर कर गयी थी. सन् 2000 में जब अभिषेक ने 24 बरस की उम्र में अपनी पहली फिल्म ‘रिफ्यूजी’ से फिल्मों में आगमन किया तब भी मुझे वह बात याद आई. साथ ही तब भी जब ‘रिफ्यूजी’ के बाद ‘ढाई अक्षर प्रेम के’ और ‘बस इतना सा ख्वाब है’ जैसी अभिषेक की फ़िल्में प्रदर्शित हुईं. इन फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर तो असफलता मिली ही साथ ही अभिषेक के अभिनय में एक दम खुलेपन का कुछ अभाव भी खटका. लेकिन ‘मुंबई से आया मेरा दोस्त’ और ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ तक आते आते अभिषेक ने जिस तरह खुलकर अभिनय किया वह किसी से छिपा नहीं है. इसके बाद तो अभिषेक ने अपने शानदार अभिनय वाली कई फ़िल्में दीं हैं. ‘युवा’ ‘सरकार’ ‘धूम’ और ‘गुरु’ जैसी.
अभिषेक बच्चन ने अपने अब तक के 18 साल के करियर में करीब 50 फ़िल्में की हैं. जिनमें कई फिल्मों को अच्छी व्यवसायिक सफलता भी मिली और उनके अभिनय की भी प्रशंसा हुई. इससे इतर करीब दर्जन भर फ़िल्में उन्होंने मेहमान भूमिकाओं वाली भी कीं. उनकी अब तक की उल्लेखनीय फिल्मों में ज़मीन, दस, उमराव जान, झूम बराबर झूम, लागा चुनरी में दाग, दिल्ली-6, रावण, हैप्पी न्यू इयर, आल इज वेल और हाउस फुल-3 हैं. पिछले साल वह एक अंतराल के बाद ‘मनमर्जियां’ में भी आए. लेकिन अभिषेक की जो फ़िल्में उनके करियर की शानदार फिल्मों के साथ ‘माइल्सस्टोन’ फ़िल्में भी हैं उनमें -युवा, बंटी और बबली,सरकार राज, पा, बोल बच्चन और धूम सीरिज की तीनों फ़िल्में हैं. इनमें ‘पा’ के तो अभिषेक निर्माता भी थे और इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.
इसके अलावा युवा, सरकार और कभी अलविदा न कहना के लिए अभिषेक को सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला. लेकिन अभिषेक की सभी अच्छी फिल्मों में भी अब तक की बेहतरीन फिल्मों को देखा जाए तो वह है-‘गुरु’. इस फिल्म में अभिषेक ने गुरुकांत देसाई के रूप में जो अभिनय किया वह उनकी अन्य सभी फिल्मों पर भारी पड़ता है. ‘गुरु’ का निर्देशन मणि रत्नम ने किया था, जिनके साथ अभिषेक ने युवा और रावण जैसी फ़िल्में भी कीं.
‘गुरु’ के अभिनय के लिए चाहे अभिषेक को कोई पुरस्कार नहीं मिला. लेकिन इस जैसी कुछ और फ़िल्में अभिषेक को मिलतीं तो अभिषेक निश्चय ही और बुलंदियों पर होते. हां ‘गुरु’ से उन्हें एक ‘लाइफटाइम अवार्ड’ यह जरुर मिला कि इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान अभिषेक और ऐश्वर्या ने साथ काम करते हुए जीवन भर साथ रहने के लिए परस्पर विवाह करने का फैसला लिया. इस फैसले को साकार करने के लिए दोनों ने 20 अप्रैल 2007 को अक्षय तृतीया के दिन विवाह कर लिया. अब तो इनके आंगन में बेटी के रूप में नन्हीं परी आराध्या भी है.
