देश की आर्थिक राजधानी मुंबई जिस समय जानलेवा बारिश का कहर झेल रही रही थी, ठीक उसी समय महानगर का बुनियादी ढांचा संभालने और कर्तव्य निर्वहन के लिए पिछले तीन दशकों से चुनी जाने वाली शिवसेना के शीर्ष नेता शेरो-शायरी करने में मुब्तिला थे. इसे मुंबईवासियों का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहा जाए ! जब मुंबई के समंदर में तब्दील हो जाने, लोकल ट्रेनों के ठप पड़ने, रेल्वे ट्रैक्स के नदी बन जाने, हवाई अड्डा बंद होने, सड़क परिवहन थम जाने, लोगों के गले-गले तक पानी में डूब कर घर लौटने, सब-वे में स्कॉर्पियो गाड़ी डूबने से 2 लोगों की मौत और उपनगर मालाड में दीवार ढहने से 26 लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही थीं, तब शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राऊत बीएमसी (वृहन्नमुंबई महानगरपालिका) को क्लीन चिट देते हुए इसे महज एक हादसा बता रहे थे. इतना ही नहीं, बारिश का मजा लेते हुए उन्होंने यह दार्शनिक शेर भी ट्वीट कर डाला- ''कुछ तो चाहत रही होगी इन बारिश की बूंदों की भी, वरना कौन गिरता है इस जमीन पर आसमान तक पहुंचने के बाद.''


जाहिर है, मुंबईकरों का गुस्सा फूट पड़ना स्वाभाविक था. आरएसबी‌-भारत नाम के एक यूजर ने आखिरकार ट्विटर पर राऊत को जवाब दे ही दिया- ''बेशर्मी की हद है. पहले मोदी के आगे घुटने टेके, अब मुंबईकरों की मुसीबतों पर कविता फूट रही है. कहां गया मराठा गौरव, जिसके लिए बालासाहेब जिंदगी भर लड़ते रहे?'' इस जवाब में वह भड़ास भी छिपी है, जो हर साल मानसून के दौरान मुंबई के जलमग्न हो जाने के कारण मुंबईकरों के मन में उमड़ती-घुमड़ती रहती है. बीते दशकों में और कुछ हुआ हो या नहीं, इतना जरूर हुआ है कि चौतरफा अतिक्रमण के चलते मुंबई के तीन तरफ स्थित पहाड़ों पर बरसा पानी समुद्र तक आसानी से पहुंच ही नहीं पाता और सड़कों से रास्ता बनाता हुआ इमारतों में घुस जाता है.


महानगर में बड़ी संख्या में पुल, ओवरब्रिज समेत मेट्रो परियोजनाओं का जो निर्माण हो रहा है वह मौजूदा जलनिकासी मार्गों में किया जा रहा है. साल दर साल मुंबई के अंदर मौजूद खुले भूखंड, नाले और नदियां पाट कर भवन निर्माण होता गया मगर बीएमसी चुपचाप देखती रह गई. नेताओं, अधिकारियों, बिल्डरों और गुंडों की मिलीभगत से हर खुली जगह पर झोपड़पट्टियां उगती चली गईं और किसी ने नहीं रोका. दरअसल, बीएमसी पर काबिज सत्ताधारियों का एकमात्र उद्देश्य बीएमसी के बजट को किसी सूरत में हाथ से न जाने देना है.


ध्यान रहे कि बीएमसी का बजट (2019-20 के लिए लगभग 30,692.59 करोड़ रुपए) भारत के कई छोटे राज्यों से भी अधिक होता है. एक समय था जब संजय गांधी नेशनल पार्क (बोरीवली) से कई छोटी-छोटी नदियां निकलती थीं और बारिश के कितने भी पानी को ढोकर समुद्र में डाल देती थीं. लगभग 12 किलोमीटर लंबी दहिसर नदी श्रीकृष्ण नगर, कांदरपाड़ा, संजय गांधी नगर, दहिसर, गांवठण, मनोरी क्रीक के रास्ते, मुंबई की सबसे लंबी मीठी नदी (25 किमी) विहार झील- साकीनाका, कुर्ला, कालीना, वाकोला, बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स, धारावी-माहिम की खाड़ी के रास्ते, 7 किमी लंबी ओशिवरा नदी आरे मिल्क कॉलोनी, एसवी रोड, मालाड खाड़ी के रास्ते और लगभग इतनी ही लंबी पोइसर नदी मार्वे खाड़ी होते हुए अरब सागर तक की अपनी यात्रा तय करती थी. जबसे अतिक्रमण और हर तरह के कचरे (उपकरणों की सफाई, जानवरों को स्नान कराने, तेलों के ड्रम्स की सफाई, औद्योगिक रासायनिक पानी, गटर व झोपड़पट्टियों का गंदा पानी, कंस्ट्रक्शन का कचरा, प्लास्टिक कचरा, डंपिंग) के चलते इन नदियों ने अपना अस्तित्व खोया, तब से मुंबई की हर सड़क खुद एक नदी में तब्दील होने लगी है. मुंबई और इसके उपनगरीय इलाकों की सड़कों के नीचे सैकड़ों किमी लंबा ड्रेनेज सिस्टम है.


लगभग 125 साल पुराने इस सिस्टम से 440 किमी लंबे छोटी-मोटी जगहों के ड्रेनेज, 200 किमी बड़ी और 87 किमी छोटी नहरें और 180 मुहाने जुड़ते हैं. इन सबका माहिम की खाड़ी, माहुल की खाड़ी और ठाणे की खाड़ी के जरिए अरब सागर में मिलान होता है. इस ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त और अपग्रेड करने के लिए बीएमसी हर साल अरबों रुपए खर्च करने के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन हर बारिश में उसकी पोल खुल जाती है. सन्‌ 1990 में बीएमसी ने यूके स्थित एक फर्म से इस सिस्टम को अपग्रेड करने के सुझाव मांगे थे, जिसके मुताबिक 2002 तक इसे 6 बिलियन रुपए खर्च करके पूरा किया जाना था. इस पर अमल किया जाता तो बारिश का पानी आज की रफ्तार से दुगुना 50 मिमी प्रति घंटे की रफ्तार से समुद्र में फेंका जा सकता था. लेकिन बीएमसी से इसे बहुत खर्चीला बताते हुए इस प्रोजेक्ट से खुद पल्ला झाड़ लिया था. मार्च 2017 में वॉटरमैन ऑफ इंडिया राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में मुंबई की नदियों के कायाकल्प के लिए भी बड़ी धूमधाम से एक खास अभियान शुरू किया गया था. 2005 में मुंबई को तबाह करने वाली मीठी नदी पर विशेष ध्यान दिया जाना था. लेकिन सब टांय-टांय फिस्स हो गया. इसी से बीएमसी की बाढ़ से निबटने की गंभीरता का पता चलता है.


अनियोजित निर्माण, शहरी नालों में ठोस गंदगी, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के चलते एकमुश्त बारिश की बढ़ती बारंबारता मुंबई के जलमग्न होने की कुछ महत्वपूर्ण वजहें हैं. एकमुश्त बारिश होने के समय अगर समुद्र में ज्वार उठ जाए तो दोनों तरफ के पानी की सेना के सैनिकों की तरह आमने-सामने की अपरिहार्य भिड़ंत होती है. इस बार की प्रलयंकारी बाढ़ भी प्राकृतिक जल-निकासी मार्गों के अतिक्रमण और अक्षम ड्रेनेज सिस्टम का नतीजा थी. समुद्र की तरफ खुलने वाले अधिकतर नालों में समुद्री ज्वार से निबटने वाले फ्लड गेट्स ही नहीं हैं.


करोड़ों रुपए फूंक कर हिंदमाता जैसे लो लाइन इलाकों में बाढ़ का पानी खींचने वाले जो दैत्याकार पंप लगाए गए हैं, वे जरूरत पड़ने पर सफेद हाथी बन जाते हैं. दो जुलाई को खुद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के निवास मातोश्री, अमिताभ बच्चन के बंगले प्रतीक्षा और एनसीपी नेता नवाब मलिक के कुर्ला (पश्चिम) स्थित घर नूर मंजिल में घुटनों-घुटनों पानी भर गया था. इतिहास गवाह है कि किसी भी आफत के बाद मुंबईकर जिंदगी को बड़ी तेजी से पटरी पर ले आते हैं, इसे उनकी जिजीविषा बताया जाता है. लेकिन सत्ताधारी बखूबी समझते हैं कि यह मुंबई में रहने की उनकी मजबूरी और कीमत भी है. इसलिए इसी मानसून का कहर झेलते हुए आपको आगे अभी और शेरो शायरी सुनने को मिले, तो अचंभित मत होइएगा.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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