पिता अमिताभ से होती है तुलना अभिषेक के करियर को ध्यान से देखें तो उन्होंने गंभीर भूमिकाएं भी की हैं और कॉमेडी भी. पिछले कुछ बरसों में तो अभिषेक अपने कॉमिक अवतार में जिस तरह से जमे हैं उससे अभिषेक निश्चय अच्छे अभिनेता साबित हुए हैं. लेकिन इसके बावजूद पिछले दो तीन बरसों में अभिषेक के पास जिस तरह फिल्मों का अभाव रहा वह भी खलता है. जबकि अभिषेक के खाते में कई हिट फ़िल्में हैं. उनकी धूम-3 और हैप्पी न्यू इयर तो 200 करोड़ से अधिक कमाने वाली फिल्मों में आती हैं. बोल बच्चन और हाउस फुल-3 भी 100 करोड़ से अधिक कमाने वाली फ़िल्में हैं. लेकिन अक्सर कुछ लोग इन फिल्मों की सफलता का श्रेय फिल्म के सह-कलाकार शाहरुख़,आमिर और अजय देवगन आदि को ज्यादा और अभिषेक को कम देते हैं. जबकि यह आकलन सही नहीं है क्योंकि फिल्म एक टीम वर्क है. जिसमें सफलता-असफलता का श्रेय पूरी टीम को जाता है. हां किस का काम अच्छा, किसका ख़राब जैसे आकलन हो सकते हैं. और जब जब इन फिल्मों में अच्छे काम की बात आई है तो अभिषेक के अच्छे काम की भी सभी जगह मुक्त कंठ से सराहना हुई है.
यहां तक ‘बंटी और बबली’ जैसी कुछ सफल फिल्मों में तो अभिषेक ही सोलो हीरो हैं. असल में देखा जाए तो सभी अभिषेक बच्चन की तुलना उनके पिता अमिताभ बच्चन से करते हैं. यह तुलना अक्सर अभिषेक के लिए नुकसान वाली साबित होती है. क्योंकि यह जरुरी नहीं कि पिता की तरह बेटा भी महानायक हो. फिर अमिताभ बच्चन ने अपने करीब 50 साल के लंबे करियर में जो मुकाम हासिल किया है वह अब तक किसी और को नहीं मिला. जबकि अमिताभ बच्चन के फिल्मों में आने से पहले भी एक से एक नायक रहे और उनके फिल्मों में आने के बाद भी बहुत से नायक आए और आ रहे हैं. सभी यथा शक्ति अपना अपना अपना बेहतर काम कर रहे हैं. ऐसे में जब अन्य अभिनेताओं की तुलना अमिताभ से नहीं की जा सकती तो सिर्फ अभिषेक की तुलना ही क्यों ? क्या इसीलिए कि वह महानायक के पुत्र हैं, लेकिन यह कहीं से भी न्याय संगत नहीं हैं.
अभिषेक का आनेवाला कल हो सकता है आज से बेहतर अभिषेक बच्चन के पास इन दिनों जो फ़िल्में हैं उनमें अनुराग कश्यप की ‘गुलाबजामुन’, जिसमें ऐश्वर्या राय बच्चन उनके साथ हैं. फिर निर्माता भूषण कुमार और अनुराग बसु की एक अनाम फिल्म भी अभिषेक को लेकर शुरू होने की घोषणा हो चुकी है, जिसमें राजकुमार राव, आदित्य रॉय कपूर और फातिमा सना शेख भी हैं. साथ ही जिन अन्य फिल्मों में अभिषेक बच्चन को लेने की चर्चा है उनमें लेफ्टी, इंडियन-2, दोस्ताना-2, बंटी और बबली-2, अरेस्ट और एक फ्रेंच फिल्म का हिंदी रूपांतरण भी है.
अभिषेक बच्चन के इस जन्म दिन पर हम कामना करते हैं कि अभिषेक का आने वाला कल आज से भी बेहतर हो. उन्हें विभिन्न किस्म की भूमिकाओं वाली बहुत सी अच्छी अच्छी फ़िल्में मिलें. अच्छा स्वास्थ, अच्छी सफलता और दीर्घ आयु मिले. अभिषेक जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई.
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